ऋषि पंचमी : ऋषियों के प्रति श्रद्धा और पवित्रता का पर्व


भारतीय संस्कृति में पर्व-त्योहार केवल धार्मिक अनुष्ठान नहीं होते, बल्कि जीवन को शुद्ध, संतुलित और आध्यात्मिक बनाने का मार्ग भी दिखाते हैं। ऋषि पंचमी इन्हीं पावन अवसरों में से एक है, जो हर वर्ष भाद्रपद मास की शुक्ल पक्ष की पंचमी तिथि को मनाया जाता है। यह पर्व विशेष रूप से महिलाओं के लिए महत्वपूर्ण माना गया है, क्योंकि इसे ऋषियों के प्रति श्रद्धा व्यक्त करने और शरीर-मन की शुद्धि के लिए व्रत के रूप में मनाया जाता है।

ऋषि पंचमी का महत्व

ऋषि पंचमी का सीधा संबंध सप्तऋषियों से है। हिंदू धर्म में सप्तऋषियों को वेदों का रचयिता और धर्म-ज्ञान का स्रोत माना गया है। ऋषि पंचमी के दिन व्रती महिलाएँ इन ऋषियों की पूजा कर अपने जीवन में पवित्रता और सदाचार लाने का संकल्प लेती हैं।

  • इस दिन स्त्रियाँ उपवास रखकर सप्तऋषियों और अरुंधती का पूजन करती हैं।
  • मान्यता है कि यदि किसी स्त्री से मासिक धर्म काल में भूलवश कोई धार्मिक कार्य हो जाए तो इस व्रत के द्वारा वह दोष दूर हो जाता है।
  • यह पर्व संयम, तपस्या और शुद्ध जीवन का संदेश देता है।

व्रत और पूजा-विधि

  1. प्रातः स्नान कर शुद्ध वस्त्र धारण करें।
  2. घर के पवित्र स्थान पर सप्तऋषियों की प्रतिमा या चित्र स्थापित करें।
  3. हल्दी, अक्षत, पुष्प, धूप-दीप और नैवेद्य से विधिपूर्वक पूजा करें।
  4. महिलाएँ दिनभर उपवास रखती हैं और शाम को कथा सुनकर व्रत का समापन करती हैं।
  5. अगले दिन ब्राह्मणों या जरूरतमंदों को भोजन कराकर व्रत पूर्ण किया जाता है।

धार्मिक कथा

पुराणों में वर्णित कथा के अनुसार, एक ब्राह्मण परिवार की कन्या ने मासिक धर्म के दिनों में अज्ञानवश धार्मिक कार्य कर लिए थे। अगले जन्म में उसे अनेक कष्ट सहने पड़े। अंततः जब उसने ऋषि पंचमी का व्रत किया तो वह सभी पापों से मुक्त हो गई। तभी से यह व्रत स्त्रियों के लिए विशेष रूप से फलदायी माना गया।

आधुनिक जीवन में संदेश

ऋषि पंचमी केवल एक धार्मिक परंपरा नहीं है, बल्कि यह स्वच्छता, संयम और ऋषियों के प्रति कृतज्ञता का पर्व है। यह हमें स्मरण कराता है कि भारतीय ऋषियों ने समाज को ज्ञान, विज्ञान और संस्कृति का अमूल्य भंडार दिया। उनके प्रति श्रद्धा प्रकट करना हमारी सांस्कृतिक जिम्मेदारी है।

निष्कर्ष

ऋषि पंचमी का पर्व हमें जीवन में पवित्रता, अनुशासन और ऋषि परंपरा के प्रति सम्मान का संदेश देता है। यह व्रत न केवल धार्मिक आस्था को प्रबल करता है, बल्कि परिवार और समाज में नैतिक मूल्यों को भी सुदृढ़ बनाता है।







पंडित संतोष कुमार दुबे ✍️

गोपालपुर, सहोदरा

जिला - बलिया 

मो0 - 8896901261


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