*वह बन जाता नारायण है...…*


दुख लगा गले, सुख बांट रहा,

वह बन जाता, नारायण है।

दुनिया देती सम्मान उसे,

होती उसकी पारायण है।


भीषण  समुद्र की लहरों पर,                     

सो, विष्णु जगत के पूज्य बने।

सो कर गिरिवर के शिखरों पर,

शिव-शंभु जगत-संपूज्य बने।


सागर-संभूत, रिद्धि-सिद्धि-निधि,             

 करते जग को, आवंटन हैं।

दे सुहृद मनुज को सकल धरा,

कर रहे शेष का, मंडन  हैं।


निज प्रिया, सकल, ऐश्वर्य-मयी,

श्री, सदा सुखद, से  मोह-विगत।

जग-पालन कर, ऐश्वर्य लुटा, 

हैं बने, उदधि के अभ्यागत।


जग को सौन्दर्य-प्रसाधन दे,

खुद लिपट राख से, हैं शोभित।,

जग-क्षुधा-पूर्ति-कर्तृ, गौरी,

हैं क्षुब्ध, शंभु से हो क्षोभित।


मां अन्न-पूर्णा शिव को करतीं,

अर्पण हैं, छप्पन-व्यंजन।

शिव बांट उसे, निज भक्तों को,

हो भंग-पान, करते, रंजन।


विद्वत जनों को सादर समर्पित एवं अभिनंदन...…

महेन्द्र राय 

पूर्व प्रवक्ता अंग्रेजी, आजमगढ़। 



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