*स्वार्थी रिश्ते*

 


"ये संसार तो बस माया है। सारे रिश्ते मात्र स्वार्थ पर टिके हैं।"---प्रवचन दे रहे थे महात्मा जी --"देखो ! इसी रिश्ते के खातिर लोग झूठ बोलते हैं, पाप करते हैं, इससे कुछ भी हासिल नहीं होता क्योंकि सबमें स्वार्थ भरा है। बस परमात्मा में डूब कर देखो, प्रेम ही प्रेम मिलेगा। मैं सिर्फ कह नहीं रहा हूँ। ये मेरा अनुभव है। इस संसार में हर रिश्ते के प्रेम में भी स्वार्थ है। गृहस्थ जीवन को त्याग कर सन्यास लेने का मेरा यही कारण है। यहाँ तो बस मैं और मेरे परमात्मा।"

तभी एक शिष्य ने--"गुरु जी अब आपके भोजन का वक्त हो गया है, क्या भोजन लगा दूँ ?"

"हाँ, लगा दो।"--महात्मा जी 'हरि ऊँ' कहते हुए प्रवचन से उठकर भोजन करने आ गए।

चटाई बिछी हुई थी। महात्मा जी हाथ-पैर धोकर बैठ गए।

शिष्य ने भोजन परोस दिया। महात्मा जी भोजन को जल से अभिमंत्रित करके, भोजन करने लगे।

भोजन करते हुए अपने शिष्य से "शंकर शंभू, तुम मेरा बहुत ध्यान रखते हो। सच में मेरे दिल को जीतकर सबसे प्रिय शिष्य बन गए हो।"

पंडित संतोष दूबे

गोपालपुर, सहोदरा, बलिया (उ.प्र.) 

मो0-7905916135





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