भगवान भोलेनाथ के कल्याणकारी रूप रंग में गोते लगाने का महीना है सावन : मनोज कुमार सिंह


हमारी सनातनी परंपराओं, पौराणिक मान्यताओं, अनगिनत बहुभाषाई साहित्यिक सर्जनाओं और लोक मानस में व्याप्त धारणाओं के अनुसार सावन का महीना भगवान शिव शंकर को समर्पित और भगवान शिव के शिवत्व अर्थात कल्याणकारी स्वरुप में पूरी तरह डूबने उतरने और गोते लगाने का महीना है। हमारी पौराणिक मान्यताओं के अनुसार भगवान शिव को बसुन्धरा की समस्त चर-अचर सृष्टि का सर्जक, पालक, पोषक और संरक्षक माना जाता हैं। भगवान शिव के महात्म्य और महिमा को समर्पित कथाओं और किंवदंतियों के अनुसार जब भी सृष्टि पर गहरा संकट आया तब भगवान शिव ने बडी सजहता से सृष्टि और समस्त चराचर जगत को सुरक्षित और संरक्षित किया। देव लोक से सुरसरि जब प्रचंड और प्रलयंकारी वेग से पृथ्वी की तरफ  प्रवाहमान हूई तो भगवान शिव ने सुरसरि के प्रचंड और प्रलयंकारी प्रवाह को अपनी जटा में थाम लिया। सुरसरि की प्रचंडता और प्रलयंकारी प्रबलता को अपनी जटाओं में अवरूद्ध कर सुरसरि के प्रवाह को शीतलता और निर्मलता प्रदान की। तबसे सुरसरि अपनी शीतलता और निर्मलता के साथ बसुन्धरा पर सतत् प्रवाहमान है। इसी तरह देवताओं और दैत्यों द्वारा किए समुंद्र मंथन के परिणाम स्वरूप निकले विष का विषपान कर भगवान शिव ने चराचर जगत को विष के दुष्प्रभाव और विषाक्तता से बचा लिया। भगवान शिव के परिवार की बुनावट सहकार, समन्वय, साहचर्य, सहिष्णुता और सामंजस्य की अद्भुत और उत्कृष्ट मिसाल दिखाई देता है। परस्पर विरोधी स्वभाव और चरित्र के समस्त प्राणी सांप, चूहा, बैल और गरूण एक साथ रहते हैं।       

तन मन को आनंदित कर देने वाली खुशबू बिखेरता सावन का हर लम्हा मनभावन और सुहावना होता है। उमंग, उल्लास, यौवन और मस्ती से भरपूर सावन का मौसम जन-जीवन मे खुशहाली का महीना माना जाता है। सावन में मौसम मनभावन और सुहावना रहता और हर हृदय उमंगित और तरंगित रहता हैं तथा लोक मानस में प्रेम, माधुर्य, मान मनौव्व्ल, मनुहार और मिलन-जुलन का वातावरण रहता है। सावन महीने के मनमोहक मौसम और उसके परिणामस्वरूप हर्ष और उल्लास से परिपूर्ण लोक-जीवन के लोकरंग और सांस्कृतिक परिवेश पर साहित्यकारों ने अनेक विधाओं में रचनाएँ की हैं। परन्तु हमारी सनातन संस्कृति और पौराणिक मान्यताओं के अनुसार श्रावण मास को लोकमंगल और लोक कल्याण के देवता देवाधीदेव भगवान शिव का महीना माना जाता है। इस महीने में भगवान शिव को प्रसन्न करने के लिए लोग भजन-कीर्तन आरती पूजा वंदना और आराधना करते हैं। परन्तु भारतीय जीवन दर्शन और भारतीय जीवन-चरित्र के सारतत्व को समाहित किये हुए "सत्यम् शिवम् सुन्दरम्" के उपनिषदीय उद्गघोष पर हम उतना चिंतन मनन और ध्यान नहीं देते हैं। भारतीय जीवन दर्शन में सत्य को ईश्वर के ससमतुल्य बताया गया है। अधिकांश भारतीय दार्शनिक एवम आध्यात्मिक परम्पराओं में यह बताया गया है कि-जब मनुष्य का हृदय प्रेममय हो जाता हैं और सत्य के ज्ञान से अभिसिंचींत होने लगता है तो उसके हृदय में ईश्वरीय सत्ता निवास करने लगती हैं। सत्य के ज्ञान से ही सद्बुद्धि और सर्वोच्च विवेक का जागरण होने लगता है। भारतीय दार्शनिक मान्यताओं का अनुसरण करते हुए महात्मा गाँधी ने भी कहा था कि- "ईश्वर ही सत्य है और सत्य ही ईश्वर है "और सत्य का साक्षात्कार होते ही हृदय प्रेममय हो जाता है। जब बसुन्धरा पर सत्य का साम्राज्य प्रवर्तित होने लगता है तो समाज का स्वरूप कल्याणकारी अर्थात शिवम् के रूप-रंग में ढलने लगता है। शाश्वत सत्य के ज्ञान में ही समाज के कल्याण और सुन्दर स्वरुप का शिल्प अंतर्निहित हैं। सत्यम् शिवम् सुन्दरम् का सूक्ष्मता से अवलोकन किया जाए तथा इसके निहितार्थ को समझने का प्रयास किया जाए तो यह स्पष्ट परिलक्षित होता है कि-जब सत्य सुन्दर होता और सुन्दर सत्य होता हैं तभी मध्यवर्ती शब्द शिवम् फलितार्थ होता हैं। हमारी तात्विक मीमांसाओं में सत्य और असत्य के मध्य बहुत झीना अंतर बताया गया है अर्थात सत्य और असत्य को विभाजित करने वाली रेखा बहुत संकीर्ण होती हैं। कभी-कभी असत्य सत्य से लाभकारी और मानवीय संवेदनाओं से परिपूर्ण होता है जैसे एक कसाई किसी गाय का पीछा करते हुए जा रहा है और मार्ग में बैठे पथिक से गाय के जाने का मार्ग पूंछता है और प्रतिउत्तर में पथिक उचित मार्ग न बताकर कसाई को दिग्भ्रमित कर देता है तो निश्चित रूप से पथिक अपने अहिंसा धर्म का पालन करता है। अगर वह सत्य बचन का पालन करता तो निश्चित ही हिंसा का प्रतिभागी होता। निष्कर्षतः सत्य जब सबसे सर्वश्रेष्ठ सौन्दर्य तथा सौन्दर्यबोध से श्रृंगारित होता हैं तथा सौन्दर्य शाश्वत सत्य से पल्लवित पुष्पित और कुसुमित होता हैं तभी शिवम् का प्रकटीकरण होता है। कभी-कभी सत्य का प्रयोग हिंसक, अशिष्ट और अभद्र आचरण और व्यवहार का द्योतक होता हैं। जैसे अंधे लंगड़े और अपाहिज व्यक्ति का उपहास उडाते हुए उसे अंधा, लंगड़ा या अपाहिज कहकर संबोधित किया जाए। इस स्थिति में सत्य का प्रयोग तो किया जा रहा है परन्तु इसका स्वरूप निश्चित रूप से अभद्र, अशिष्ट और हिंसक हैं। भारतीय दार्शनिक मान्यताओं में मन बचन और कर्म से हिंसा पूरी तरह वर्जित हैं। इसलिए जब सत्य सुन्दर होगा और सुन्दर सत्य होगा तभी लोगों के जन-जीवन में शिवम् अर्थात कल्याण का वास्तविक वातावरण आच्छादित होगा।  

श्रावण मास के शुभागमन की हार्दिक बधाई और शुभकामनाएं :- 


मनोज कुमार सिंह प्रवक्ता 

बापू स्मारक इंटर कॉलेज दरगाह मऊ।



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