हर वर्ष 13 अक्टूबर को अंतर्राष्ट्रीय सरल भाषा दिवस मनाया जाता है। इस दिवस का उद्देश्य दुनिया भर में सरकारी, सामाजिक, शैक्षणिक और व्यावसायिक संस्थानों में ऐसी भाषा के प्रयोग को बढ़ावा देना है, जिसे हर व्यक्ति आसानी से समझ सके। इस दिवस की शुरुआत वर्ष 2011 में कनाडा के दो भाषा विशेषज्ञों — जोसेफ किम्बल और क्लेयर सैलीज — ने की थी, जिन्होंने लोगों के बीच यह विचार रखा कि “भाषा का असली उद्देश्य समझ बनाना है, न कि उलझाना।”
आज के सूचना-प्रधान युग में जब हर जगह जटिल शब्दावली, कानूनी व तकनीकी शब्दों का प्रयोग बढ़ गया है, तब सरल भाषा की जरूरत पहले से कहीं अधिक है। सरकार की योजनाओं, न्यायिक आदेशों, स्वास्थ्य संबंधी जानकारी, बैंकिंग दस्तावेजों या शैक्षणिक सामग्री — सबमें यदि भाषा कठिन होगी तो आमजन तक उसका सही अर्थ नहीं पहुँच पाएगा। इसी कारण विश्व स्तर पर यह आंदोलन शुरू हुआ कि “भाषा जितनी सरल होगी, लोकतंत्र उतना मजबूत होगा।”
भारत जैसे विविध भाषाओं वाले देश में सरल भाषा का महत्व और भी गहरा है। यहाँ विभिन्न राज्यों, समुदायों और वर्गों के लोग अलग-अलग भाषाएँ बोलते हैं, ऐसे में यदि संवाद का माध्यम कठिन होगा तो गलतफहमी और दूरी बढ़ेगी। हिंदी सहित अन्य भाषाओं में सरल, स्पष्ट और सहज अभिव्यक्ति ही वह सेतु है जो शासन और जनता के बीच विश्वास कायम कर सकती है। सरकारी दस्तावेजों, न्यायिक आदेशों और शिक्षण सामग्री में सहज भाषा का प्रयोग वास्तव में जनसुलभ शासन का प्रतीक है।
सरल भाषा का अर्थ यह नहीं कि भाषा कमजोर या अल्पज्ञ हो जाए। बल्कि यह वह भाषा है जिसमें विचारों की गहराई तो बनी रहे, पर प्रस्तुति इतनी सीधी हो कि हर वर्ग का व्यक्ति उसे समझ सके। उदाहरण के लिए—“आपदा प्रबंधन के क्षेत्र में कार्यरत अधिकारी” कहने की बजाय “आपदाओं से निपटने वाले अधिकारी” कहना ज्यादा सहज है। यही है सरल भाषा की शक्ति—जटिलता में छिपे विचार को सभी तक पहुँचाना।
अंतर्राष्ट्रीय सरल भाषा दिवस हमें यह संदेश देता है कि भाषा का उद्देश्य केवल जानकारी देना नहीं, बल्कि समझ पैदा करना है। हर लेखक, पत्रकार, शिक्षक, अधिकारी और आम नागरिक की यह जिम्मेदारी है कि वह अपनी बात इस तरह रखे कि उसे पढ़ने या सुनने वाला तुरंत उसका आशय समझ सके।
आज जब समाज सूचना के महासागर में जी रहा है, तब सच्ची चुनौती यह नहीं कि जानकारी दी जाए, बल्कि यह है कि जानकारी सही और सरल ढंग से दी जाए। सरल भाषा ही लोकतंत्र की आत्मा है — यह संवाद को जीवंत, पारदर्शी और प्रभावशाली बनाती है।
“सरल भाषा, सशक्त समाज — यही है संवाद का सच्चा आधार।”
जीशान अहमद ✍️
बहेरी, बलिया (उ.प्र.)
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