*शिक्षा में राजा-रंक नही...…*

 


सत्ता-सुंदरी वरण करती, उसको जो, टहल बजाता हो।

जो हो विल्कुल प्रतिभा-वंचित, हां में हां सदा मिलाता हो।


इंजीनियर-डाक्टर बना रहे,

कर खर्च रुपये मात्र एक।

बस दलितों, आदिवासियों तक,

यह कितनी घातक, घृणित-टेक।


ऐसा एकांगी विश्लेषण,                                             

जो करे तंत्र, जन-तंत्र नहीं।

शिक्षा होनी चहिए, समान,

शिक्षा में, राजा-रंक नहीं।


हर वर्गों में, अधिकांश बेटियां,

पिछड़ी और उपेक्षित हैं।

पुरुषों की, घातक-मनोवृत्ति,

से सदा दुखित, असुरक्षित हैं।


उनकी सारी अभिलाषायें,

पाषाण-पुरुष से, भक्षित हैं।

पिछड़ेपन की, कारा-विमुक्ति-हित,

इच्छा उन्हें, अपेक्षित है।


वनवासी दलित बेटीयां तो,

होती स्वतंत्र, वनवासी हैं।

हैं अन्य, धार्मिक-वृत्ति फसीं,

 बेटियां, रहीं बन, दासी हैं।


कर संविधान का संशोधन,

अनिवार्य करो, तुम शिक्षा को।

शिक्षा, गुणवत्ता-परक, मुफ्त,

दे तृप्त करो, हर इच्छा को।


बेटी को बेटी रहने दो,

मत जात-पात का वपन करो।

देकर शिक्षा निशुल्क इन्हें,

इन‌ ‘दिव्य-शक्ति’ को, नमन करो।


विद्वत जनों को सादर समर्पित एवं अभिनंदन...…

महेन्द्र राय 

पूर्व प्रवक्ता अंग्रेजी, आजमगढ़। 



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