समतामूलक, लोकतंत्रिक, धर्मनिरपेक्ष और समाजवादी भारत बनाने के लिए आजीवन संघर्ष करते रहे जयप्रकाश नारायण


11 अक्टूबर 1902 लोकनायक जय प्रकाश जयंती समारोह 

स्वाधीनता उपरांत शहीदों के सपनों के अनुरूप  समतामूलक, लोकतंत्रिक, धर्मनिरपेक्ष, समाजवादी और आधुनिक भारत बनाने के लिए जिन हृदयो में गहरी तडप, बेचैनी और  छटपटाहट थी उनमें लोक नायक जय प्रकाश नारायण अग्रिम कतार में थे। इसलिए आचार्य नरेन्द्र देव, डॉ राम मनोहर लोहिया, अच्युत पटवर्द्धन और मीनू मसानी जैसे समाजवादी चिंतको, विचारकों और विद्वानों की परम्परा में जय प्रकाश नारायण का नाम आदर, सम्मान और स्वाभिमान के साथ लिया जाता हैं। राष्ट्रपिता महात्मा गांधी ने कहा था कि- भारत में अगर कोई समाजवाद को बेहतर तरीके से  जानता, बूझ्ता और समझता है तो वह व्यक्ति जय प्रकाश नारायण हैं। महात्मा गाँधी जयप्रकाश नारायण को समाजवाद का सबसे गहरा गम्भीर और प्रखर विद्वान मानते थे। महात्मा गांधी का अपार स्नेह जय प्रकाश नारायण पर था। महात्मा गांधी ने जयप्रकाश नारायण को समाजवाद का सबसे प्रखर विद्वान तो कहा ही था इसके साथ उन्होंने 1946 मे जय प्रकाश नारायण का नाम कांग्रेस अध्यक्ष के रूप में प्रस्तावित किया था। परन्तु कांग्रेस कमेटी ने इस प्रस्ताव को अस्वीकार कर दिया। इतिहास का हर ईमानदार विद्यार्थी जरूर यह कल्पना कर सकता हैं कि- शक्ति, सत्ता और प्रभाव की चकाचौंध से मीलों दूर कोई व्यक्ति अगर आजादी की लड़ाई की रहनुमाई करने वाले दल का अध्यक्ष बनाया जाता तो निश्चित रूप से आधुनिक भारत के निर्माण की दिशा, दशा और  तस्वीर कुछ और होती। समाजवाद निर्विवाद रूप से बुनियादी स्तर पर आर्थिक और सामाजिक पराधीनता को मुक्कम्ल खत्म कर देना चाहता है। समाजवाद के अनुसार आर्थिक आजादी के बिना नागरिक आजादी, सामाजिक आजादी, सांस्कृतिक, साहित्यिक, राजनीतिक आजादी और अन्य समस्त प्रकार की आजादियाॅ  खोखली और बेमानी है। लोक नायक जय प्रकाश नारायण को समाजवाद के आर्थिक आधारों की गहरी समझ थी। स्वाधीनता संग्राम के दौरान जयप्रकाश नारायण समाजवाद का प्रखरता से प्रचार और प्रसार करते रहे। 1940 मे कांग्रेस के रामगढ़ अधिवेशन में जय प्रकाश नारायण ने एक प्रस्ताव रखा जिसका आशय था कि- बृहत उत्पादन के संस्थानों पर सामूहिक स्वामित्व तथा नियंत्रण स्थापित किया जाए। उन्होंने आग्रह किया कि- भारी परिवहन, जहाजरानी, खनन तथा भारी उद्योगों का राष्ट्रीयकरण किया जाए। वे समाजवाद को आर्थिक और सामाजिक पुनर्निर्माण का एक सम्पूर्ण सिद्धांत मानते थे। समाजवाद व्यापक नियोजन का सिद्धांत और कार्यप्रणाली हैं। समाजवाद द्वारा संसाधनों का व्यापक नियोजन करते हुए समाज का समग्र और संतुलित विकास सुनिश्चित किया जा सकता है।

जयप्रकाश नारायण समतामूलक समाज बनाने के लिए डॉ भीमराव अंबेडकर की तरह जातियों को ध्वस्त करने की वकालत करते थे। जाति व्यवस्था को ध्वस्त किए बिना न तो समतामूलक समाज बनाया जा सकता और न ही सच्चे लोकतंत्र की स्थापना की जा सकती हैं। बेहतर समाज बनाने के लिए जयप्रकाश नारायण ने अद्वितीय प्रयास किया। इसलिए एक उत्कृष्ट समाजसेवी के रूप जय प्रकाश नारायण को 1965 मे रमन मैग्सेसे पुरस्कार से सम्मानित किया गया।  








मनोज कुमार सिंह प्रवक्ता 

बापू स्मारक इंटर काॅलेज दरगाह मऊ।

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