काशी हिन्दू विश्वविद्यालय (बीएचयू) ईएनटी विभाग के विभागाध्यक्ष डॉ. एस.के. अग्रवाल से विशेष बातचीत

वाराणसी। चिकित्सा विज्ञान संस्थान, काशी हिंदू विश्वविद्यालय (IMS-BHU) ईएनटी (ओटोलैरिंगोलॉजिस्ट) विभाग के विभागाध्यक्ष व वरिष्ठ सर्जन डॉ0 शुशील कुमार अग्रवाल (डॉ. एस.के. अग्रवाल) ने एक खास मुलाकात में परिवर्तन चक्र समाचार-पत्र के संपादक को श्रवण बाधित बच्चों के लिए कॉक्लियर इम्प्लांट सर्जरी के बारे में विस्तृत रूप से बताया। प्रस्तुत है वार्ता के मुख्य अंश :-

परिवर्तन चक्र : IMS-BHU के ईएनटी विभाग में की जा रही कॉक्लियर इम्प्लांट सर्जरी किस प्रकार श्रवण बाधित बच्चों के लिए मददगार साबित हो रही है?

डॉ. अग्रवाल : यह सर्जरी उन बच्चों के लिए वरदान है जो जन्म से या किसी कारणवश सुनने की क्षमता से वंचित हैं। जब तीन साल के एक बच्चे ने पहली बार अपने पिता की आवाज़ सुनी, तो उसकी मुस्कान ने सभी को भावुक कर दिया। ऐसे कई उदाहरण हमें प्रेरित करते हैं।

परिवर्तन चक्र : कॉक्लियर इम्प्लांट क्या होता है और यह किन बच्चों के लिए सबसे अधिक उपयुक्त है?

डॉ. अग्रवाल : कॉक्लियर इम्प्लांट एक कृत्रिम इलेक्ट्रॉनिक उपकरण है जिसे कान के भीतरी हिस्से में शल्यचिकित्सा द्वारा लगाया जाता है। यह विशेष रूप से 0 से 6 वर्ष की आयु के बच्चों के लिए प्रभावी होता है क्योंकि इस उम्र में मस्तिष्क में भाषा और श्रवण विकास सबसे सक्रिय होता है। आदर्श रूप से, यह प्रत्यारोपण एक वर्ष की उम्र से पहले हो जाए तो बच्चा सामान्य भाषा कौशल बेहतर तरीके से सीख सकता है।

परिवर्तन चक्र : क्या यह सर्जरी आम लोगों के लिए सुलभ है?

डॉ. अग्रवाल : बिल्कुल। यह सर्जरी राज्य और केंद्र सरकार की विभिन्न स्वास्थ्य योजनाओं के तहत निःशुल्क उपलब्ध है। इससे आर्थिक रूप से कमजोर वर्ग के परिवारों को भी लाभ मिल रहा है।

परिवर्तन चक्र : IMS-BHU में बच्चों की पहचान और परामर्श के लिए क्या कोई विशेष व्यवस्था है?

डॉ. अग्रवाल : जी हां, हमारे विभाग में हर बुधवार को विशेष स्क्रीनिंग और परामर्श शिविर आयोजित किया जाता है, जिसमें श्रवण बाधित बच्चों की पहचान और उनके अभिभावकों को जागरूक करने का कार्य किया जाता है।

परिवर्तन चक्र : भारत में बच्चों में जन्मजात श्रवण हानि कितनी सामान्य है?

डॉ. अग्रवाल : भारत में हर 1000 नवजात शिशुओं में से लगभग 4 से 6 बच्चे जन्मजात श्रवण हानि से ग्रस्त होते हैं। यदि समय पर पहचान कर इलाज किया जाए तो उनकी ज़िंदगी पूरी तरह बदल सकती है। कई बच्चे अब सामान्य स्कूलों में पढ़ रहे हैं और सामाजिक जीवन में आत्मविश्वास के साथ भागीदारी कर रहे हैं।

परिवर्तन चक्र : IMS-BHU का यह प्रयास तकनीकी के साथ-साथ सामाजिक दृष्टि से कितना प्रभावशाली है?

डॉ. अग्रवाल : यह पहल तकनीकी रूप से तो महत्वपूर्ण है ही, लेकिन इससे पूर्वांचल, बिहार, झारखंड और नेपाल जैसे क्षेत्रों के बच्चों की ज़िंदगी में सुनने की एक नई रोशनी लौट रही है। यह सामाजिक समावेशन की दिशा में एक बड़ी उपलब्धि है।

परिवर्तन चक्र : ओपीडी में नाक, कान और गले से जुड़ी समस्याओं के लिए क्या सुविधा उपलब्ध है?

डॉ. अग्रवाल : हमारे ईएनटी विभाग की ओपीडी में हर बुधवार को किसी भी उम्र के मरीज नाक, कान और गले से संबंधित परामर्श और उपचार निःशुल्क प्राप्त कर सकते हैं।




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