अंजुल भर भावों के मोती


स्वर्ण किरणों को धरा पे देख,

आज दिल मेरा मचल रहा है।

मानो ऐसा लगता है जैसे

अम्बर धरा से मिल रहा है।


लालिमा लिए हुए भोर की

मेरा मन गदगद हो रहा है।

जीवन के इस गलियारे में,

मधु, सुधा, रस घोल रहा है।


 छोड़ निशा की कालिमा को,

 इंद्रधनुष सा फैल रहा है।

गर छूट गयी उर की आशाएं,

नयी उमंग भर रहा है।


एक अनछुआ एहसास,

दिल पर दस्तक दे रहा है।

मानो प्रेमपाश में कोई मुझको,

अपने अंकों में जकड़ रहा है।


अंजुल भर भावों के मोती,

मन ही मन मैं पिरो रही हूँ।

सोच रही थी खिड़की पर ये सब,

तेरी यादों में खो रही हूँ।


स्वरचित ✍️

मानसी मित्तल

उत्तर प्रदेश। 



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