गुरु तेग बहादुर सिंह जी का शहादत दिवस पर विशेष :-
धर्म की राह में दिया सिर, पर सत्य से समझौता नहीं किया।
भारत के इतिहास में शौर्य, त्याग और मानवता का जितना उज्ज्वल अध्याय गुरु तेग बहादुर सिंह जी ने लिख दिया, वह आने वाली सदियों तक प्रेरणा का स्रोत रहेगा। उनका शहीदी दिवस केवल ऐतिहासिक तिथि नहीं, बल्कि सत्य, साहस और धार्मिक स्वतंत्रता के अमर संदेश का प्रतीक है। गुरु जी ने अपने महान बलिदान से यह सिद्ध कर दिया कि अत्याचार के सामने खड़ा होना ही सच्चा धर्म है, चाहे उसकी कीमत अपना शीश ही क्यों न हो।
गुरु तेग बहादुर सिंह जी सिख धर्म के नौवें गुरु थे। उनका व्यक्तित्व अत्यंत शांत, विनम्र, तपस्वी और मानवता की सेवा के लिए समर्पित था। इसलिए ही उन्हें ‘हिंद की चादर’ कहा गया—क्योंकि उन्होंने केवल सिखों का नहीं, बल्कि पूरे भारतवर्ष की सांस्कृतिक और धार्मिक अस्मिता की रक्षा का बीड़ा उठाया। उनका हृदय इतना विशाल था कि वे हर पीड़ित, सताए और असहाय व्यक्ति की वेदना को अपना कर्तव्य मानते थे।
सत्रहवीं शताब्दी में जब मुगल शासन की कठोर नीतियों ने कश्मीर के पंडितों को असहनीय संकट में डाल दिया, तब वे गुरु तेग बहादुर सिंह जी के पास पहुँचे। उन्होंने अत्याचार, जबरन धर्म परिवर्तन और धार्मिक दमन की पीड़ा सुनाई। गुरु जी ने उनकी बातें सुनकर तुरंत निर्णय लिया कि यदि किसी एक महापुरुष के बलिदान से लाखों लोगों का धर्म, अस्तित्व और सम्मान बचाया जा सकता है तो वह बलिदान अवश्य दिया जाना चाहिए। यह निर्णय केवल किसी समुदाय की रक्षा का नहीं था, बल्कि पूरे मानव समाज के अधिकारों और धार्मिक स्वतंत्रता की रक्षा का था।
गुरु जी को मुगल शासन की ओर से कई प्रस्ताव दिए गए—धर्म परिवर्तन, चमत्कार दिखाने या समर्पण करने के। परंतु गुरु तेग बहादुर सिंह जी ने एक भी प्रस्ताव को स्वीकार नहीं किया। उनका कहना था कि सत्य और धर्म कभी समझौते की राह नहीं चुनते। उनकी अडिग दृढ़ता से विचलित होकर अंततः 11 नवंबर 1675 को दिल्ली के चांदनी चौक में उनका बलिदान कर दिया गया। जिस स्थान पर उनके शीश को धड़ से अलग किया गया, वही स्थान आज गुरुद्वारा शीश गंज साहिब के रूप में आस्था, प्रेरणा और तप-त्याग के अमर प्रतीक के रूप में खड़ा है।
गुरु तेग बहादुर सिंह जी की शहादत विश्व मानवाधिकारों की रक्षा का सबसे बड़ा और प्राचीन उदाहरण है। यह अत्यंत अद्भुत है कि उन्होंने उन लोगों के लिए अपना जीवन न्योछावर किया, जिनसे उनका धर्म तक मेल नहीं था। उनका यह अद्वितीय बलिदान दुनिया को यह संदेश देता है कि :—
🔹धर्म की रक्षा केवल अपने समुदाय के लिए नहीं, बल्कि हर पीड़ित मनुष्य के लिए होनी चाहिए।
🔹अत्याचार के खिलाफ आवाज उठाना प्रत्येक मनुष्य का कर्तव्य है।
🔹सत्य को छोड़कर जीवन जीने से अच्छा है सत्य के लिए मर जाना।
गुरु जी की शिक्षाएँ आज भी उतनी ही प्रासंगिक हैं जितनी सदियों पहले थीं। ‘श्री गुरु ग्रंथ साहिब’ में संकलित उनकी बानी मनुष्य को निडरता, धैर्य, त्याग, समानता और ईमानदारी के मार्ग पर चलने की प्रेरणा देती है। उनकी प्रमुख सीख यह थी कि मनुष्य न किसी से डरे और न किसी को डराए—सच्चा धर्म यही है। वे कहते थे कि जीवन का मूल्य तभी है जब वह सत्य, सेवा और मानवता के लिए समर्पित हो।
गुरु तेग बहादुर सिंह जी का शहीदी दिवस हमें आत्मावलोकन का अवसर देता है। यह दिन हमें याद दिलाता है कि धर्म वही है जो मानवता की रक्षा करे, और साहस वही है जो सत्य के लिए बलिदान देने का हौसला रखे। गुरु जी का जीवन और शहादत आने वाली पीढ़ियों को हमेशा यह प्रेरणा देती रहेगी कि बलिदान महान है, पर उससे बड़ा है धर्म और सत्य का मार्ग। उनका अदम्य साहस और अमर त्याग भारतीय इतिहास की वह अमूल्य धरोहर है, जो युगों-युगों तक मानवता को मार्ग दिखाती रहेगी।
अयोध्या धाम (उ.प्र.)



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