*गृहणी के दिल की बात*

 


जानती हूँ आजकल नारी काफी जागरूक व सबला होती नजर आ रही है लेकिन अभी भी कुछ स्थानों पर देखने को मिलता है कि यदि कोई नारी एक गृहणी है, और यदि वो नहीं कमाती  है तो  क्यों उस नारी के कार्यों कम आंका जाता है??

पुरुष का अहोदा बड़ा होता है आखिर ये क्यों जताया जाता है ?? क्यों एहसास दिलाया जाता है?? कि वह एक गृहणी है  और वो कमजोर, असहाय, अबला है। माना पुरुष में शारीरिक बल अधिक होता है परंतु ये नही कि गृहणी नासमझ व निर्बल बुद्धि है। वह अपनी चतुराई से हर मंजिल को हांसिल कर सकती है। बस उसे भी थोड़ा सा साथ और प्यार की जरूरत होती है। क्यों कि गृहणी का जीवन भी कोई आसान नही होता।

तड़के सवेरे उठकर पूरे दिन की दिनचर्या सुव्यवस्थित करने में एक ग्रहणी ही परिपूर्ण होती है। सभी छोटे से बड़ों तक.... सभी की फरमाइशें पूरी करना तो जैसे गृहणी का कर्तव्य होता है।

क्या आपको नही लगता यदि पुरुष बाहर जाकर कार्य करते हैं तो गृहणी भी तो घर को अच्छे से सुचारू रूप से चलाती है।

और उसका क्या ?? जो सुबह से शोर की आवाजें  कानो में गूंजती है कि... माँ मेरा जूते, टाई  दे दो। पहले मेरा काम कर दो। और पतिदेव का मेरी वो शर्ट, या बैग कहाँ है ? या परिवार का कोई भी सदस्य हो। कहते हैं अपना काम बाद में करना पहले ये मेरा काम कर दो।आदि आदि। 

यानी a to z कुछ भी काम।

ऐसा लगता है जैसे कोई भूचाल आ गया हो।

वो उस गृहणी का एक टांग पर नाचना। वो किसी को नही दिखता।

सुबह से शाम तक न जाने कितने ही काम करती है।

अभी घर से दो घंटे के लिए बाहर चली जाए तो देखों घर ऐसा हो जाता है जैसे कोई भूचाल आ गया हो।

यह जरूरी नही की हर परिवार या स्थान पर ऐसा ही होता है लेकिन अभी भी काफी कुछ यही देखने व सुनने को मिलता है।

मकान से घर व घर को स्वर्ग बनाने का कार्य भी तो एक गृहणी ही करती है। यदि कोई मेहमान आने का पता चलता है तो मेहमानों के स्वागत के लिए पूरी तरह से आवभगत करने में जुट जाती है।

लेकिन यदि अपनी खुशी के लिए थोड़ा समय अपने लिए देती है (चाहे वह मोबाइल हो, टीवी सीरियल हो, या किट्टी हो, आदि) तो घरवालों की आलोचना की बौछार लग जाती है।

मैं पूछना चाहती हूँ यदि कोई गृहणी नहीं कमाती है तो क्या उसका कोई वजूद नही है?? क्या उसकी कोई पहचान नही है?? 

गृहणी घर भी सम्भालती है, छोटे से बड़ों तक सबका अच्छे से ख्याल रखती है। परिवार के लिए सब कुछ करती है लेकिन फिर भी किसी को कोई फर्क नही पड़ता । भई वो भी एक इंसान हैं।

उसका भी कोई वजूद है, उसका भी अपना जीवन है, उसकी भी कुछ खुशियाँ हैं।

हाँ जानती हूँ पुरुष कमाते हैं तो गृहणी भी कोई अपने कार्य से मुंह नही मोड़ती है घर को स्वर्ग बनाने में अपना पूरा जीवन गुजार देती है।

मै सिर्फ यही बताना चाहूंगी कि यदि पुरुष कमतर नही है तो एक गृहणी भी कोई कमतर नही है क्योंकि पुरुष भी तभी अपने व्यवसाय, या नोकरी को चिंतामुक्त होकर सही तरीके से कर पाते हैं। वह भलीभाँति जानती है कि परिवार व सगे सम्बन्धी ही उसकी जीवन की पूंजी है।

पता है गृहणी की घर और परिवार में ही उसकी जान बसती है। अपना सब कुछ परिवार पर न्योछावर कर देती है, बस गृहणी को सबका साथ, प्यार, की जरूरत होती है और अपने लिए भी कुछ समय चाहती है। यदि वह थोड़ा सा यह चाहती है तो कोई गलत तो नही होगा। 🙏🙏


स्वरचित✍️

मानसी मित्तल

शिकारपुर, जिला बुलंदशहर (उत्तर प्रदेश) 

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