लोक आस्था और सूर्य उपासना के महापर्व छठ का दूसरा दिन “खरना पूजा” के रूप में मनाया जाता है। यह दिन आत्मशुद्धि, संयम और भक्ति का अद्भुत संगम है। खरना पूजा व्रती के लिए अत्यंत पवित्र दिन होता है, क्योंकि इसी दिन से वह पूर्ण निर्जल उपवास की शुरुआत करते हैं।
सुबह से ही व्रती स्नान-ध्यान कर दिनभर व्रत रखता है और पूरे घर का वातावरण पवित्र और सात्त्विक बना रहता है। संध्या के समय मिट्टी के चूल्हे पर आम की लकड़ी से खीर (गुड़ और चावल की), रोटी और केले का प्रसाद तैयार किया जाता है। यह प्रसाद कांस या मिट्टी के बर्तनों में बनता है, जो पवित्रता और परंपरा का प्रतीक है।
सूर्यास्त के बाद व्रती स्नान कर विधिपूर्वक खरना की पूजा करते हैं। वे भगवान सूर्यदेव और छठी मइया का स्मरण करते हुए प्रसाद अर्पित करते हैं और फिर उसे ग्रहण करते हैं। इसी क्षण से व्रती अगले 36 घंटे तक निर्जल और निराहार व्रत में प्रवेश करते हैं — यह तप, आस्था और मनोबल का सर्वोच्च उदाहरण है।
खरना पूजा केवल धार्मिक अनुष्ठान नहीं, बल्कि मानव आत्मा की शुद्धि और आत्मसंयम की साधना है। यह हमें सिखाता है कि भक्ति तभी सार्थक है जब मन और कर्म दोनों पवित्र हों।
छठ का खरना दिवस हर उस मनुष्य के लिए प्रेरणा है जो जीवन में अनुशासन, संयम और श्रद्धा को सर्वोपरि मानता है। यही कारण है कि यह पर्व आज भी लोक जीवन की आस्था और एकता का प्रतीक बना हुआ है।


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