जानें कब है अप्रैल महीने का पहला प्रदोष व्रत, पूजा का शुभ मुहूर्त और महत्त्व


हिन्दू धर्म में प्रदोष व्रत का विशेष महत्त्व बताया गया है। आइये जानें अप्रैल के महीने में कब पड़ रहा है प्रदोष व्रत और इस व्रत का क्या महत्त्व है। 

हिन्दू धर्म के अनुसार प्रदोष व्रत का विशेष महत्त्व है। प्रदोष व्रत में मुख्य रूप से भगवान् शिव के पूजन का विधान है। एक महीने में प्रदोष व्रत दो बार यानी कि शुक्ल पक्ष और कृष्ण पक्ष की त्रयोदशी तिथि को रखा जाता है और इस दिन पूरे श्रद्धा भाव से भगवान शिव की पूजा की जाती है।

हर महीने की त्रयोदशी तिथि को प्रदोष व्रत रखने का अलग महत्त्व है। आइये नई दिल्ली के जाने माने पंडित, एस्ट्रोलॉजी, कर्मकांड, पितृदोष और वास्तु विशेषज्ञ प्रशांत मिश्रा जी से जानें अप्रैल महीने में कब पड़ रहा है प्रदोष व्रत और इसका क्या महत्त्व है।

अप्रैल महीने यानी चैत्र माह के कृष्ण पक्ष का पहला प्रदोष व्रत का त्रयोदशी तिथि यानि 9 अप्रैल, दिन शुक्रवार को पड़ रहा है। कहा जाता है कि इस दिन सच्चे ह्रदय से शिव पूजन करने से व्यक्ति को समस्त पापों से मुक्ति मिलती है और सभी कष्टों से भी मुक्ति मिलती है। प्रदोष व्रत की पूजा प्रदोष काल यानि संध्या समय में की जाती है और इसी काल में पूजा का सम्पूर्ण फल प्राप्त होता है।

-चैत्र कृष्ण त्रयोदशी तिथि आरंभ- 9 अप्रैल 2021 दिन शुक्रवार प्रातः 03 बजकर 15 मिनट से

-त्रयोदशी तिथि समाप्त- 10 अप्रैल 2021 दिन शनिवार प्रातः 04 बजकर 27 मिनट पर

-प्रदोष व्रत पूजा का समय- 09 अप्रैल को शाम 05 बजकर 55 मिनट से लेकर 08 बजकर 12 मिनट तक

-पूजा की शुभ अवधि- 02 घंटा 17 मिनट

प्रदोष व्रत का महत्व 

हर एक प्रदोष व्रत का अपना अलग महत्त्व है और हर दिन इस अलग तरह से प्रदोष व्रत रखा जाता है। जाइए यदि किसी महीने में प्रदोष व्रत सोमवार को पड़ता है तो इसे सोम प्रदोष कहा जाता है और यदि शनिवार को पड़ता है तो इसे शनि प्रदोष कहा जाता है। इसी क्रम में जब प्रदोष व्रत शुक्रवार के दिन पड़ता है तब इसे शुक्र प्रदोष कहा जाता है और इसका अपना लगा महत्त्व होता है। इस बार चैत्र माह में प्रदोष व्रत शुक्रवार को है, इसलिए इसे शुक्र प्रदोष कहा जाएगा। अलग-अलग दिनों पर प्रदोष व्रत रखने का फल भी उसी के अनुसार प्राप्त होता है। शुक्र प्रदोष व्रत करने से घर में सुख सौभाग्य की प्राप्ति होती है। घर धन धान्य से भर जाता है और रोग दोष से मुक्ति मिलती है। यही नहीं यह प्रदोष व्रत दाम्पत्य जीवन के लिए भी अत्यंत महत्त्वपूर्ण होता है। इस व्रत को यदि पति पत्नी साथ में रखते हैं तो भगवान शिव और माता पार्वती की पूजा करने से दांपत्य जीवन में खुशहाली आती है। यह व्रत बहुत ही मंगलकारी और मनोकामनाओं को पूर्ण करने वाला होता है और संतान की इच्छा रखने वालों और संतान के स्वास्थ्य के लिए भी फलदायी होता है।

-प्रदोष व्रत वाले दिन प्रातः जल्दी उठकर स्नान ध्यान करके साफ़ वस्त्र धारण करें।

-पूजा के स्थान को अच्छी तरह साफ़ करें और सभी भगवानों को स्नान करके शिवलिंग को स्नान कराएं।

-यदि घर में शिव पार्वती की मूर्ति है तो एक चौकी पर कपड़ा बिछाकर मूर्ति स्थापित करें।

-शिवलिंग को दूध, दही और शहद से स्नान कराएं और चन्दन लगाकर शिव पूजन करें।

-प्रदोष काल यानी संध्या काल में स्नान-ध्यान करके भगवान शिव की बेल पत्र, पुष्पों, धतूरे के फल, आदि से पूजा करें।

-शिव जी संग माता पार्वती की पूजा करने से पूजा का दोगुना फल मिलता है।

-इसलिए शिव चालीसा का पाठ करें, माता पार्वती को सिन्दूर लगाएं व शिव जी को चन्दन से सुसज्जित करें।

-दीप प्रज्ज्वलित करके प्रदोष की कथा का पाठ करें और शिव जी की आरती व पूजन करें।

-यदि आप व्रत करते हैं तो पूरे दिन फलाहार का सेवन करें और एक ही समय भोजन करें।

-भोजन में नमक का सेवन वर्जित होता है। कुछ लोग पूरे दिन निर्जला व्रत भी करते हैं।

-पूजा के समय भोग लगाएं और उसी भोग को प्रसाद स्वरुप ग्रहण करें और सभी को खिलाएं।

-इस प्रकार प्रदोष काल में शिव पूजन करना और व्रत का पालन करना अत्यंत फलदायी होगा और समस्त कष्टों से मुक्ति दिलाएगा।



 


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