जेठ के लपलपात दुपहरी में
गाँव के अमराई में
कवनो घन तरु के छाईं में
बाँस के
टुटही खाट पर
गुदरी बिछा के
देहन अलसा के
भुखाइल पेट
उघारे-निघारे
अगर केहू सूतल होई
तs ऊ कवनो गरीब ना
बलुक नेवर के खान होई,
गाँव के गोंयड़े के
कवनो मेहनतकस किसान होई।
निछाछ निफीकिर
आसमान में
गदराइल मेघन के
गरजला से बेपरवाह
मन में धइले
एगो अजीब से चाह
पाँक से लेभराइल राह पर
लंगे देहि लंगे पाँव
डर के दूर फेंकत
मेहनत के मिठास के
करमठता से जोरत
अगर केहू
बढ़ल जात होई
तs ऊ कवनो
पागल-सनकी ना
बलुक करमजोगियन में
महान होई,
गाँव के गोंयड़े के
कवनो मेहनतकस
किसान होई।
पूष-माघ के हाड़ कँपाऊ
सीत में
हरियरी से लहलहात
खेतन के पिरीत में
सीत के निहारत
सीतलहरी के दुतकारत
खेते के डंडार पर
अलाव जरवले
आँखिन में
असरा के फूल उगवले
अगर केहू बइठल होई
तs ऊ कवनो हठी ना
बलुक आस में
जीये वालन के
सान होई,
गाँव के गोंयड़े के
कवनो मेहनतकस किसान होई।
डॉ. जनार्दन चतुर्वेदी 'कश्यप'✍️
राजपूत नेवरी, भृगुआश्रम
बलिया (उत्तर प्रदेश)
सचल दूरभाष - 9935108535
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