विश्व एड्स दिवस हर वर्ष 1 दिसंबर को पूरी दुनिया में इस उद्देश्य के साथ मनाया जाता है कि लोग HIV/AIDS के प्रति जागरूक हों, इससे जुड़े मिथकों को तोड़ा जाए और संक्रमित व्यक्तियों के प्रति संवेदनशीलता एवं सहयोग की भावना पैदा हो। 1988 में पहली बार मनाए गए इस दिवस का मकसद था कि दुनिया एकजुट होकर इस महामारी से लड़ने की दिशा में ठोस कदम उठाए। आज भी यह दिन केवल एक औपचारिकता नहीं, बल्कि मानवता के लिए धूल-धूसरित वास्तविकताओं को सामने लाने और नई सोच विकसित करने का अवसर है।
HIV/AIDS केवल एक बीमारी नहीं, बल्कि एक सामाजिक चुनौती है जो शरीर से अधिक मानसिक और सामाजिक स्तर पर व्यक्ति को प्रभावित करती है। भारत जैसे विशाल और विविधता वाले देश में एड्स से संबंधित जागरूकता बेहद महत्वपूर्ण है। अनेक बार शर्म, डर, गलत धारणाएँ और सामाजिक भेदभाव के कारण लोग जांच कराने से कतराते हैं, जिससे संक्रमण और बढ़ जाता है। विश्व एड्स दिवस इन सभी कुरीतियों और भ्रांतियों को दूर करने का संदेश देता है।
विश्व स्वास्थ्य संगठन (WHO) और UNAIDS के अनुसार, समय पर इलाज होने पर HIV संक्रमित व्यक्ति सामान्य और लंबा जीवन जी सकता है। एंटी रेट्रोवायरल थेरेपी (ART) ने चिकित्सा क्षेत्र में क्रांतिकारी बदलाव लाया है, जिसके जरिए वायरस को नियंत्रित रखा जा सकता है। भारत में भी केंद्र और राज्य सरकारों द्वारा ART केंद्रों की संख्या बढ़ाई गई है, जिससे हजारों लोगों को नई आशा मिली है।
इस वर्ष विश्व एड्स दिवस की थीम “Let Communities Lead” समुदायों की भूमिका पर जोर देती है। इसका अर्थ है कि चिकित्सकीय सुविधा के साथ-साथ सामाजिक समर्थन, परिवार का सहयोग, जागरूकता अभियान और समुदायों में स्वीकृति का माहौल तैयार करना बेहद जरूरी है। समाज तभी सुरक्षित बन सकता है, जब लोग पूर्वाग्रहों और भेदभाव की दीवारें हटाकर संक्रमित व्यक्तियों को सामान्य जीवन देने में सहयोग करें।
एड्स की रोकथाम के लिए सबसे अहम है – सुरक्षित व्यवहार, नियमित जांच, साफ सुथरी जीवनशैली, जागरूकता और सही जानकारी। युवाओं में यह जागरूकता विशेष रूप से आवश्यक है क्योंकि संक्रमण का बड़ा हिस्सा अभी भी अनजाने जोखिमों के कारण फैलता है। विद्यालयों, महाविद्यालयों, स्वास्थ्य संस्थानों और सामाजिक संगठनों को मिलकर इस दिशा में व्यापक अभियान चलाने की आवश्यकता है।
विश्व एड्स दिवस हमें यह याद दिलाता है कि बीमारी से अधिक खतरनाक है समाज का वह डर, जो संक्रमित लोगों को अलग-थलग कर देता है। आज जरूरत है कि हम जागरूक बनें, दूसरों को जागरूक करें और HIV/AIDS से जुड़े मिथकों को खत्म करें। यह न केवल स्वास्थ्य का प्रश्न है, बल्कि मानवता के सम्मान, समानता और अधिकारों का भी सवाल है।
अंततः, एड्स के खिलाफ लड़ाई केवल दवाओं से नहीं जीती जा सकती; इसके लिए सामूहिक प्रयास, संवेदनशीलता, जागरूकता और सहयोग की आवश्यकता है। विश्व एड्स दिवस का संदेश स्पष्ट है—जानकारी ही सुरक्षा है, और संवेदनशीलता ही शक्ति। आइए, हम सब मिलकर इस वैश्विक अभियान का हिस्सा बनें और एक सुरक्षित, स्वस्थ तथा भेदभाव-मुक्त समाज बनाने में योगदान दें।
डॉक्टर संतोष कुमार सिंह ✍️
वरिष्ठ फिजिशियन, बलिया।



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