प्रवासी दिवस :-
9 जनवरी 1915 को राष्ट्रपिता महात्मा गांधी दक्षिण अफ्रीका से भारत वापस आए थे। इसी उपलक्ष्य में प्रत्येक वर्ष 9 जनवरी को भारत में प्रवासी दिवस के रूप मे मनाया जाता हैं। महात्मा गांधी एक पर्यटक की तरह नहीं बल्कि प्रजाति वाद, नस्लवाद और रंगभेद के खिलाफ सशक्त आंदोलन की थाती, सत्याग्रह की रणनीति और वैश्विक मानवता के लिए व्यापक अंतर्दृष्टि लेकर स्वदेश लौटे थे। महात्मा गांधी के स्वदेश लौटने के दिवस को प्रवासी दिवस के रूप में मनाते हुए हम उन विभूतियों को याद करते हैं जो दुनिया के विभिन्न देशों में अपनी प्रतिभा, परिश्रम और पुरुषार्थ से कीर्तिमान स्थापित कर रहे हैं और उन देशों की नागरिक होते हुए अपनी पुरखो की मातृभूमि से आज भी गहरा अनुराग रखते हैं। प्रवासी दिवस के अवसर पर हम उन भारतवंशियों को सम्मान के साथ स्मरण करते हैं जिनके पुरूखो को साम्राज्यवादी दौर में गिरमिटिया मजदूर के रूप में दूसरे देशों में बसाया गया। परन्तु इन गिरमिटिया मजदूरो की संततियो ने अपनी प्रतिभा परिश्रम और पुरुषार्थ से उन देशों में शानदार पहचान कायम करने में सफलता प्राप्त की। आज भारत सरकार द्वारा उन अप्रवासी भारतीयों को प्रवासी भारतीय सम्मान से सम्मानित किया जाता है जो अपने असाधारण योगदान से देश दुनिया को लाभान्वित कर रहे हैं।
प्रवासी दिवस मनाने का सिलसिला वर्ष 2003 से आरंभ हुआ। प्रवासी दिवस मनाने का विचार सुप्रसिद्ध न्यायविद, संविधान विशेषज्ञ, भाषाविद और साहित्यकार स्वर्गीय श्री लक्ष्मीमल सिंधवी ने दिया था। दक्षिण अफ्रीका और नेपाल के संविधान निर्माण में महत्वपूर्ण भूमिका निर्वहन करने वाले श्री लक्ष्मीमल्ल सिंधवी ने प्रवासी दिवस का विचार इसलिए दिया कि-यह प्रवासी दिवस दुनिया के विभिन्न देशों में रह रहे अप्रवासी भारतीयों और प्रवासी भारतवंशियों के मध्य सेतुबंध का कार्य कर सकें। भूमंडलीकरण के इस दौर में जब व्यापार वाणिज्य व्यवसाय और सूचना प्रौद्योगिकी के संसाधनों के माध्यम से सम्पूर्ण विश्व को एक गाँव में तब्दील कर देने का प्रयास जोर-शोर से चल रहा है। ऐसे दौर में अपनी वर्तमान कर्मभूमि में उद्योग, व्यापार, व्यवसाय, शिक्षा, चिकित्सा, अभियांत्रिकी, प्रशासन, राजनीति और साहित्य के क्षेत्र में महत्वपूर्ण भूमिका निर्वहन कर रहे भारतवंशियों का स्वाभाविक संबंध अपने पुरखों की पितृभूमि से स्थापित करना भूमंडलीकरण की दृष्टि से आवश्यक हो जाता हैं और इसी पवित्र मंशा से प्रतिवर्ष 9 जनवरी को प्रवासी दिवस मनाया जाता है। मजदूर, शिक्षक, अनुसंधानकर्ता, वैज्ञानिक, अभियंता के साथ साथ सूचना प्रौद्योगिकी के क्षेत्र में भारत के होनहार युवाओं की स्वीकार्यता विश्व के विविध देशों में निरंतर बढती जा रही हैं। जिस देश का कभी पाश्चात्य इतिहासकार उपहास उडाते हुए कहते थे कि-यह देश भालू बंदर साँप का खेल तमाशा दिखाकर अपना भरण-पोषण करने वालों का देश है उसी देश के साफ्टवेयर्स आज दुनिया में करिश्मा कर रहे हैं। प्रवासी दिवस मनाने के पीछे यही मंशा रहती हैं कि-सम्पूर्ण भारतवासी और दुनिया के विभिन्न देशों के प्रवासी भारतवंशी अप्रवासी भारतीयों की उपलब्धियों और सफलताओं से रूबरू हो सकें। इसके अतिरिक्त प्रवासी दिवस मनाने का उद्देश्य दुनिया के विभिन्न देशों में रह रहे अप्रवासी भारतीयों के मध्य एक बेहतर नेटवर्क स्थापित करना तथा एक दूसरे के बेहतर तालमेल और समन्वय से विभिन्न देशों में रह रहे अप्रवासी भारतीयों की समस्याओं का बेहतर समाधान करना भी है।
भारतवंशियों का दुनिया के विविध देशों में आवागमन का सिलसिला सदियों पुराना हैं परन्तु साम्राज्यवाद के दौर में अंग्रेजी सरकार ने व्यापक पैमाने पर भारतीयों को मजदूर बनाकर अपने स्थापित उपनिवेशों में बसाया। चाय कहवा कपास और गन्ना इत्यादि की खेती कराने के लिए अंग्रेजी सरकार ने जिन भारतीय मजदूरों को दूसरे देशों में बसाया उन्हें गिरमिटिया मजदूर के रूप में जाना जाता है। यह सर्वविदित तथ्य है कि- भारतीय जिस भी देश में गये वहॉ अपने सीने में दया करूणा परोपकार सत्य और अहिंसा का संदेश, सहकार समन्वय और साहचर्य की संस्कृति और सभ्यता तथा हाथों में सृजन रचना निर्माण और विकास का हुनर एवं किसी भी परिस्थिति में बसने का हौसला लेकर गए। आज मारीशस, ट्रिनिडाड टोबैगो, फीजी, सिंगापुर, सूरीनाम, गुआना, मलेशिया, हांगकांग, कनाडा और कैरेबियाई द्वीप समूह के देशों जैसे दर्जनों देशों में भारतवंशी अपने हुनर और हौसले से शासन सत्ता के शीर्षस्थ पदो को सुशोभित कर चुके हैं। इसकी शुरुआत 1961 से हुई थी जब श्री छेदी जगन गुयाना के राष्ट्रपति निर्वाचित हुए थे। इसके बाद भारतवंशियों का अपने-अपने देशों में शासन के शीर्ष पदो पर पहुंचने का सिलसिला शुरू हो गया। नवीन रामचंद्र गुलाम, शिवसागर रामगुलाम (मॉरीशस), बासुदेव पांडेय (त्रिनिदाद टोबेगो), महेन्द्र चौधरी ( फिजी), चंद्रिका प्रसाद संतोखी (सूरीनाम) और रंगानंदा (सिंगापुर ) इत्यादि लोगों ने अपनी प्रतिभा और राजनीतिक कौशल से राष्ट्रपति और प्रधानमंत्री बनने मे सफलता प्राप्त की है। अभी हाल में अमेरिका में कमला हैरिस उपराष्ट्रपति बनने में सफल रही। आज 22 देशों के सदन में लगभग 182 सासंद भारतीय मूल के हैं। न केवल शासन-प्रशासन बल्कि कला साहित्य और विज्ञान के क्षेत्र में भी सात समंदर पार के देशों में अपने पराक्रम का परचम लहरा रहे हैं। इसमें अंग्रेजी साहित्य के मूर्धन्य साहित्यकार एवं नोबल पुरस्कार विजेता विद्याधर सूरज नायपॉल का नाम अविस्मरणीय है। विभिन्न देशों में विविध क्षेत्रों में अपनी प्रतिभा का बेहतर प्रदर्शन कर रहे भारतवंशियों को ससम्मान स्मरण करते हुए हर भारत वासी को अनुप्राणित और अनुप्रेरित होना चाहिए। यही प्रवासी दिवस का वास्तविक संदेश और मनाने की सच्ची सार्थकता है।
मनोज कुमार सिंह प्रवक्ता
बापू स्मारक इंटर कॉलेज दरगाह मऊ।
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