*मृत्यु*

दस दरवाजे रखे हैं इंद्रियों के

पांच कर्मेंद्रियां, पांच ज्ञानेंद्रियां—ये दरवाजे रखे हैं। 

इन्हीं दरवाजों से तुम जीवन से संबंध बनाते हो, 

और इन्हीं दरवाजों से एक दिन मौत आएगी। 

इन्हीं दरवाजों से तुम बाहर जाते हो

इन्हीं आंखों से तुम बाहर जाते हो, 

इन्हीं हाथों से तुम बाहर टटोलते हो, 

स्पर्श करते हो, इन्हीं कानों से तुम बाहर सुनते हो

इन्हीं इंद्रियों से मृत्यु भीतर प्रवेश करेगी।


यह जानकर तुम हैरान होओगे कि 

प्रत्येक व्यक्ति अलग इंद्रिय से मरता है। 

किसी की मौत आंख से होती है, 

तो आंख खुली रह जाती है—हंस आंख से उड़ा। 

किसी की मृत्यु कान से होती है। 

किसी की मृत्यु मुंह से होती है, 

तो मुंह खुला रह जाता है। 

अधिक लोगों की मृत्यु जननेंद्रिय से होती है, 

क्योंकि अधिक लोग जीवन में 

जननेंद्रिय के आसपास ही भटकते रहते हैं, 

उसके ऊपर नहीं जा पाते। 

तुम्हारी जिंदगी जिस इंद्रिय के पास जीयी गई है, 

उसी इंद्रिय से मौत होगी। 

औपचारिक रूप से हम मरघट ले जाते हैं किसी को 

तो उसकी कपाल—क्रिया करते हैं, उसका सिर तोड़ते हैं। 

वह सिर्फ प्रतीक है। 

समाधिस्थ व्यक्ति की मृत्यु उस तरह होती है। 

समाधिस्थ व्यक्ति की मृत्यु सहस्रार से होती है।


जननेंद्रिय सबसे नीचा द्वार है। 

जैसे कोई अपने घर की नाली में से प्रवेश करके बाहर निकले। 

सहस्रार, जो तुम्हारे मस्तिष्क में है द्वार, वह श्रेष्ठतम द्वार है। 

जननेंद्रिय पृथ्वी से जोड़ती है, सहस्रार आकाश से। 

जननेंद्रिय देह से जोड़ती है, सहस्रार आत्मा से। 

जो लोग समाधिस्थ हो गए हैं, 

जिन्होंने ध्यान को अनुभव किया है, 

जो बुद्धत्व को उपलब्ध हुए हैं, 

उनकी मृत्यु सहस्रार से होती है।

उस प्रतीक में हम अभी भी कपाल—क्रिया करते हैं। 

मरघट ले जाते हैं, बाप मर जाता है, 

तो बेटा लकड़ी मारकर सिर तोड़ देता है। 

मरे—मराए का सिर तोड़ रहे हो! 

प्राण तो निकल ही चुके, 

अब काहे के लिए दरवाजा खोल रहे हो? 

अब निकलने को वहां कोई है ही नहीं। 

मगर प्रतीक, औपचारिक, 

आशा कर रहा है बेटा कि बाप सहस्रार से मरे; 

मगर बाप तो मर ही चुका है। 

यह दरवाजा मरने के बाद नहीं खोला जाता, 

यह दरवाजा जिंदगी में खोलना पड़ता है। 

इसी दरवाजे की तलाश में सारे योग, 

तंत्र की विद्याओं का जन्म हुआ। 

इसी दरवाजे को खोलने की कुंजियां हैं योग में, तंत्र में। 

इसी दरवाजे को जिसने खोल लिया, 

वह परमात्मा को जानकर मरता है। 

उसकी मृत्यु समाधि हो जाती है। 

इसलिए हम साधारण आदमी की कब्र को कब्र कहते हैं, 

फकीर की कब्र को समाधि कहते हैं

समाधिस्थ होकर जो मरा है।


प्रत्येक व्यक्ति उस इंद्रिय से मरता है, 

जिस इंद्रिय के पास जीया। 

जो लोग रूप के दीवाने हैं, वे आंख से मरेंगे; 

इसलिए चित्रकार, मूर्तिकार आंख से मरते हैं। 

उनकी आंख खुली रह जाती है। 

जिंदगी भर उन्होंने रूप और रंग में ही 

अपने को तलाशा, अपनी खोज की। 

संगीतज्ञ कान से मरते हैं। 

उनका जीवन कान के पास ही था। 

उनकी सारी संवेदनशीलता वहीं संगृहीत हो गई थी।


मृत्यु देखकर कहा जा सकता है—

आदमी का पूरा जीवन कैसा बीता। 

अगर तुम्हें मृत्यु को पढ़ने का ज्ञान हो, 

तो मृत्यु पूरी जिंदगी के बाबत खबर दे जाती है कि 

आदमी कैसे जीया; 

क्योंकि मृत्यु सूचक है, 

सारी जिंदगी का सार—निचोड़ है—आदमी कहां जिया।


डॉ0 वी0 के0 सिंह

दंत चिकित्सक

ओम शांति डेण्टल क्लिनिक

इंदिरा मार्केट, बलिया। 






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