ऋतु बसंत की मादक बयार में,
सारी नफरत बदल गयी प्यार में।
अल्हड़ मदमस्त फागुनी बहार में,
हरियाली आई घर ऑगन-दिवार में ।
लाल गुलाबी नीले रंगों की फुहार में,
भेद-भाव मिट गया पंडित-गवाॅर में।
सुरमई मौसम के सुरीले मल्हार में,
अंगडाई आई सारे उजड़े दयार में ।
देवर-भौजाई की मिठी रसभरी रार में,
आंख मिचौली चल रही भसुर भतार में ।
धरती के मनमोहक बसंती श्रृंगार में,
तन-मन डूबा अद्भुत खुशी-खुमार में
पागल सरसों पियराई हर कतार में
यौवन छाॅया बाग बगीचा गाँव-जवाँर में।
घर-ऑगन बुहारती प्रियतमा प्रियतम के इंतजार में,
मधुर मिलन की आस लिए हूई बावली पथ निहार में।
मनोज कुमार सिंह प्रवक्ता
बापू स्मारक इंटर काॅलेज दरगाह मऊ।
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