वो शख्स इतना भी अच्छा नहीं था,!!
जितना मैंने उसको समझ लिया था !!
ये संगदिल लोगों की दुनिया है!!
जरा संभलकर चलना,!!
यहाँ पलकों पर बिठाया जाता है!!
नजरों से गिराने के लिए !!
कोई नहीं है दुश्मन अपना फिर भी परेशान हूँ मैं,!!
अपने ही क्यूँ दे रहे है जख्म इस बात से हैरान हूँ मैं !!
मेरी आँखे खुली है और पलकों पर पानी है,!!
शायद मेरे ख़्वाब मुझ पर ही रो रहे है आज !!
शिकवा करे भी तो किससे करे हम,!!
अपनों पर मरे हम और अपनों ने ही मारा हमें !!
वक्त इशारा देता रहा और हम इत्तेफाक़ समझते रहे,!!
बस यूँ ही धोखे ख़ाते गए और इस्तेमाल होते रहे !!
धुएँ से परेशान हर शख्स भागता नज़र आया,
पर कोई भी ना मेरा घर जलता बचाने आया !!
दुनिया में इतने मतलबी लोग भी होते है,
जो मतलब निकलते ही !!
अपना रंग दिखाना शुरू कर देते है !!
लोग वादें तो हजारों करते है,
पर निभाते एक भी नहीं !!
मगरूर नहीं हूँ बस दूर हो गयी हूँ मैं,!!
उन लोगों से जिन्हें मेरी कदर नहीं है !!
अब तो थक गये मनाते मनाते हम !!
अपने जज्बात का एहसास दिलाते !
खैर दुर जाने वाले तो एक बहाना ढ़ुढ़ते हैं !!
खता थोड़ी हो तो सजा बड़ी देते है !!
जिन्हें आपकी कदर होती हैं !!
वो एक माफी पर भी माफ करके अपना लेते हैं !!
मीना सिंह राठौर 🖊
नोएडा, उत्तर प्रदेश।
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