अतुल्य व अनुपम है शिक्षक का पथ : डॉ. नवचंद्र तिवारी


गुरु गोविंद दोऊ खड़े, काके लागूं पाय।

बलिहारी गुरु आपने, गोविंद दियो बताय।।

अदि्वतीय कवि कबीर दास का यह दोहा अत्यंत मर्मस्पर्शी है। उन्होंने गुरु के अतुलनीय महत्व को रेखांकित कर उसके अंतर्वाह्य  विशेषता को अलौकिक रूप से उद्मृत किया है। वास्तव में गुरु या शिक्षक ही शिष्य या विद्यार्थी के मनोभावों को समझकर उन्हें अक्षरज्ञान से परिपूर्ण ही नहीं करता अपितु उसकी छिपी प्रतिभा को निखारकर उनमें नैतिक, बौद्धिक,आध्यात्मिक, चारित्रिक आदि सकारात्मक व रचनात्मक भावों को रोपित कर संस्कारवान बनाता है। उन्हें जड़ से चैतन्य अवस्था में लाता है। प्रत्येक दृष्टिकोण से शिक्षक की महती भूमिका अनोखी होती है।

सुप्रसिद्ध शिक्षक व साहित्यकार डॉ. नवचंद्र तिवारी ने आगे बताया कि देश के महान शिक्षक व पूर्व राष्ट्रपति डॉ सर्वपल्ली राधाकृष्णन ने अपने जन्म दिवस को शिक्षक दिवस के रूप में प्रतिष्ठापित किया। उन्हें शत-शत नमन। डॉ. तिवारी ने आगे कहा कि प्राचीन समय में गुरुकुल में अध्ययनोपरांत व्यावहारिक मूल्यांकन में उत्तीर्ण होने के निमित्त शिष्य को अत्यंत कठिन व असह्य परिस्थितियों से गुजरना होता था। परंतु गुरु के प्रति श्रद्धाभाव उसे मानसिक रूप से दृढ़कर सफलता प्रदान करती थी। आज तो प्रचुर संख्या में शिक्षण संस्थाएं उपलब्ध हैं।

वर्तमान संदर्भ में शिक्षण पद्धति में शिक्षकों के सामने कड़ी चुनौतियां आ रही हैं। आधुनिक जीवन शैली से शिष्य सभ्य तो बन जाता है परंतु संस्कार को आत्मसात करना उसे दुरुह लगता है। कभी-कभी तो कोटा या अन्य स्थान की घटती घटनाएं  हृदय को विचलित कर देती हैं। मोबाइल पद्धति से भी बच्चों ने स्वतंत्र रूप से चिंतन - मंथन करना  छोड़ दिया है। उनकी कल्पनाशीलता पर तुषारापात हुआ है। अतिउदारता से उनके सहनशीलता में भी कमी आ रही है। इसके कारण का निदान अवश्य होना चाहिए। शिक्षा ऐसी होनी चाहिए कि वह बच्चों में निराशा, हताशा या अवसाद उत्पन्न न करके उनमें कौशल विकास संग मानसिक सबलता को भी प्रतिस्थापित करे। तभी वह लक्ष्य को प्राप्त करेगा व सामाजिक मूल्य का समरसता प्रस्तुत होगा। याद रहे, शिक्षा मात्र आजीविका ही नहीं बल्कि जीवन साधन भी है।

शिक्षक का जीवन अत्यंत अनुशासित, कठोर व मर्यादित होता है। वह दिन-रात बच्चों के सुखद व श्रेष्ठ भविष्य के सृजनात्मक निर्माण में स्वयं को निस्वार्थ भावना से खपाये रखता है। यदि बच्चों से पूछा जाए कि आप में से कौन-कौन शिक्षक बनना चाहेगा? वह भी परिश्रम कर रहे विद्यालयों का, तो जवाब नकारात्मक में ही मिलेगा। अतः आप सहज ही समझ सकते हैं, शिक्षक का जीवन कितना कठिन होता है! 

धन्य हैं वे शिक्षक जो प्रगति के मार्ग पर शिष्य को आदर्श नागरिक बनाने की समिधा में मर्यादा व कर्तव्यबोध का पीतांबर ओढ़े स्वयं के अतुल्य श्रम की आहुति देते हैं। गुरु के बताए मार्ग पर शिष्यों द्वारा ईमानदारी से चलना व उनका आदर ही उनके लिए वास्तविक उपहार होगा।

डॉ. नवचंद्र तिवारी ✍️



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