2 दिसंबर 1984 की रात भारत ही नहीं, बल्कि दुनिया ने औद्योगिक इतिहास की सबसे भयावह त्रासदी देखी। भोपाल में यूनियन कार्बाइड फैक्ट्री से लीक हुई मिथाइल आइसोसाइनेट गैस ने कुछ ही घंटों में हजारों लोगों की जान ले ली और लाखों लोगों को ऐसे घाव दे दिए जो आज भी पूरी तरह भर नहीं पाए हैं। हर वर्ष 2 दिसंबर को भोपाल गैस त्रासदी स्मृति दिवस इसी पीड़ा, सीख और चेतावनी को याद करने के लिए मनाया जाता है। यह दिन केवल शोक का नहीं, बल्कि यह स्मरण है कि उद्योगों में सुरक्षा मानकों की अनदेखी मानव जीवन के लिए कितनी भयावह हो सकती है। उस रात हजारों लोग नींद में ही मौत के आगोश में समा गए, अनेक परिवार उजड़ गए और पीढ़ियाँ इस जहरीली गैस के प्रभाव को सहन करने को विवश हो गईं।
भोपाल गैस त्रासदी ने दुनिया को यह समझा दिया कि औद्योगिक विकास यदि सुरक्षा और पर्यावरण संरक्षण के बिना किया जाए, तो उसका परिणाम मानवता के लिए विनाशकारी हो सकता है। इस घटना के बाद देश में पर्यावरण सुरक्षा कानूनों को सुदृढ़ किया गया, औद्योगिक इकाइयों की निगरानी बढ़ाई गई और पर्यावरणीय प्रभाव मूल्यांकन को अनिवार्य बनाया गया। लेकिन आज भी कई स्थानों पर लापरवाही और नियमों की अनदेखी जारी है, जो इस त्रासदी की याद दिलाती है कि हमें किसी भी कीमत पर ऐसी भूल दोहरानी नहीं चाहिए।
भोपाल की घटना केवल एक जगह की दुर्घटना नहीं, बल्कि वह सबक है जो हर उद्योग, हर संस्था और हर नागरिक को समझना चाहिए। आधुनिक दौर में उद्योगों की संख्या बढ़ी है, रसायनिक इकाइयाँ तेजी से फैल रही हैं और शहरीकरण अपने चरम पर है। ऐसे में सुरक्षा मानकों का पालन और भी महत्वपूर्ण हो गया है। गैस रिसाव, प्रदूषण, रासायनिक अपशिष्ट और पर्यावरणीय लापरवाहियाँ आज भी कई जगह चिंता का विषय बनी हुई हैं। त्रासदी स्मृति दिवस हमें यह सोचने पर मजबूर करता है कि सुरक्षित कार्यप्रणाली, पर्यावरणीय संतुलन और मानवीय संवेदनशीलता—तीनों को साथ लेकर ही विकास संभव है।
आज भी भोपाल के हजारों प्रभावित लोग बीमारियों, शारीरिक विकलांगता, सांस संबंधी समस्याओं और मानसिक आघात से जूझ रहे हैं। नई पीढ़ियों पर भी इसके प्रभाव देखे जा रहे हैं। यह तथ्य बताता है कि एक रासायनिक दुर्घटना केवल तत्काल क्षति नहीं पहुँचाती, बल्कि उसका असर आने वाले दशकों तक समाज को प्रभावित करता है। इसलिए उद्योगों में सुरक्षा उपकरणों, अलार्म सिस्टम, आपदा प्रबंधन और कर्मचारी प्रशिक्षण को सर्वोच्च प्राथमिकता देना आवश्यक है। साथ ही सरकार, प्रशासन और स्थानीय समाज को मिलकर यह सुनिश्चित करना चाहिए कि किसी भी स्थान पर ऐसी दुर्घटना की पुनरावृत्ति न हो।
भोपाल गैस त्रासदी स्मृति दिवस हमें मानव जीवन की महत्ता, पर्यावरण संरक्षण की आवश्यकता और सुरक्षा के प्रति सर्वोच्च जिम्मेदारी की याद दिलाता है। यह दिन हमें सिखाता है कि विकास तभी सार्थक है जब वह सुरक्षित हो, मानवीय हो और पर्यावरण के प्रति संवेदनशील हो। इस अवसर पर हम सभी को संकल्प लेना चाहिए कि उद्योग, तकनीक और विकास के साथ-साथ हम मानवता और प्रकृति के संरक्षण को भी सर्वोच्च प्राथमिकता देंगे, ताकि ऐसी त्रासदी फिर कभी न हो और आने वाली पीढ़ियाँ सुरक्षित और स्वस्थ वातावरण में जीवन व्यतीत कर सकें।
पूर्व अध्यक्ष, फौजदारी अधिवक्ता संघ, बलिया (उ.प्र.)



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