विश्व आपदा नियंत्रण दिवस : आपदा नहीं, चेतावनी है सुधार का अवसर


हर वर्ष 13 अक्टूबर को विश्वभर में विश्व आपदा नियंत्रण दिवस  मनाया जाता है। इस दिवस का उद्देश्य प्राकृतिक एवं मानव निर्मित आपदाओं के प्रति जागरूकता फैलाना, जोखिमों को कम करना और समाज को आपदा प्रबंधन के प्रति सशक्त बनाना है। संयुक्त राष्ट्र संगठन ने इस दिवस की शुरुआत वर्ष 1989 में की थी ताकि सदस्य देशों में ऐसी नीतियों को बढ़ावा दिया जा सके जो आपदाओं से होने वाले नुकसान को न्यूनतम कर सकें।

आज जब जलवायु परिवर्तन, जनसंख्या वृद्धि, नगरीकरण और पर्यावरण असंतुलन के कारण आपदाओं का खतरा तेजी से बढ़ रहा है, तब आपदा नियंत्रण दिवस का महत्व और भी अधिक बढ़ गया है। भूकंप, बाढ़, चक्रवात, सूखा, भूस्खलन, महामारी या औद्योगिक दुर्घटनाएं—इन सबके सामने मानव जीवन, संपत्ति और पर्यावरण तीनों ही खतरे में पड़ जाते हैं। लेकिन सही योजना, प्रशिक्षण और जागरूकता के माध्यम से इन आपदाओं के प्रभाव को काफी हद तक कम किया जा सकता है।

भारत जैसे विशाल और विविध भौगोलिक परिस्थितियों वाले देश में आपदा प्रबंधन का दायरा अत्यंत व्यापक है। यहाँ हर क्षेत्र की अपनी विशेष चुनौतियाँ हैं — कहीं भूकंप का खतरा है तो कहीं बाढ़ और चक्रवात का। केंद्र और राज्य सरकारों द्वारा स्थापित राष्ट्रीय आपदा प्रबंधन प्राधिकरण, राज्य आपदा प्रबंधन प्राधिकरण और जिला आपदा प्रबंधन प्राधिकरण इस दिशा में सतत प्रयासरत हैं। इन संस्थाओं का मुख्य उद्देश्य आपदा के समय राहत कार्यों को सुचारू रूप से संचालित करना, त्वरित पुनर्वास सुनिश्चित करना और भविष्य की आपदाओं के लिए तैयार रहना है।

आपदा नियंत्रण केवल सरकारी कार्य नहीं है; यह समाज के प्रत्येक नागरिक का कर्तव्य है। विद्यालयों में आपदा प्रबंधन की शिक्षा, सामुदायिक प्रशिक्षण, मॉक ड्रिल, स्थानीय चेतावनी तंत्र और सामाजिक एकजुटता जैसे उपाय लोगों को सजग और आत्मनिर्भर बनाते हैं। “आपदा के समय सही दिशा में उठाया गया छोटा कदम भी कई जीवन बचा सकता है।”

इस वर्ष का विषय (थीम) भी आपदा जोखिम घटाने की वैश्विक प्रतिबद्धता को रेखांकित करता है। यह हमें याद दिलाता है कि विकास तभी टिकाऊ है जब वह आपदा प्रतिरोधी हो। भवन निर्माण, शहरी योजना, कृषि, स्वास्थ्य और शिक्षा—हर क्षेत्र में जोखिम न्यूनीकरण को शामिल करना अब समय की मांग है।

अंततः, आपदा नियंत्रण दिवस हमें यह सोचने का अवसर देता है कि हम कितने तैयार हैं। आपदाएं केवल विनाश नहीं लातीं, वे हमें हमारी गलतियों का एहसास कराती हैं और सुधार का मार्ग भी दिखाती हैं। यदि हम सामूहिक प्रयासों से आपदा प्रबंधन को जीवन का हिस्सा बना लें, तो कोई भी संकट हमारे विकास पथ को रोक नहीं सकता।

"आपदा तब ही संकट बनती है, जब तैयारी नहीं होती — जागरूक बनें, सुरक्षित रहें।"




धीरेन्द्र प्रताप सिंह ✍️ 

सहतवार, बलिया (उ.प्र.)

मो. नं. - 9454046303




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