हम रोज जहर पीते हैं फिर भी नीले नहीं होते.....

 

एकबार विष पीकर नीलकंठ हो गये थे शिव,

हम रोज़ जहर पीते हैं फिर भी नीले नहीं होते।

अब नहीं बरसती हैं उसकी जुल्फ़े घटा बनकर,

इसलिए बारिश की बूँदों से भी हम गीले नहीं होते।


उसके दिए जख्मों को बहुत सहेज कर रक्खा है,

हर दिल की किस्मत में हर मौसम रंगीले नहीं होते। 

चलेंगे साथ हर सफ़र में तोता-मैने की तरह,

पर प्यार के रंगों से वाकिफ हर कबीले नहीं होते।


ख्व़ाब बुलंदियों के कई संजो रक्खें थे पलकों में,

मय़स्सर हर किसी को आसमां चमकीले नहीं होते।

कई तीर बड़ी हसरत से चलाए थे मेरे दुश्मनों ने,

आर-पार हो जाए तरकश के हर तीर नुकीले नहीं होते। 


बडे़ प्यार-मोहब्बत से बोएं थे हमने फल उम्मीदों के,

पर हर माटी के हर पेड के फल रसीले नहीं होते। 

कपास रेशम मलमल पहचानते हैं सबके शौक,

पर हर नंगे बदन के लिवास भद्दे भड़कीले नहीं होते। 



मनोज कुमार सिंह "प्रवक्ता" 

बापू स्मारक इंटर काॅलेज दरगाह मऊ।

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