*प्रकृति पर संकट*


1.  आज प्रकृति मायूस खड़ी है,

      विपदा भरी आन पड़ी है।।

2.  जल जमीन जीवन का नाश,

      जीव जंतु खग विहग निराश।।

3.  कूड़ो से पट रही जमीन,

     चारों तरफ है पालीथीन।।

4.  कूड़ा कचरा यत्र तत्र है,

     शीशा प्लास्टिक सर्वत्र है।।

5.  मिट्टी से घट रही उर्वरा,

     बंजर बन जा रही वसुंधरा।।

6.  अंधाधुंध रसायन पड़ता,

      जीवाश्म अब नहीं है सड़ता।।

7.  शीशा, पत्थर, पालीथीन,

      जल थल को कर दिया मालीन।।

8.  मृदा प्लास्टिक, पत्थर खाती,

      रसायनों से बंजर बन जाती।।

9.  बंजर भूमि न अन्न उपजाती,

      धन धान्य से दूर हो जाती।।

10. शहरी करण से खेती घटती,

       पत्थर प्लास्टिक शीट से पटती।

11. गोबर हरी खाद अब दूर,

       डाई यूरिया है भरपूर।।

12.  शहरों का जल मल व कचरा,

        अमृत जल में जाकर पसरा।।

13.   फैक्टरियों का दूषित पानी,

         जलीय तंत्र की करता हानि।।

14.   नदियां झीलें हुई मलीन,

        जो दिखती थी कभी हसीन।।

15.   झरनों पर भी संकट छाया,

        कुंए और तालाब पटाया।।

16.  ताल तलैया सुख रहें हैं,

        जल जीवन सब रूठ रहे हैं।।

17.  जल कुंडो में नहीं है पानी,

        सुख रही खेती खलिहानी।।

18.  जल बिन जीवन की न आस,

       थम जायेगी सबकी सांस।।

19.  जीव जंतु हो रहे निराश,

        सबके गले में पड़ती फांस।।

20. दूषित जल जो किए प्रयोग,

       धरेंगे सबको बहुत से रोग।।

21. जो भी दूषित जल पिएगा,

       लंबा जीवन न जीयेगा।।

22. जंगल कटे मिटे हरियाली,

       उजड़ रही है प्रकृति निराली।।

23.  वृक्षों पर चल रही आरियां,

        जीवन में बढ़ रही दुश्वारियां।।

24.  एक वृक्ष सौ पुत्र समान,

       फिर भी हम करते अपमान।।

25.  जिन वृक्षों से जीवन सारा,

        उन्ही पर कुल्हाड़ी दे मारा।।

26.  जिसने हमको दिया सहारा

       आज वही हम सबसे हारा।।

27.  निर्मम हत्या उनकी करतें,

       आज नही हम प्रकृति से डरते।।

28.  वृक्षों से घर बार बनाया,

        फिर भी उन्हें बेकार जलाया।।

29.  काट के जंगल आग लगाया,

        कंक्रीट के झाड़ उगाया ।।

30.  अंधाधुंध विदोहन वन का,

       पतन कराएगा जीवन का।।

31.  नही बचेगा कोई जीवन,

       अगर किए धरती को निर्वन।।

32.  बढ़े शहर घटती हरियाली,

        धरती से छिनती खुशहाली।।

33.  खग मृग जहां रहे आबाद,

       वहां आज सबकुछ बर्बाद।।

34.  कभी कूकती बाग में कोयल,

       आज काग भी दिखता घायल।।

35.  अब तो मोर भी नही नाचता,

        डर कर हमसे दूर भागता।।

36.  जो बुलबुल थी बाग में गाती,

        अब तो डर से वो उड़ जाती।।

37.  फूलों पर अब धूल जमी है,

        तितली भौरों की हुई कमी है।।

38.   अंधाधुंध वृक्ष उपभोग,

        पैदा करेगा लाखो रोग।।

39.  सुख सौंदर्य सब छिनता जाता

        जीवन पर संकट मडराता।।

40.   तितली भौंरे खग मृग मरते,

        फिर भी तनिक नही हम डरते।।

41.  वृक्षों को गर कटवाएंगे,

       बिना मौत मारे जायेंगे।।

42.  वृक्ष हमारा देते साथ,

       इनपर कभी न कर आघात।।

43.  इनसे सारी धरा है सुंदर,

       सारी शुभता इनके अंदर।।

44.  इन्ही से सारी प्राण वायु है

        इन्ही से हम सब दीर्घायु हैं।।

45.  इनपर किए जो अत्याचार,

        मच जाएगा हाहाकार।।

46.  चारों ओर मचा शोर,

       चाहे रात्रि दिवस या भोर।।

47.  पी पों पी पों में दिन बीते,

        रात भी कहा शांति में बीते।।

48.  चारों तरफ ही शीटी बजती

        बेचैनी में रातें कटती।।

49.  ट्रक बस कर्कश ध्वनि फैलाते

        मन की शांति छीन ले जाते।।

50.  दैत्याकार जहाज मशीनें,

       शोर में ये न देती जीने।।

51.  धूल धुएं से कुपित शरीर,

        जीवन को कर दिया अधीर।।

52.  फैक्ट्रियां, गाड़ियों का धुआं,

       खड़ा कर दिया मौत का कुआं।।

53.  धूल धुएं से शहर हाँफते,

       वृद्ध, जवां नौयुवक खांसते।।

54.  आंख में जलन फेफड़े फुले,

       भारी जवानी में सब झूले।।

55. अतिशय बढ़ता देख प्रदूषण,

       हार रहे धरती के भूषण।।

56. शोख प्रदूषण हमे बचाते

       फिर उन्हे हम नष्ट कराते।।

57. आज बड़ी निर्ममता छाई

       जीव जंतु पर सामत आई।।

58. खत्म हो रहा परितंत्र अब

       उद्योगों का बढ़ा तंत्र जब।।

59.  इन हरकतों से बदल रूठे,

        लाते बाढ़, बढ़ाते सूखे।।

60.  कहीं पर बादल खुद फट जाते

       मौत का मंजर सब पर ढाते।।

61.  अब तो बारिश कम ही होती,

        सूखे में दुनिया है रोती।।

62.  सुखा बाढ़ अमंगल लाते,

       जीव जंतु पर कहर ढहाते।।

63.  धरती पर अब तपन बढ़ रही,

       रूठी प्रकृति कफन गढ़ रही।।

64. कही भूकंप सुनामी आती,

       फटी बदरिया कहर ढहाती।।

65.  जलबिन आज है जीवन प्यासा

       चारों तरफ है बड़ी निराशा।।

66.  कहीं तपन से झुलसे पांव,

        दूर-दूर तक मिले न छांव।।

67.  कहीं जलप्रलय प्रलय मचाती

       जीव जंतु को बहा ले जाती।।

68.  बढ़ा प्रदूषण बढ़ी बीमारी,

        जीवन में बढ़ती दुश्वारी।।

69.  हरदिन बढ़ती है अधमाई,

       आगे कुंआ है पीछे खाई।।

70.  जीव जंतु तरुवों पर आरी,

       मानव बना है अत्याचारी।।

71.  बेबस होकर रोती धरती,

       मानवता अब हर पल मरती।।

72.  महा प्रलय के निकट खड़े हैं,

        आगे संकट बहुत बड़े हैं।।

73.  जीना मुश्किल होगा सबका,

        संकट में होगा सब तपका।।

74.  हम सबने जो की मनमानी

       बदला मौसम बदला पानी।।

75.  अन्न अन्न के लाले होंगे,

        भूखे पेट में छाले होंगे।।

76.  बढ़ेगी भुखमरी और गरीबी,

       मुंह मोड़ेंगे सभी करीबी।।

77.  चोरी हिंसा बहुत बढ़ेगी,

       शांति क्रोध के भेंट चढ़ेगी।।

78.  सुधि न लेगा कोई किसी की,

       अकाल मृत्यु होगी सब ही की।।

79. अभी समय है करो प्रयास

       नही तो होगा सत्यानाश।।

80.  कूड़ा कचरा नहीं बिखेरो,

       धरती को वृक्षों से घेरो।।

81. हरे वृक्ष हैं मंगलकारी,  

       खग मृग मानव के हितकारी।।

82.  हर उत्सव पर वृक्ष लगाओ,

        घर आंगन को हरित बनाओ।।

83.  हरे भरे जंगल जब होंगे,

        सारे पल मंगलमय होंगे।।

84. व्यर्थ में वृक्षों को मत काटो,

       हर खुशियों में पौधे बांटो।।

85. खग मृग के आवास संवारो,

       बेमतलब उनको न मारो।।

86. आये अतिथि को दो उपहार,

       आम नीम के वृक्ष दो चार।।

87.  जन्म दिवस सालगिरह मनाओ

        पौध लगा यादगार बनाओ।।

88.  नहीं बिखेरो पालीथीन,

       खोजो उसके विकल्प नवीन।।

89.  वाहन का कम करो प्रयोग,

        दूर रहेंगे बहुत से रोग।।

90.  नदियों में कचरा न डालें,

        दूर करो शहरों के नाले।।

91. प्लास्टिक का बहिस्कार करो,

       जल जमीन का उद्धार करो।।

92.  स्वच्छ हरित तकनीकें लाओ,

        वसुंधरा को हरित बनाओ।।

93.   जीव जंतु पर दया करो,

         उनके सारे कष्ट हरो।।

94.  फसलों का अवशेष न जलाओ

        उनसे जैविक खाद बनाओ।।

95.   व्यर्थ में पानी नहीं बहाओ,

        बूंद-बूंद उपयोग में लाओ।।

96.  मल मूत्र न जल में डालो,

        जल स्रोतों को स्वयं संभालो।।

97.  खुले में करने शौच न जाओ,

        घर में शौचालय बनवाओ।।

98.  साफ सफाई करो जरूर,

        बहुत से रोग रहेंगे दूर।।

99.  जीवाश्म ईंधन कम जलाओ,

        पर्यावरण को स्वच्छ बनाओ।।

100. धूम्र, कार्बन, जहर न छोड़ो,

         ऑक्सीजन का चक्र न तोड़ो।।

101. अब तो रहम करो इंसान,

         जीव जंतु की बख्शो जान।।

102.  जीव जंतु के वध छोड़ो,

         जल जंगल को भी न छेड़ो।।

103.  बाग बगीचा अधिक लगाओ

          जीवों के आवास बचाओ।।

104.  बगिया में कोयल कूकेगी,

          बुल बुल गाकर खुस कर देगी।।

105.  चिड़ियां चहकेगीं चहुओर,

          बगिया में नाचेगा मोर।।

106.  तोता मैना भी गाएंगे,

          भौंरे तितली इतरायेंगे।।

107.  मस्त छटा हर जगह दिखेगी

         फूलों से खुशबू बिखरेगी।।

108.  आओ हम सब करें प्रयास,

          मिट जाए जीवन से त्रास।।

 

सुनील कुमार यादव ✍️

 डीएमओ, बलिया। 



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