लोककल्याण के देवता भगवान शिव की अनन्य भक्त मालवा की कुशल प्रशासक अहिल्याबाई होलकर के शासन में एक आदर्श कल्याणकारी राज्य की झलक मिलती हैं। एक कल्याणकारी राज्य उसे कहते है जिसमें शासन द्वारा जनता के उत्थान एवं कल्याण के लिए सकारात्मक प्रयास किया जाता हैं। राजनीतिक चिंतन में "अधिकतम लोगों के अधिकतम कल्याण" को सुनिश्चित करने की अवधारणा के साथ कल्याणकारी राज्य का विचार दुनिया में लोकप्रिय हुआ। एक कल्याणकारी राज्य में बेसहारा, बेबस, लाचार, गरीब और हांसिए पर खड़े लोगों को भाग्य और भगवान के भरोसे नहीं छोड़ा जा सकता है। एक साधारण परिवार में पली-बड़ी अहिल्याबाई होलकर ने अपने राज्य में भूमिहीनों, खेतिहर मजदूरों, महिलाओं, कोल भील एवं अन्य जनजातीय समुदायो के आर्थिक एवं सामाजिक उत्थान के लिए अत्यंत सराहनीय कार्य किया। मध्यकालीन भारतीय समाज को अनेक प्रकार की कुरीतियों और कुप्रथाओं ने जकड़ रक्खा था। जिसमें विधवाओं के साथ अपमान जनक व्यवहार एवं सती प्रथा सर्वाधिक घिनौनी कुप्रथा के रूप में विद्यमान थे। अहिल्याबाई होलकर ने विधवाओं को बेहतर और सम्मानजनक जीवन प्रदान करने तथा महिलाओं के लिए शिक्षा के अवसर उपलब्ध कराने के लिए साहसिक कदम उठाया। विधवाओं को सम्पत्ति का स्वामित्व दिलवा कर इसके उपयोग का अधिकार ऐतिहासिक निर्णय था। महिलाओं के अधिकारों के प्रति सजग सचेत रानी ने दरबार में महिलाओ की आवा-जाही को सरल बनाया। नि: संतान महिलाओं को अपने पसंद का दत्तक पुत्र चुनने का अधिकार दिलाया। इस दृष्टि से उनकी उत्तम शासन व्यवस्था को कल्याणकारी राज्य का प्रतिमान और उन्हें नारी सशक्तिकरण का शानदार हस्ताक्षर माना जा सकता हैं।
बिना किसी भेद-भाव के सभी वर्गो को विकास करने का समान अवसर उपलब्ध कराना, सभी लोगों को सुरक्षित एवं गरिमामय जीवन प्रदान कराना उनके शासन की प्राथमिकता थी। आज से तीन सौ साल पहले जब अधिकांश शासक भोग-विलास, वैभव एवं राजसी ठाट-बाट में मस्त एवं व्यस्त थे उस समय मालवा की रानी अहिल्याबाई समाज सुधार, कृषि सुधार, जल प्रबंधन, वन प्रबंधन, पर्यावरण संरक्षण, शिक्षा एवं जनकल्याण के क्षेत्र एक से बढ़कर एक नीतियों को जमीन पर उतारने का प्रयास कर रही थी। अनेक अद्वितीय लोक कल्याणकारी कार्यो के कारण लोक मानस में उन्हें आज भी मालवा सहित भारत में लोकमाता के रूप में याद किया जाता है। भारतीय इतिहास में शायद ही कोई महिला शासक होगी जिसे लोक माता के रूप में याद किया जाता है। पेशवा बाजीराव द्वितीय के विश्वास पात्र मराठा सरदार मल्हार राव होलकर की पुत्रवधू अहिल्याबाई होलकर का जीवन अद्भुत शौर्य, पराक्रम, साहस, साधना, संयम, सेवा समर्पण, संयम , दूरदर्शिता और सादगी का अद्वितीय उदाहरण हैं। उनका शानदार शासन लोक कल्याण के साथ-साथ सामाजिक न्याय, सांस्कृतिक राष्ट्रवाद एवं धार्मिक सहिष्णुता के लिए इतिहास में गर्व के जाना समझा जाता है।
31 मई 1725 को अहमदनगर के पास चांँडी गांव में एक साधारण परिवार में पैदा हुई अहिल्याबाई होलकर ने अपनी प्रतिभा, दूरदर्शिता और दूरगामी सोच से इतिहास में एक महान शासक में अपनी पहचान बनाई। पति खांडेराव की मृत्यु और बाद में मल्हार राव होलकर की मृत्यु के बाद मालवा के शासन की जिम्मेदारी अहिल्याबाई होलकर के कंधों पर आ गई। तमाम विपत्तियों के समय धैर्य और संयम का परिचय देते हुए उन्होंने मालवा क्षेत्र को नई दिशा और ऊंचाई प्रदान की। उनकी धार्मिक आस्था गहरी और गहन थी। लोक मानस की धार्मिक भावनाओं को संतुष्ट करने के लिए देश के मठ मंदिरो पूजा स्थलों एवं तीर्थ स्थलों के बेहतर प्रबंधन पर विशेष ध्यान दिया। मध्यकालीन भारत में संक्रमण काल के दौर में बाह्य आक्रमणकारियों ने अनेक मंदिरो को क्षतिग्रस्त कर दिया। अहिल्याबाई होलकर ने आक्रमणकारियों द्वारा क्षतिग्रस्त मंदिरों का जीर्णोद्धार कराया। पवित्र स्थलों पर विशेष ध्यान देने और बृहद स्तर पर निर्माण कार्य कराने के लिए उन्हें पुण्य श्लोका के रूप में याद किया जाता है। उस समय भारत राजनीतिक और प्रशासनिक दृष्टि से अवश्य अलग- अलग हिस्सों में बिखरा हुआ था परन्तु धार्मिक और सांस्कृतिक रूप से सम्पूर्ण भारत एक सूत्र में बंधा हुआ था। हमारे मठ मंदिर शिवालय और तीर्थ स्थल मंहज हमारी आस्था के केन्द्र नहीं रहें हैं अपितु संगीत, साहित्य, कला और संस्कृति के भी केन्द्र रहें हैं। अहिल्याबाई होलकर ने देशभर में मठ मंदिरो तीर्थ स्थलों का उचित प्रबंध कर सम्पूर्ण भारत में सांस्कृतिक एकता कायम करने का श्लाघनीय प्रयास किया। संक्रमण के दौर में जिन तीर्थ यात्राओं पर संकट आ गया था उन तीर्थ यात्राओं को अहिल्याबाई होलकर ने सहज सरल और सुगम बनाया।
अच्छा और कुशल प्रशासन बेहतरीन एवं उम्दा सूचना एवं संचार के साधनों पर निर्भर करता है। अहिल्याबाई ने बेहतरीन मजबूत सूचना संचार तंत्र का विकास किया था। जिसके माध्यम से पूरे देश की सूचनाएं त्वरित गति से प्राप्त हो जाए और गोपनीयता भी भंग न हो। उन्होंने अपने राज्य में बेहतरीन डाक व्यवस्था का निर्माण किया था। सूचना संचार माध्यमों का पर्याप्त विकास उनकी दूरदर्शिता का परिचायक है।
अहिल्याबाई होलकर के अंदर राजनीतिक सूझ-बूझ, कुशलता तो विद्यमान थी ही इसके साथ कूटनीतिक दक्षता भी उनके अंदर कूट कूट कर भरी हुई थी। अपनी कूटनीतिक दक्षता से कई बार अपने राज्य को युद्धो से बचा लिया। अनावश्यक युद्ध में उलझने से राज्य की आर्थिक क्षति होती है। अहिल्याबाई होलकर अनावश्यक युद्ध से परहेज़ करती थी परन्तु शत्रुओं को करारा जवाब देने और अपने राज्य की सुरक्षा को चाक चौबंद करने के अनेक इतंजाम किए। उन्होंने अपने अनेक शस्त्रागारों का निर्माण किया, तोपखाने की स्थापना की एवं रसद गोला बारूद का उत्तम प्रंबधन किया। सामरिक क्षेत्र में उनका अनूठा कार्य 500 महिला सैनिकों की टुकड़ी का गठन। नारी सशक्तिकरण की दृष्टि से उनके इस प्रयास को ऐतिहासिक माना जा सकता है।
किसी भी राज्य का समुचित, संतुलित और समग्र विकास उत्तम वित्तीय प्रबंधन, वित्तीय अनुशासन, उभरते उद्योग धंधों की स्थापना, व्यापार और वाणिज्य के व्यापक संभावनाओं को विकसित करने से होता है। अहिल्याबाई होलकर ने अपने राज्य में उत्तम वित्तीय प्रबंधन एवं व्यापार वाणिज्य की संभावनाओं का विकास कर संतुलित और समग्र विकास की राह प्रशस्त किया। भारत में खेती किसानी के साथ बुनकरी उद्योग सिंधु घाटी सभ्यता काल से प्रचलित है एवं जीविकोपार्जन का महत्वपूर्ण साधन रहा है। अहिल्याबाई होलकर ने अपने राज्य में बुनकरी उद्योग को बढ़ावा देने के लिए वाराणसी से बुनकरों को बुलाकर मालवा के माहेश्वर नामक स्थान पर बसाया। स्वयं सहायता समूहों द्वारा संचालित यहां के बुनकरों के हुनरमंद हाथो से बनी साड़ियां पुरी दुनिया में माहेश्वरी साड़ी के रूप में विख्यात हूई।
मनोज कुमार सिंह ✍️
लेखक/साहित्यकार/स्तम्भकार
अध्यक्ष-जन संस्कृति मंच मऊ।
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