“मेरा वोट–मेरी आवाज–मेरा लोकतंत्र”


18वीं लोकसभा का आगाज निर्वाचन आयोग के द्वारा अधिसूचना जारी होने के बाद चुनावी रणभूमि में राजनीतिक पार्टिया पूरी तरह से उतर गयी है। चुनावी शंखनाद राजनीतिक युद्ध के मैदान मे हो चुका है, दुदुंभी बज रही है जिसमे राजनीतिक पार्टी के सेनापति तथा सेनाये परस्पर एक-दूसरे के सामने चुनावी एंव शब्द भेदी एंव तीखे बाण अंधाधुंध एक दूसरे पर चलाये जा रहे है वही दूसरी तरफ एक दूसरे के ऊपर आरोप-प्रत्यारोप का दौर भी जारी है दूसरी तरफ राजनीतिक पार्टिया विकास के अतिरिक्त जाती-धर्म, पंथ, मजहब का अपनी चुनावी नैया को वैतरणी पार लगाने के लिए बखूबी सहारा ले रही है, लेकिन यह स्वस्थ एंव सुन्दर लोकतंत्र की आधारशिला के लिए अत्यंत घातक है। 

विकास के मुद्दे, पर पार्टिया चर्चा न करते हुये धार्मिक उन्माद, ध्रुवीकरण, तुष्टीकरण की राजनीति के बहाने अपनी सरकार बनाने की कोशिश में लगी हुई है। चुनावी जुमलेबाजी, जातिववाद, पूंजीवाद के नारे भी बड़े जोर-शोर से विभिन्न पार्टियों तथा उनके नेताओ के द्वारा लगाये जा रहे है। चुनाव आयोग ने अपनी चुनावी तैयारियों को अंतिम रूप देते हुए लोकसभा चुनाव को निष्पक्ष कराने के लिए पूरी चुनाव प्रक्रिया को सात चरणों के तहत कराने की घोषणा किया है इसके चुनावी भाषणों एंव धार्मिक उन्माद फैलाने वाले नेताओ पर भी पैनी नजर रखी जा रही है। ईवीएम मशीन के द्वारा संचालित होने वाले लोकसभा चुनाव सात चरणों के अंतर्गत सम्पन्न होने वाले चुनावों के अंतर्गत अभी तक चार चरणों के चुनाव समाप्त हो गये है। परंतु हाल ही मे सम्पन्न हुए चार चरणों के चुनाव मे मतदान प्रतिशत औसतन 60 फीसदी भी पार नहीं कर पाया जो मतदान के प्रति आम- जन की निष्क्रियता तथा चुनाव के प्रति उनकी उदासीनता को स्पष्ट रूप से परिभाषित करता है, परंतु यह किसी भी लोकतान्त्रिक देश के लोकतंत्र के लिए अत्यंत दुर्भाग्यपूर्ण  संकेत है। लोकतंत्र मे आम जनता के द्वारा आम जनता के लिए जनप्रतिनिधि चुनाव की एक प्रक्रिया है जो परस्पर सहभागिता, तथा विश्वास, जन की भावना पर केंद्रित होता है। लोकतान्त्रिक प्रक्रिया मे आम जन के भरोसे एंव विश्वास की कसौटी पर खरा उतरने की जिम्मेदारी चुने हुए जनप्रतिनिधि एंव सरकार की पूर्ण रूप से होनी चाहिए साथ ही निर्मित योजना जनता की आवश्यकताओ के अनुरूप एंव विकास केंद्रित होने पर ही उनका रुझान बढ़ेगा। 

वर्तमान लोकतंत्र मे आज भरोसे का संकट उत्पन्न हो गया है क्योंकि नेता की कथनी और करनी मे लंबा विभेद उत्पन्न हो गया है जिससे सामान्य नागरिक का अपने चुने हुए जनप्रतिनिधि के प्रति असंतोष एंव अविश्वास का भाव जागृत हो गया है, शायद यही वजह है कि आम जन का जनप्रतिनिधियों के प्रति चुनावों मे निष्क्रियता देखने को मिल रही है। परंतु इसका निदान केवल वोट से अपने आप को वंचित रखना नहीं है अपितु देश एंव राष्ट्र हीत मे कार्य करने वाली सरकारों एंव जन-नेता के चुनाव की प्रक्रिया मे अपनी हिस्सेदारी को बढ़-चढ़ कर निभाने के अलावा चुनाव को पर्व की तरह मनाने की नितांत आवश्यकता है जिसमे सभी जाती- वर्गों, धर्मों की पूर्व रूप से सहभागिता संभव हो सके। लोकतंत्र की मजबूती के लिए किसी भी लोकतान्त्रिक देश में चुनाव तथा वोट का अधिकार संविधान द्वारा प्रदत्त अधिकार स्वस्थ सरकार चुनने की स्वतंत्रता का सबड़े बड़ा अधिकार है। वोट प्रतिशत तभी बढ़ेगा जब आम जन की सहभागिता को चुनाव मे अत्याधिक रूप से सुनिश्चित करनी पड़ेगी। 

देश भर में वोट प्रतिशत को बढ़ाने के लिए निर्वाचन आयोग भारत सरकार के द्वारा चुनाव पूर्व से जिलेवार आलाधिकारियों के द्वारा जन-जागरण के माध्यम से हर बूथों तथा जिलों मे वोट को शत प्रतिशत कराने के लिए अभियान जोरों पर चलाया जा रहा है उसके बावजूद वोट प्रतिशत अभी तक औसतन फर्स्ट डिवीजन का आंकड़ा पार नहीं कर पाया है जो अत्यंत ही चिंता का विषय है। उदाहरण के तौर पर यहा एक तथ्य के माध्यम से प्रस्तुत करू तो कोई अतिशयोक्ति नहीं होगी क्योंकि विद्यार्थी जीवन मे हर विद्यार्थी तथा उसके अभिभावक की पहली चाहत यही होती है कि वह अपने महाविद्यालय तथा विश्वविद्यालय मे प्रथम स्थान हासिल करे साथ ही कम से कम 60 प्रतिशत से अधिक अंकों के साथ उत्तीर्ण हो। दूसरी ओर नीति निर्धारण करने वाली सरकारों के चयन एंव चुनाव बारी जब आती है तब मतदान के प्रति हमारा उत्साह तथा प्रयास प्राय: कमजोर पड़ने लगता है। आपको भली-भांति ज्ञात एंव अवगत होना चाहिए कि लोकतंत्र की प्रक्रिया से गुजरकर बनने वाली सरकारे ही आपके स्वास्थ्य, सड़क, पढ़ाई, फीस के बजट का निर्धारण एंव क्रियान्वयन करती है परंतु आज संस्थानों मे पढ़ने वाले युवा छात्रों- छात्राओ के अंदर यह अवधारणा का विकास पनप नहीं पा रहा है कि हमारी भागीदारी लोकतंत्र मे कैसे बढ़नी चाहिए। एक तथ्य यह भी वर्तमान परिदृश्य मे देखने एंव सुनने को मिल ही जाता है कि राजनीति गंदी प्रक्रिया से गुजर रही है और युवा जब यह कहता हुआ फिरेगा की राजनीति से हमे कोई ताल्लुकात नहीं रखनी है तब वही इस देश का लोकतंत्र शिथिल पड़ने लगता है। 

वोट की ताकत का अंदाजा इस ऐतिहासिक घटना से आप लगा सकते है जब 1999 मे देश के दूसरी बार प्रधानमंत्री बने अटल बिहारी बाजपेयी जी की सरकार अविस्वास प्रस्ताव के कारण जनता द्वारा चुने गये सांसद प्रतिनिधि के सिर्फ एक वोट के कारण ही केंद्र मे सरकार गिर गयी थी। यह राजनीतिक घटनाक्रम आपके वोट की महत्ता को पूर्ण रूप से परिभाषित करने के लिए पर्याप्त है। इस लिए अपनी वोट के महत्व को प्रासांगिक बनाते हुए लोकतंत्र के महापर्व मे मत के रूप मे अपनी आहुति अवश्य प्रदान करे। किसी भी राष्ट्र के मुख्य धुरी मे युवाओ की भूमिका प्रमुख होती है, युवा सामाजिक, राजनैतिक तथा राष्ट्र की चेतना का केंद्र बिन्दु होता है। युवा शब्द को अगर उलट दिया जाये तो यह वायु हो जाएगा जिसका तात्पर्य वायु के समान वेग एंव विपरीत परिस्थितियों मे भी राष्ट्र एंव समाज के दायित्वों का निर्वहन करने की जिम्मेदारी का भार उठाने एंव नेतृत्व करने की दृढ़ लालसा होनी चाहिए। इस लिए आज जरूरत है कि युवा अपनी शक्तियों को पहचानते हुए सुशासन, राष्ट्रवाद, के दृढ़ सकल्पित नारों के साथ देश हीत-राष्ट्र हीत तथा राष्ट्र के पुनर्निर्माण करने की सोच रखने वाले संगठन के प्रति अपनी सहानुभूति रखे। इस चुनाव प्रक्रिया मे कुल 96.88 करोड़ मतदाताओं के द्वारा 18 लोकसभा के अंतर्गत 543 सांसदों के चुनाव की पूरी प्रक्रिया सात चरणों में सम्पन्न होने वाली है। अगर आकड़ों का जिक्र किया जाये तो इस बार के संसदीय चुनाव मे 20 से 29 साल के युवा मतदाता की संख्या तकरीबन 20 करोड़ के आस-पास है। वही दूसरी तरफ पहली बार अपने अधिकार का प्रयोग करने वाले नव मतदाताओ की संख्या 1.82 करोड़ है। अगर लोकसभा वार देखा जाये तो प्रत्येक लोकसभा सीट पर औसतन 35 हजार नये मतदाता पहली बार पंजीकृत हुए है। आँकड़े यह रेखांकित कर रहे है कि युवा जिधर चाहेंगे उधर चुनाव की दिशा एंव दशा को बदल सकते है। 

विश्व के सबसे बड़े गैर-राजनीतिक सामाजिक छात्र संगठन अखिल भारतीय विद्यार्थी परिषद के द्वारा वोट प्रतिशत को बढ़ाने के लिए महाविद्यालयों तथा विश्वविद्यालय परिसरों से लेकर जन-चौपाल के माध्यम से लोकतंत्र मे वोट के महत्व तथा राष्ट्र के नाम वोट करने की अपील वोट प्रतिशत को बढ़ाने मे जनता को प्रेरित करने का कार्य कर रही है। अगर निर्वाचन आयोग के प्रयास के बाद देखा जाये तो अखिल भारतीय विद्यार्थी परिषद विश्व का एक ऐसा गैर-राजनीतिक छात्र संगठन है जो राष्ट्र भावना से ओत-प्रोत होकर निस्वार्थ भाव से राष्ट्र की संवेदना को समाज के अंतिम पायदान पर खड़े व्यक्ति को जागरूक करने का कार्य कर रही है, इस अभियान मे राजनीतिक दल एंव उसके कार्यकर्ता अभी कोसों दूर है। 

कल्याण सिंह ✍️

शोध छात्र सब्जी विज्ञान 

अध्यक्ष छात्र परिषद, 

बांदा कृषि एंव प्रौद्योगिक 

विश्वविद्यालय, बांदा।        




                                                                                                                                                                     

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