पाश्चात्य सभ्यता को आत्मसात करती आधुनिक पीढी अपने ससंस्कार, आचार विचार, लाज लिहाज, का प्रवाह किये बगैर अपने को आधुनिक दिखाने के जुनून में नग्नता की पराकाष्ठा को पार कर उसे अपना अधिकार मान रही है। इसको ही अपनी आधुनिक संस्कृति मान रही है। कलियुग का पहर है इसके चपेट में गांव और शहर है। अट्टाहास करता कलियुग अपने प्रभाव से स्वभाव बदल रहा है। फिर भी अपनी धरोहर को सजा के रखने वालों से कलियुग भी खौफ खाता है। धर्म कर्म अपने अपने मजहब के हिसाब से रहने वालों पर आज भी आधुनिकता का कोई प्रभाव नहीं। फटा कपड़ा अधनंगा परिधान पहन कर सड़क पर घूमने का किस कानून में प्राविधान है। कहां यह अधिकार दे रखा संविधान है। हर चीज की मर्यादा है और मर्यादा से हटकर कोई भी काम समाज के लिये अपराध है।
आज कल चारों तरफ उत्तराखण्ड के मुख्यमंत्री के दिये गए बयान की काफी चर्चा चल रही है युवा पीढ़ी उबल रही है तमाम तरह का तर्क दे रही बेशर्मी की सारी हदें पार कर संस्कार की बात कर रही है। जिस प्रकार किसी को मनचाही स्पीड में गाड़ी चलाने का अधिकार नहीं है, क्योंकि रोड सार्वजनिक है। ठीक उसी प्रकार किसी भी लड़की को मनचाही अर्धनग्नता युक्त वस्त्र पहनने का अधिकार नहीं है। न ही समाज के बिपरीत आचरण करने की छूट है। क्योंकि जीवन सार्वजनिक है। एकांत सड़क पर रफ्तार कौन देखता है। मर्यादा के भीतर अपने घर में अर्द्धनग्न रहो कोई बिरोध नहीं। मगर सार्वजनिक जीवन में नियम मानने पड़ते हैं। यह समाज की कडुयी सच्चाई है। भोजन जब स्वयं के पेट में जा रहा हो तो केवल स्वयं की रुचि अनुसार बनेगा, लेकिन जब वह भोजन परिवार खायेगा तो सबकी रुचि व मान्यता देखनी पड़ेगी। तभी समाज की मर्यादा का समादर होगा। समरसता की हवा तरक्की के आवेग में बहेगी। लड़कियों के अर्धनग्न वस्त्र पहनने का मुद्दा उठाना उतना ही जरूरी है, जितना लड़कों का शराब पीकर सड़क पर उत्पात स्टाइलिस्ट बालों के साथ फब्तियां कसते गाड़ी चलाने का मुद्दा उठाना जरूरी है। दोनों में दुर्घटना हो रहा है। हर रोज हत्या बलात्कार दुराचार की घटनाओं में इजाफा हो रहा है कहीं न इसके लिये फैशन परस्ती ही दोषी है। खुलापन केवल घर की चहारदीवारी में ही उचित है। घर से बाहर सार्वजनिक जीवन में कदम रखते ही सामाजिक मर्यादा लड़का हो या लड़की उसे रखनी ही होगी। वरना हादसों को कोई रोक नही पायेगा। पर्दा घूंघट और बुर्का को सामाजिक मर्यादा का इसी लिये प्रतीक माना गया है। नारी खुद भी सुरक्षित है। समाज भी सुरक्षित है। अर्धनग्नता युक्त वस्त्र को सारा समाज हेय दृष्टी से देखता है। बदजबानी करता है। पहनने वाले को इसका आभाष हो न हो लेकिन देखने वालाअन्दाजा लगा लेता है संस्कार विहीन परिवार का यह नमूना है। आधुनिकता के नाम पर फ़टी जीन्स छोटी टॉप पहनकर अर्धनग्न हालत में फैशन के नाम पर स्मरण समाज में विकृति पैदा करना भारतीय संस्कृति तो कत्तई नहीं है। जीवन भी गिटार या वीणा जैसा वाद्य यंत्र है, ज्यादा कसना भी गलत है और ज्यादा ढील छोड़ना भी गलत है। हर हालत में सम्हाल कर रखने पर ही संस्कारिक मधुर आवाज निकालता है। संस्कार की जरूरत आधुनिक होते समाज को है, गाड़ी के दोनों पहिये में संस्कार की हवा चाहिए, एक भी पंचर हुआ तो जीवन डिस्टर्ब होगा। नग्नता यदि आधुनिक होने की निशानी है, तो सबसे मॉडर्न जानवर है जिनकी संस्कृति में कपड़े ही नही है। अतः जानवर से रेस न करें, सभ्यता व संस्कृति को स्वीकारें। कुत्ते को अधिकार है कि वह कहीं भी यूरिंन पास कर सकता है सभ्य इंसान को यह अधिकार नहीं है। उसे सभ्यता से बन्द टॉयलेट उपयोग करना होगा। इसी तरह पशु को अधिकार है नग्न घूमने का, लेकिन सभ्य स्त्री या पुरुष को उचित वस्त्र का उपयोग सार्वजनिक जीवन में करना ही होगा।
सार्वजनिक जीवन में मर्यादा न लांघें, सभ्यता से रहें।आजादी विचारों में होनी चाहिये, आजादी देश, धर्म, परिवार हित में होने वाले कार्यो में होनी चाहिये। जहाँ रानी पद्मनी 16000 हजार रानियों के साथ जौहर कर लेती है ताकि किसी की बुरी दृष्टि तक ना पड़ पाए। आज उसी देश मे नग्नता के बाजार लगने लगे हैं। जहाँ पूरा विश्व हमारी संस्कृति अपना रहा है वहाँ हम अपनी मर्यादाओं को भूल रहे है। कहां जा रहे हैं हम? सोचिए।आप अपने बच्चों में संस्कार भारतीय सभ्यता धर्म कर्म को समाहित करें वर्ना आने वाला कल विकृत समाज का निर्माण करने में गुरेज नहीं करेगा। हम सुधरेंगे जग सुधरेगा के फार्मुले को आत्मसात करें। पाश्चात्य सभ्यता के समागम से दूरी बनावे भविष्य सुरक्षित रहेगा।
जयहिंद🙏🏻🙏🏻
जगदीश सिंह, मऊ
मो0-7860503468
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