शिक्षा मानव जीवन की आत्मा है, और शिक्षक उस आत्मा के सर्जक होते हैं। हर सभ्यता और संस्कृति में शिक्षक को सर्वोच्च स्थान दिया गया है। भारतीय परंपरा में गुरु को “ब्रह्मा, विष्णु और महेश” के समान माना गया है — जो सृष्टि की रचना, पालन और संहार तीनों का कार्य ज्ञान के माध्यम से करते हैं। इन्हीं अद्वितीय योगदानों के सम्मान में हर वर्ष 5 अक्टूबर को “विश्व शिक्षक दिवस” पूरे विश्व में मनाया जाता है।
विश्व शिक्षक दिवस का इतिहास और उद्देश्य
विश्व शिक्षक दिवस की शुरुआत वर्ष 1994 में यूनेस्को द्वारा की गई थी। यह दिन 5 अक्टूबर 1966 को अंतर्राष्ट्रीय श्रम संगठन और यूनेस्को द्वारा शिक्षकों की स्थिति से संबंधित अनुशंसा को अपनाने की स्मृति में मनाया जाता है। इस दिवस का उद्देश्य न केवल शिक्षकों के अमूल्य योगदान का सम्मान करना है, बल्कि शिक्षा के क्षेत्र में आने वाली चुनौतियों, संसाधनों की कमी, और शिक्षकों के अधिकारों की रक्षा पर भी वैश्विक संवाद को बढ़ावा देना है। हर वर्ष इस दिवस की एक विशिष्ट थीम होती है जो शिक्षा के वर्तमान दौर की चुनौतियों और समाधानों को रेखांकित करती है।
शिक्षक : समाज का आधार स्तंभ
शिक्षक वह दीपक हैं जो स्वयं जलकर दूसरों के जीवन को प्रकाशमान करते हैं। वे केवल ज्ञान ही नहीं देते, बल्कि मूल्य, संस्कार, और जीवन जीने की दिशा भी दिखाते हैं। एक शिक्षक बच्चे की सोच, स्वभाव और भविष्य को आकार देता है। महात्मा गांधी ने कहा था — यदि हम सच्चे शिक्षक पैदा कर सकें, तो राष्ट्र स्वतः महान बन जाएगा। भारत में शिक्षा को केवल करियर नहीं, बल्कि संस्कार का साधन माना गया है। चाणक्य और आचार्य सुष्रुत से लेकर रामकृष्ण परमहंस, सरस्वती शारदे और आधुनिक काल में डॉ. सर्वपल्ली राधाकृष्णन जैसे शिक्षकों ने शिक्षा को राष्ट्र निर्माण का माध्यम बनाया।
भारत में शिक्षक दिवस और इसका महत्व
भारत में 5 सितंबर को डॉ. सर्वपल्ली राधाकृष्णन के जन्मदिवस पर राष्ट्रीय शिक्षक दिवस मनाया जाता है। लेकिन 5 अक्टूबर का विश्व शिक्षक दिवस हमें यह अहसास कराता है कि शिक्षा का महत्व सीमाओं से परे है — यह पूरी मानवता को जोड़ने वाला सेतु है। आज जब तकनीक, कृत्रिम बुद्धिमत्ता और डिजिटल माध्यमों ने शिक्षा के स्वरूप को बदल दिया है, तब भी शिक्षक का महत्व अपरिवर्तनीय है।क्योंकि मशीनें जानकारी दे सकती हैं, पर “प्रेरणा” केवल एक शिक्षक ही दे सकता है।
बदलते समय में शिक्षकों की भूमिका
- मार्गदर्शक
- प्रेरक
- सुविधादाता
- मूल्यनिर्माताके रूप में समाज के हर स्तर पर अपनी भूमिका निभा रहा है।
शिक्षक अब केवल किताबों के अध्यापक नहीं, बल्कि डिजिटल शिक्षा, नैतिकता, सामाजिक उत्तरदायित्व और नवाचार के वाहक हैं।
शिक्षकों के सामने चुनौतियाँ
शिक्षा के क्षेत्र में तकनीकी प्रगति के बावजूद शिक्षकों को कई चुनौतियों का सामना करना पड़ता है —
- संसाधनों की कमी और असमानता
- डिजिटल अंतर
- शिक्षा का व्यावसायीकरण
- विद्यार्थियों में ध्यान और अनुशासन की कमी
- सामाजिक मान-सम्मान में कमी
इन चुनौतियों के बावजूद, शिक्षक अपनी प्रतिबद्धता और समर्पण से समाज को सही दिशा देते रहते हैं।
निष्कर्ष :
एक शिक्षक केवल ज्ञान का प्रदाता नहीं, बल्कि जीवन का निर्माता होता है। विश्व शिक्षक दिवस हमें यह याद दिलाता है कि हर सफल व्यक्ति के पीछे किसी न किसी शिक्षक का हाथ होता है। आज आवश्यकता है कि हम अपने शिक्षकों का सम्मान केवल एक दिन नहीं, बल्कि हर दिन करें—उनके विचारों, उनके मूल्यों और उनके सपनों को साकार करके।
“शिक्षक वह मशाल है जो अंधकार को मिटाकर ज्ञान का प्रकाश फैलाती है।”



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