भगवान शिव को प्रसन्न करने के लिए हर माह की त्रयोदशी तिथि को प्रदोष व्रत रखा जाता है. कहते हैं भगवान शिव को प्रदोष व्रत अत्यंत प्रिय हैं, इसलिए भक्त प्रदोष व्रत रखते हैं.
भगवान शिव (Bhagwan Shiva) को प्रसन्न करने के लिए हर माह की त्रयोदशी तिथि (Triyodashi Tithi) को प्रदोष व्रत (Pradosh Vrat) रखा जाता है. कहते हैं भगवान शिव को प्रदोष व्रत अत्यंत प्रिय हैं, इसलिए भक्त प्रदोष व्रत रखकर भगवान शिव को शीघ्र प्रसन्न कर सकते हैं और उनका आशीर्वाद प्राप्त कर सकते हैं. मान्यता है कि त्रयोदशी के दिन प्रदोष व्रत रखने से सभी पापों का नाश होता है और भक्तों के सभी मनोकामनाएं पूर्ण होती हैं. इस बार कार्तिक मास का पहला प्रदोष व्रत (Kartik Month First Pradosh Vrat) 2 नवंबर के दिन रखा जाएगा. इस दिन मंगलवार (Mangalvar Pradosh Vrat) होने के कारण इसे भौम प्रदोष व्रत (Bhaum Pradosh Vrat) कहा जाता है. इस दिन भगवान शिव के साथ-साथ हनुमान जी (Hanuman Ji) का भी आशीर्वाद मिलता है. इस दिन विधिवत्त तरीके से प्रदोष व्रत रखने से भगवान शिव जल्दी प्रसन्न होते हैं और भक्तों पर कृपा बरसाते हैं. इतना ही नहीं, भक्तों के सभी कष्ट दूर करते हैं.
भौम प्रदोष व्रत तिथि :
कार्तिक मास के कृष्ण पक्ष की त्रयोदशी 2 नंवबर, मगंलवार को है.
भौम प्रदोष व्रत तिथि प्रारम्भ - 02:01 पी एम, नवम्बर 02 से लेकर
भौम प्रदोष व्रत तिथि समाप्त - 11:32 ए एम, नवम्बर 03 तक
ज्येष्ठ मास में प्रदोष का महत्व :
धार्मिक मान्यता है कि प्रदोष व्रत से भगवान शिव शीघ्र प्रसन्न हो जाते हैं. अतः भगवान शिव की पूजा करने का यह उत्तम समय होता है. कहते हैं कि चतुर्मास में भगवान विष्णु पाताल लोक में विश्राम अवस्था में होते हैं, और उनका ये कार्यभार शिव जी संभालते हैं. इसलिए चतुर्मास में शिव पूजा का महत्व और अधिक बढ़ जाता है. ज्येष्ठ मास के प्रदोष व्रत को महत्वपूर्ण माना गया है. इस मास में भगवान शिव का अभिषेक का विशेष महत्व है. ज्येष्ठ मास के कृष्ण पक्ष के प्रदोष व्रत में गंगाजल और सामान्य जल के साथ दूध भगवान शिव पर चढ़ाया जाना शुभ फलदायी माना जाता है.
प्रदोष व्रत पूजा विधि :
भगवान शिव का आशीर्वाद पाने के लिए इस प्रदोष व्रत के दिन सुबह स्नान करने के बाद पूजा स्थान को शुद्ध करें. इसके बाद भगवान के सामने बैठ कर व्रत का संकल्प लें और पूजा प्रारंभ करें. मान्यता है कि इस दिन निर्जला व्रत रखना विशेष फलदायी माना गया है. कहते हैं कि प्रदोष व्रत की पूजा प्रदोष काल में ही करनी चाहिए. शाम के समय प्रदोष काल में भगवान शिव और पार्वती की विशेष पूजा करें. सूर्यास्त के बाद एक बार फिर से स्नान करें और फिर पूजा करें. इसके बाद ही व्रत का पारण करें.
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