माता मेरे ब्रह्मांड की, अनुपम विभूति है।
उतनी मृदुल संगीति सी, कोई न गीति है।
है शक्ति की स्रोतस्विनी, वह ब्रह्मजयी है।
जीवन-कणों में व्याप्त, सतत् कालजयी है।
जीवन दिया है, गर्भ-दुर्ग से, अभेद्य में।
पोषण किया है, अंक-कवच से अछेद्य में।
जीवन का कालकूट, सदा पान किया है।
निज रक्त को निचोड़, अमृत दान दिया है।
शिशु की सदावलम्ब, अम्ब-मातृ, सुखद है।
सुत-रक्षिका अभेद्य, दूर भाव-दुखद है।
मां जीव की स्रोतस्विनी, मिल उदधि ब्रह्म से।
आश्वस्त हो चुकी है, सुत के हेतु, व्रह्म से।
जीवन में मां ने सर्वदा, आनंद दिया है।
सत-चित प्रदान कर हमें आनंद दिया है।
ममता मयी माता को, नमन कोटि-कोटि है।
श्रद्धांजलि युक्त वंदना शत्, कोटि-कोटि है।
तीर्थों में मां को ढूंढना प्रयास व्यर्थ है।
घर में पड़ी है, मां की वंदना, सुअर्थ है।
जिसने दिया सर्वस्व, उसे त्याग रहे हो।
पत्थल की मूर्तियों से, भीख मांग रहे हो।
विद्वत जनों को सादर समर्पित एवं अभिनंदन...…
महेन्द्र राय
पूर्व प्रवक्ता अंग्रेजी, आजमगढ़।
ममतामयी मां को कोटि-कोटि नमन, वंदन एवं अभिनंदन
तथा विनम्र श्रद्धांजलि...…🙏🙏🙏🙏
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