अपने दौर की रूढियों कुरीतियों और दकियानुसी ख्यालों से टकराने वाले कलमकार थे राहुल सांस्कृत्यायन



रगो में जब सच्चाई का लहू दौडता है तो कलम अपने दौर की रूढियों, कुरीतियों, दकियानुसी ख्यालों और शासन की तानाशाही नीतियों से टकरा ही जाती हैं। ऐसी ही कलम के विरले सिपाही थे महापंडित राहुल सांस्कृत्यायन। साहित्य और अदब की उर्वरा भूमि आजमगढ़ में पैदा हुए राहुल सांस्कृत्यायन सुकरात गैलीलियो और कोपरनिकस की तरह अपने सच के लिए जहर पीने हौंसला रखने वाले एक सच्चे बेजोड़ और निर्भीक साहित्यकार थे। राहुल सांस्कृत्यायन की साहित्यिक सर्जनाओं में समाज के ज्वलंत सवालों से लडने जूझने और सत्ता की तानाशाही नीतियों से टकराने का गजब साहस दिखाई देता हैं। बहुभाषाई साहित्यकार के साथ बहुआयामी व्यक्तित्व और बहुमुखी प्रतिभा के धनी राहुल सांस्कृत्यायन के हृदय में वही तडप और बेचैनी थी जो महात्मा बुद्ध के हृदय में थी। परन्तु महात्मा बुद्ध की तरह राहुल सांस्कृत्यायन किसी बोधि वृक्ष के नीचे समाधिस्थ नहीं हुए थे बल्कि मानव जीवन की सच्चाइयों को जानने की गहरी पीडा और जिज्ञासा ने उन्हें दुनिया का घुमक्कड़ बना दिया। पूरे होशो-हवास और उत्साह के साथ इस घुमक्कड़ी ने राहुल सांस्कृत्यायन को पुरातत्ववेत्ता इतिहासकार दार्शनिक भाषाविद चिंतक विचारक और साहित्यकार बना दिया। उनके चिंतन की उत्कृष्ट चैतन्यता से पंडित जवाहरलाल नेहरु भी प्रभावित थे। 1937 मे इलाहाबाद विश्वविद्यालय में उनके ओजस्वी भाषण को सुनकर पंडित नेहरू ने कहा था कि "भारत के विश्वविद्यालयों राहुल सांस्कृत्यायन जैसा चिंतक क्यों नहीं पैदा होता हैं"। राहुल सांस्कृत्यायन ने विविध विधाओं में लगभग 140 पुस्तकें लिखी। जिसमें" गंगा से बोल्गा तक "सर्वाधिक चर्चित रही। राहुल सांस्कृत्यायन ने अपनी मातृभाषा भोजपूरी में आठ पुस्तकें लिखी। जिसमें "मेहरारून क दुरदसा" सर्वाधिक विख्यात रही। जन जीवन में जन संघर्षों को सशक्त आवाज देने वाले राहुल सांस्कृत्यायन को उनके जन्मदिन पर बहुत बहुत बधाई और शुभकामनाएं। 


मनोज कुमार सिंह प्रवक्ता 

बापू स्मारक इंटर काॅलेज दरगाह मऊ।

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