भारत के इतिहास में कुछ शब्द ऐसे हैं, जो केवल शब्द नहीं, बल्कि एक सम्पूर्ण भावना हैं। ‘वंदे मातरम्’ ऐसा ही एक मंत्र है — जो हर भारतीय के हृदय में राष्ट्रभक्ति की ज्वाला प्रज्वलित करता है। वर्ष 2025 में जब ‘वंदे मातरम्’ के 150 वर्ष पूर्ण हो रहे हैं, यह अवसर न केवल उत्सव का है बल्कि उन भावनाओं को स्मरण करने का भी है जिन्होंने इस गीत को भारत की आत्मा का प्रतीक बना दिया।
रचना की पृष्ठभूमि : मातृभूमि के प्रति अटूट प्रेम
उनके शब्दों में मातृभूमि किसी भौगोलिक भूमि का टुकड़ा नहीं थी, बल्कि ‘माँ’ के रूप में पूज्यनीय, जीवंत शक्ति का प्रतीक थी — जो अपने संतानों से समर्पण और सेवा की अपेक्षा करती है।
आज़ादी के आंदोलन की प्रेरणा
‘वंदे मातरम्’ ब्रिटिश शासन के विरुद्ध संघर्ष का नारा बन गया। स्वतंत्रता संग्राम के दिनों में यही गीत भारत की आत्मा की आवाज़ था।
1905 के बंग-भंग आंदोलन में जब लोग अंग्रेजों की नीतियों के विरोध में सड़कों पर उतरे, तो उनकी जुबान पर यही स्वर था — “वंदे मातरम्”।
संविधान में सम्मान और राष्ट्रभावना में स्थान
वंदे मातरम् : शाश्वत प्रेरणा
आज जब यह गीत 150 वर्ष पूरे कर रहा है, तो यह केवल अतीत की स्मृति नहीं, बल्कि भविष्य के संकल्प का प्रतीक है। यह हमें याद दिलाता है कि हमारी धरती, हमारी संस्कृति और हमारी एकता ही हमारी सबसे बड़ी शक्ति है।
वंदे मातरम् का उच्चारण आज भी वही भाव जगाता है जो स्वतंत्रता संग्राम के दिनों में जगाता था — देश के प्रति प्रेम, समर्पण और त्याग की भावना।
समापन : भावनाओं का अमर गीत
वंदे मातरम् हमारे राष्ट्रीय चेतना का अमर प्रतीक है। यह गीत न केवल हमारी आज़ादी की गाथा को जीवंत रखता है, बल्कि हमें यह भी सिखाता है कि जब तक माँ भारती की माटी से प्रेम रहेगा, तब तक भारत अमर रहेगा।
“वंदे मातरम्” — यह केवल एक गीत नहीं, बल्कि भारत की आत्मा की आवाज़ है। 🇮🇳
परिवर्तन चक्र समाचार सेवा ✍️


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