*स्त्री*

 


केवल देह नहीं होती बाबू !

उसमें आत्मा भी होती है,

भावना भी होती है

वह माँ बनकर लुटाना चाहती है

अपने हृदय की सारी ममता

बहन के रूप में राखी बनकर

बचाना चाहती है तुम्हें सारी अशुभताओं से..

बेटी बनकर

अपने नन्हें पांवों की पायल की रूनझुन से

हर लेना चाहती है

तुम्हारे जीवन के सूनेपन को

लेकिन, अफसोस ! तुमने

मुझे हर रूप में शायद केवल और केवल एक स्त्री ही समझा। 

सुमन जैन ''सत्यगीता''✍️

साभार-विश्व हिंदी संस्थान, कनाडा। 



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