दीपक हुँ मैं जलना मेरी मुकद्दर हैं !!
कभी खुशियों में जला तो कभी गम में जला !!
गरीबो के आँगन में रोशनी के लिए जला !!
अमीरों के हवेली में सजावट बन कर जल !!
जनमदिन पर मोमबत्ती बन कर जला !!
तो कभी किसी की श्रद्धांजलि में दिये में जला !!
जिंदगी में सबकी रोशनी दिया !!
खुद को जला जला के पिघला दिया !!
किसी ने अपने गम मिटाने के लिए जला दिया !!
किसी ने खुशी मनाने के लिए जला लिया !!
अमीरों ने सोने पीतल के दिये जला दिया !!
झोपड़ीयों में मिट्टी के दिये जल दिया !!
दिवाली के दिन दिये जला दिया !!
लोगों के दिल मिला दिया !!
मैं तो दीपक हुँ !!
जलना मेरी मुकक्दर हैं !!
खुद को जला कर खुशियाँ दिया !!
सबको खुश देख कर मुसकुरा दिया !!
हर कोने में उजाला भर दिया !!
अंधकार को भी उजाले में बदल दिया !!
दीपों का त्योहार हैं !!
दिवाली बना दिया !!
घी के दिये जला दिया !!
कभी तेल के दिये जला दिया !!
रोशनी सबको बराबर दिया !!
अमीरों के बंगले या गरीबो की झोपड़ी हो !!
हर इंसान के अंदर सत्य का दिया जले !!
कीसी के दिल में अंधेरा ना मिले !!
सबको मुबारक दिवली !!
दीपो की दीवाली !!
मीना सिंह राठौर ✍️
नोएडा, उत्तर प्रदेश।
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