श्रावण मास आते ही समूचा उत्तर भारत शिवमय हो उठता है, और इस शिव आराधना की सबसे दिव्य धुरी बनती है काशी विश्वनाथ की नगरी। भारत की सांस्कृतिक राजधानी कहे जाने वाले वाराणसी में स्थित काशी विश्वनाथ मंदिर केवल एक धार्मिक स्थल नहीं, बल्कि करोड़ों श्रद्धालुओं की आस्था का केंद्र है।
काशी : जहाँ सांसें भी शिव नाम लेती हैं
कहते हैं, ‘काशी’ केवल शहर नहीं, बल्कि भगवान शिव का निवास है, और यही कारण है कि यहाँ जीवन और मृत्यु दोनों ही मोक्ष का द्वार बन जाते हैं। काशी विश्वनाथ का यह मंदिर अनादिकाल से भक्तों के लिए पवित्र तीर्थ है, और श्रावण मास में इसकी महिमा करोड़ों गुना बढ़ जाती है।
श्रावण मास और बाबा विश्वनाथ का महत्व
श्रावण मास भगवान शिव को प्रिय मास है। मान्यता है कि इस मास में शिवजी का जलाभिषेक करने से सभी पापों का नाश होता है और मोक्ष की प्राप्ति होती है। हर सोमवार को भक्तगण गंगाजल, बेलपत्र, धतूरा, भस्म आदि से बाबा का अभिषेक करते हैं। खास बात यह है कि श्रावण में काशी विश्वनाथ तक पहुंचने वाले श्रद्धालुओं की संख्या लाखों में होती है, और इसमें बड़ी भूमिका होती है—पूर्वांचल व बलिया जैसे जिलों से आने वाले कांवरियों की।
बलिया और पूर्वांचल की विशेष भागीदारी
बलिया, गाजीपुर, देवरिया, मऊ, आजमगढ़ जैसे जिलों से हजारों कांवरिए हर वर्ष गंगा तट पर जाकर जल भरते हैं और पैदल चलते हुए काशी पहुंचते हैं। यह यात्रा केवल कठिन साधना नहीं, बल्कि आस्था और निष्ठा का जीवंत उदाहरण होती है। बलिया के बैरिया, रसड़ा, सिकंदरपुर, मनियर, बांसडीह जैसे कस्बों से निकलने वाले जत्थों की विशेष पहचान होती है—भक्ति गीत, भगवा परिधान, जयकारों की गूंज और अद्भुत सामूहिक अनुशासन।
बलिया के बाबा दूधराम स्थान, बांसडीह शिव मंदिर, टाउन हाल शिवालय और रसड़ा स्थित महावीर मंदिर परिसर श्रावण में शिवभक्ति के प्रमुख केंद्र बन जाते हैं। वहाँ से श्रद्धालु काशी की ओर कूच करते हैं, जिनमें युवा, वृद्ध, महिलाएं और बच्चे सभी शामिल होते हैं।
काशी विश्वनाथ धाम का नया स्वरूप और श्रद्धालुओं को सौगात
हाल ही में काशी विश्वनाथ धाम कॉरिडोर का निर्माण हुआ, जिससे श्रद्धालुओं को सुगमता और दिव्यता दोनों का अनुभव मिलने लगा है। मंदिर प्रांगण अब विशाल, स्वच्छ और सुगठित हो गया है। बलिया जैसे दूरदराज के क्षेत्रों से आए श्रद्धालु भी अब आराम से दर्शन कर पाते हैं।
श्रावण में काशी की भक्ति-सरिता
श्रावण के हर दिन काशी में एक पर्व जैसा लगता है—हर गली में भजन, शिव तांडव, कथावाचन और महाआरती होती है। मणिकर्णिका घाट से लेकर दशाश्वमेध घाट तक हर रात दीपों की लौ बाबा के चरणों में अर्पित होती है। ये दृश्य पूर्वांचल के भक्तों के लिए केवल दर्शन नहीं, बल्कि आत्मिक अनुभव होता है।
समापन विचार : श्रद्धा, सेवा और शिवत्व का पर्व
श्रावण मास और काशी विश्वनाथ की यह यात्रा केवल एक तीर्थ यात्रा नहीं, बल्कि आत्मा को तपाकर शिव के समीप ले जाने का उपक्रम है। बलिया और पूर्वांचल के श्रद्धालु इस यात्रा को केवल परंपरा नहीं, बल्कि शिवसेवा का सौभाग्य मानते हैं। यह सांस्कृतिक एकता, सामाजिक अनुशासन और आध्यात्मिक शक्ति का संगम है।
इस श्रावण मास, आइए हम भी यह संकल्प लें कि केवल जल नहीं, मन की पवित्रता और हृदय की श्रद्धा से बाबा विश्वनाथ का पूजन करें—क्योंकि शिव केवल शंकर नहीं, वे साक्षात सत्य, सुंदर और मुक्तिदाता हैं।
हर हर महादेव!
जीरा बस्ती, बलिया।
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