बरसात की रात !


सावन भादो की अंधेरी रात !!

कही मेघा बोल रहे हैं टर टर 

कही  झिंगुर  सन सन !!


गाँव की गलियों में कुत्ते भौक रहे !!

और झाड़ियों में लोमड़ी के भयानक आवाज !!


सड़कों पर वही दिख रहे !!

जिनको करना है सुबह की रोटी का इंतजाम !!


जिनके घर पक्के हैं !!

वो सो रहे सुकून की नींद !!


जिनके घर घर कच्चे हैं !!

ओ जाग रहे सिर पर लेकर थाती परात !!


नहीं पुछता कोई भी हाल !!

क्योंकि नहीं होता गरीबो का कोई भी रिस्तेदार !!


चारो तरफ अंधेरा ही अंधेरा है !!

गिली लकड़ीया जलाकर कर रहा प्रकाश !!


बंद कर लेते हैं लोग अपने घर के दरवाजे !!

खिड़कियों से झाकते हैं !!


बड़े तंग दिल होते हैं ऐ लोग !!

जिनको सब कहते हैं बड़े लोग !!


अमीरों के घर बारिस होने पर पकते हैं पकवान !!

तरह तरह की तलते है पकौड़े !!


गरीबों के घर तो नहीं बनती सुखी रोटी भी !!

सो जाते हैं उनके बच्चे पानी पी कर !!


क्योंकि बारिस की दिन नहीं मिलती मजदुरी भी !!

और ना ही मिलती सुखी लकड़ी !!


बारिस किसी के लिए खुशी लाती हैं !!

किसी को खाली पेट सुलाती हैं !!


टपकते हैं छत जिनके !!

वो भला कैसे सोये सुकून की नींद !!


बरसात की रात !!

और खाली पेट !!


रात कट जाती हैं !!

देखते ही देखते और ना जाने कितनी रातें !!


झोपड़ी में बैठे बैठे देखता है !!

अब बारिस बंद हो तो निकले दो वक्त की रोटी कमाने !!


मीना सिंह राठौर ✍️

नोएडा, उत्तर प्रदेश। 



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