अपना अस्तित्व खोता जा रहा है राष्ट्रीय वृक्ष बरगद : डाॅ0 गणेश कुमार पाठक


26 मई को वट सावित्री व्रत पूजा पर विशेष :-

'वट-वृक्ष', जिसे आम बोल-चाल की भाषा में 'बरगद' का वृक्ष कहा जाता है, अपना अस्तित्व खोता जा रहा है। निरन्तर बरगद वृक्ष की कटाई होने एवं नये वृक्ष नहीं लगाए जाने के कारण दिन-प्रति-दिन इसकी संख्या में  कमी आती जा रही है, जब कि 'बरगद' का वृक्ष भारत का राष्ट्रीय वृक्ष है।

बरगद का वृक्ष एक विशेष धार्मिक-आध्यत्मिक महत्व है। यह वृक्ष बड़ा होकर विशाल स्वरूप ग्रहण कर लेता है।किंतु इसका बीज अत्यन्त सूक्ष्म होता है। धार्मिक-अध्यात्मिक मान्यता के अनुसार बरगद वृक्ष की छाल में 'विष्णु', जड़ों में ब्रह्मा एवं शाखाओं में महेश (शिव) का वास होता है। बरगद वृक्ष की आयु बहुत अधिक होती है। वैज्ञानिकों के अनुसार इसकी आयु 500 से 1000 वर्ष तक होती है। अपने देश में अनेक स्थानों पर 400 वर्ष से भी अधिक पुराने बरगद के वृक्ष प्राप्त हुए हैं। 150 वर्ष से अधिक आयु वाले बरगद के वृक्ष को हेरिटेज वृक्ष अर्थात् विरासत वृक्ष मानकर उसकी सुरक्षा एवं संरक्षा के विशेष उपाय किए जा रहे हैं, याकि पुराने वृक्षों को बचाया जा सके।

भारत में महिलाओं द्वारा वट वृक्ष की पूजा विशेष तौर पर की जाती है। इस वृक्ष की विशालता एवं आयु दीर्घता के कारण ही महिलाओं द्वारा इसे अखण्ड सौभाग्य का प्रतीक मानकर ज्येष्ठ मास की अमावस्या को विशेष पूजा-अर्चना की जाती है। बरगद वृक्ष को शिव स्वरूप मानकर महिलाओं द्वारा अनेक अवसरों पर पूजा की जाती है। 

प्रयागराज में संगम के किनारे एक बहुत पुराना बरगद का वृक्ष है, जिसे 'वट- वृक्ष' कहा जाता है। ऐसी मान्यता है की प्राचीन काल से ही यह वट वृक्ष अपना अस्तित्व बनाए हुए है। इस वट-वृक्ष का विशेष धार्मिक-आध्यत्मिक एवं ऐतिहासिक महत्व है, जिसकी पूजा महिलाओं द्वारा ज्येष्ठ मास की अमावस्या को अत्यन्त श्रद्धापूर्वक की जाती है। कभी नष्ट न होने के कारण ही महिलाएं इस वट-को वृक्ष अखण्ड सौभाग्य का प्रतीक मानकर इसकी पूजा करती हैं।

एक औषधीय वृक्ष के रूप में भी बरगद के वृक्ष का विशेष महत्व है। इस वृक्ष की जड़, तना, शाखाएं, छाल, फल, बीज, पत्तियां, फल लगने से पूर्व की कली एवं दूध सब कुछ उपयोगी होता है, जिससे अनेक प्रकार उपयोगी औषधियां तैयार की जाती हैं। बरगद के वृक्ष से पर्याप्त मात्रा में आक्सीजन भी प्राप्त होता है। इससे 80 प्रतिशत तक आक्सीजन प्राप्त होता है, जससे इसे जीवनदायिनी वृक्ष भी कहा जाता है।

दु:ख तो इस बात का है कि प्रत्येक दृष्टि से उपयोगी एवं महत्वपूर्ण तथा हमारे सनातन संस्कृति में अपनी अमिट पहचान बनाये होने के बाद भी यह राष्ट्रीय वृक्ष बरगद जिस तीव्र गति से काटा जा रहा है कि इसको अब अपना अस्तित्व बचाना भी मुश्किल हो गया है। गांवों में भी बरगद के वृक्ष बहुत कम दिखाई दे रहे हैं। सड़कों के किनारे लगे बरगद के वृक्ष सड़कों के चौड़ीकरण के शिकार हो गए। किंतु उनके स्थान पर बरगद के वृक्ष लगाए नहीं गये और न तो कोई और वृक्ष ही लगाए गये। आक्सीजन प्रदान करने वाले वृक्ष पीपल एवं पाकड़ भी समाप्त होते जा रहे हैं। सम्भवत: इसके महत्व के देखते हुए ही हमारी सरकार की वृक्षारोपण की योजनाओं में अब हरीसंकरी वृक्ष अर्थात् बरगद, पीपल एवं पाकड़ को एक साथ लगाने की योजना चलाई जा रही है, किंतु अभी इसका अपेक्षित लाभ नहीं मिल रहा है। ऐसी योजनाओं को सफल बनाने में हम नागरिकों का भी कर्तव्य  होना चाहिए कि अधिक से अधिक ऐसे वृक्ष लगाएं एवं बड़े होने तक उनकी देख-रेख भी करें। ऐसी वृक्षारोपण की योजनाओं में स्वयंसेवी संस्थाओं एवं पर्यावरण संरक्षण से जुड़े संगठनों कै विशेष सहभागिता निभानी चाहिए और इसके लिए जन-जागरूकता उत्पन्न कर जन-जन को वृक्षारोपण से जोड़ना चाहिए, अन्यथा वह दिन दूर नहीं, जब हम सांस लेने हेतु आक्सीजन के लिए तड़पने लगेंगे और अंतत: कुछ नहीं कर पायेंगे।



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