"दो कदम"


साथ चलने वाले आचानक आपको पीछे छोड़ दे !!

तेज कदमों से आगे निकल जाये !!


आप अपनी कदम बढ़ा लेते हैं !!

उसके कदम से कदम मिलाने के लिए !!


लेकिन फीर भी पिछे पिछे चलते हैं !!

तब बहुत अज़ीब लगता हैं !!


हम समझ नहीं पाते है !!

कि हमारी चाल धीमी पड़ गयी !!


या साथ चलने वाला तेज नीकल गया !!

साथ चलते चलते आगे निकल गया !!


तब अज़ीब से सवाल हमें घेर लेते हैं !!

जिनके जबाब हम कभी नहीं दे पाते हैं!!


ये दो कदमों के फ़ासले हमें !!

मीलों की दुरी लगती हैं !!


हम जिंदगी भर में भी तय नहीं कर पाते हैं !!

उन कदमों के साथ कभी चल नहीं पाते हैं!!


कसक सी उठती हैं !!

मन के कोने से कहती हैं !!


साथ चलते चलते इतनी दुर चले जाते हैं !!

फासला तो दो कदमों का हैं !!


फिर इतनी दुरी सी क्यों लगती हैं !!

ये बहुत बड़ी मजबूरी सी लगती हैं !!


लेखिका✍️

मीना सिंह राठौर

नोएडा, उत्तर प्रदेश। 



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