बलिया के लिए बरदान हैं आर्द्रभूमियां : डॉ0 गणेश पाठक


बलिया। अमरनाथ मिश्र स्नातकोत्तर महाविद्यालय दूबेछपरा, बलिया के पूर्व प्राचार्य एवं जननायक चन्द्रशेखर विश्वविद्यालय बलिया के पूर्व शैक्षिक निदेशक पर्यावरणविद् डा०गणेश कुमार पाठक ने एक भेंटवार्ता में बताया कि "आर्द्र भूमि वह भूमि होती है जो जलीय पारिस्थितिक प्रणाली में, जहां जल का तल प्रायः जमीन की सतह पर अथवा जमीन की सतह के नीचे होती है या धरातल उथले जल के द्वारा आच्छादित रहता है, उसे आर्द्र भूमि कहा जाता है।" वैज्ञानिकों के अनुसार आर्द्र भूमि वह भूमि होती है, जहां वर्ष में आठ माह जल भरा रहता है। इस प्रकार आर्द्र भूमि ऐसी भूमि होती है जहां जल, पर्यावरण एवं इससे जुड़े पौधे तथा वन्य जीवन को एवं जलीय जीवन को नियंत्रित करने के प्राथमिक कारक होते हैं।


उपर्युक्त संदर्भ में यदि देखा जाय तो बलिया जनपद में छोटी-बड़ी इतनी अधिक आर्द्र भूमि है कि अगर उनका समुचित एवं संतुलित उपयोग किया जाय तो वो बलिया के लिए बरदान सिद्ध हो सकती हैं। जलीय कृषि के रूप में आर्द्र भूमि मां ने केवल बलिया की अर्थव्यवस्था की सुदृढ़ कर सकती हैं, बल्कि पर्यावरण एवं पारिस्थितिकी को संतुलित बनाए रखने में भी महत्वपूर्ण भूमिका निभाती हैं।

आर्द भूमियों की भरमार है बलिया में-तीन तरफ से गंगा एवं सरयू नदियों से घिरा होने के कारण बलिया जनपद में प्राकृतिक ताल श-तलैयों एवं छोटी- छोटी नदियों तथा नालों की भरमार है।


बलिया जनपद में छोटे-बड़े कुल 88 ताल हैं, जिनमें से 28 महत्वपूर्ण हैं। सुरहा ताल सबसे बड़ा है, जिसका क्षेत्रफल 24.9 वर्ग किमी० है। इसके बाद दूसरा एवं तीसरा महत्वपूर्ण ताल दह ताल मुड़ियारी एवं रेवती दह ताल है। अन्य तालों में पश्चिमी उच्च भूमि क्षेत्र में गड़हा, ईटौरा, खालिस, गोन्हिया, दुल्लहपुर एवंमोतिरा, मध्य उच्च भूमि क्षेत्र में लखुनिया नगरा, सवन, सुहेला, पकरी एवं मदारी, घाघरा खादर क्षेत्र में बरका एवं बहेरी, गंगा-घाघरा खादर क्षेत्र में संसार टोला, कोड़हरा एवं लहसनी, मध्यवर्ती द्वाबा क्षेत्र में यमुना, कोल, चन्दवक, बरौली, जमालपुर एवं खामपुर एवं उच्च मैदानी क्षेत्र में मुण्डा, कैथौली, हरबंशपुर, मुस्तफाबाद, नसीरपुर एवं दौलतपुर ताल मुख्य हैं। इसके अलावा पकड़ी, हजौली, बिसौली, नकहरा एवं पाण्डेय पुर ताल भी मुख्य तालों में से हैं। बलिया जनपद में कुल 187.13 वर्ग किमी० क्षेत्र से अधिक भूभाग पर तालों का विस्तार है। ये सभी प्राकृतिक ताल हैं। इसके अतिरिक्त जनपद में सैकड़ों मानव निर्मित ताल भी हैं।


उपर्युक्त तालों में से मात्र सुरहा ताल के लिए ही कुछ योजना बनी। वर्तमान समय में प्रशासन द्वारा एवं जननेताओं द्वारा भी सुरसा ताल को पर्यटन केन्द्र के रूप में विकसित करने का प्रयास जारी हैं। सुरसा ताल को पारिस्थितिक संरक्षित क्षेत्र भी घोषित किया जा चुका है। किंतु अभी तक सुरहा ताल 'रामसर' स्तर की आर्द्र भूमि घोषित नहीं हो पायी है। इसके लिए शासन- प्रशासन एवं राजनेताओं के स्तर पर सतत प्रयास जरूरी है। 'रामसर' स्तर की आर्द्र भूमि घोषित हो जाने से सुरहा ताल अन्तर्राष्ट्रीय स्तर का आर्द्र भूमि हो जायेगा,जिससे इसका समुचित विकास हो पायेगा।

बलिया जनपद में सुन्दरीकरण के नाम पर प्राकृतिक तालों का अभी तक सुन्दरीकरण नहीं हुआ है। चितबड़ागांव स्थित बरईया पोखरा, छितौनी स्थित पोखरा एवं कारों स्थित पोखरा का कुछ सौन्दर्यीकरण हुआ है।

यहां यह कह देना समीचीन प्रतीत होता है कि बलिया जनपद के जो प्राकृतिक ताल हैं वो जिला के लिए वरदान हैं। ये प्राकृतिक ताल बाढ़ एवं जलप्लावन को रोकने में महत्वपूर्ण भूमिका निभाते हुए भूमिगत जल को समृद्ध करने में भी अहम् भूमिका निभाते हैं तथा स्थानीय  स्तर पर इन तालों से सिंचाई भी की जाती है। कष्ट इस बात का है कि वर्तमान समय में ये ताल अपना अस्तित्व खोते जा रहे हैं। इनकी तली में गाद जमा होने से ये उथले होते जा रहे हैं, जिससे इनका क्षेत्रफल कम होता जा रहा है एवं उस पर खेती की जाने लगी है। अतः इनका संरक्षण एवं विकास अति आवश्यक है। इसके लिए आवश्यक है कि सभी महत्वपूर्ण तालों को संरक्षित कर उनका सौन्दर्यीकरण किया जाय एवं उन्हें जल पर्यटन केन्द्र एवं निकटवर्ती गांवों को गांव पर्यटन केन्द्र के रूप में विकसित किया जाय। ऐसा होने से निश्चित ही जनपद की ये आर्दभूमियां इस क्षेत्र की अर्थव्यवस्था का सुदृढ़ आधार बनेंगीं एवं जैव विविधता को संरक्षित कर इस क्षेत्र के पर्यावरण तथा पारिस्थितिकी को संरक्षित प्राकृतिक असंतुलन को रोकने में भी महत्वपूर्ण भूमिका निभायेंगी। साथ ही साथ भू-गर्भ जल को भी संरक्षित एवं संतुलित बनाए रखने में महत्वपूर्ण भूमिका निभायेंगी।



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