भूगर्भ जल का घटता स्तर : घोर जलसंकट का संकेत : अभिनव पाठक, पर्यावरण सेवक


आज विश्व भू-गर्भ जल दिवस पर विशेष :-

बलिया। आज विश्व भूगर्भ जल दिवस के अवसर पर एक भेंटवार्ता में श्री गणेशा सोशल वेलफेयर ट्रस्ट के न्यासी एवं पर्यावरण सेवक अभिनव पाठक ने बताया कि पृथ्वी तल के नीचे स्थित किसी भू-गर्भिक स्तर की सभी रिक्तियों में विद्यमान जल को भू- गर्भ जल कहा जाता है। अपने देश में लगभग 300 लाख हेक्टोमीटर भू-गर्भ जल उपलब्ध है। इसका 80 प्रतिशत तक हम उपयोग कर चुके हैं। यदि भू-जल विकास स्तर की दृष्टि से देखा जाए तो अपना देश धूमिल संभावना क्षेत्र से गुजर रहा है, जो जल्दी ही संभावना विहीन क्षेत्र के अंतर्गत आ जाए। इसको देखते हुए कहा जा सकता है कि निकट भविष्य में अपने देश में घोर जल संकट उत्पन्न हो सकता है।

यदि उत्तर- प्रदेश में भू-गर्भ जल की स्थिति को देखा जाए तो स्थिति बहुत अच्छी नहीं कही जा सकती। इसका कारण है कि उत्तर प्रदेश में भू-जल का वार्षिक पुनर्भरण 68,757 मिलियन घनमीटर, शुद्ध दोहन 49483 मिलियन घनमीटर और भू-जल विकास 72.17 प्रतिशत है, जबकि सुरक्षित सीमा मात्र 70 प्रतिशत है। वाटर एड इण्डिया एवं अन्य स्रोतों के अनुसार 2000 से 2010 के मध्य भारत में भू-जल दोहन 23 प्रतिशत बढ़ा है।

विश्व में प्राप्त कुल भू-जल का 24 प्रतिशत अकेले भारत उपयोग करता है। इस तरह भू-जल उपयोग में विश्व में भारत का प्रथम स्थान है। फिर भी अपने देश में एक अरब लोग पानी की कमी वाले क्षेत्रों में रहते हैं।

बलिया सहित पूर्वांचल में भू-गर्भ जल की स्थिति :-

बलिया सहित पूर्वांचल के जिलों में भू-गर्भ जल की स्थिति को देखा जाए तो आजमगढ़, मऊ, बलिया, जौनपुर, गाजीपुर, चंदौली, वाराणसी, संतरविदासनगर, मिर्जापुर एवं सोनभद्र जिलों में शुद्ध पुनर्भरण जल क्षमता क्रमशः 1329, 483, 890, 1243, 1251, 717, 486, 400, 478 एवं 211 मिलियन घनमीटर, शुद्ध जल निकास क्षमता क्रमशः 865, 338, 589, 1106, 856, 273, 419, 370, 361एवं 91 मिलियन घनमीटर तथा भू-गर्भ जल विकास स्तर क्रमशः 65.70, 69.90, 66.24, 88.98, 68.45, 38.02, 86.28, 92.25, 62.38 एवं 43.12 प्रतिशत है। इसके अनुसार आजमगढ़, मऊ, बलिया एवं गाजीपुर जिले धूमिल संभावना क्षेत्र के अंतर्गत आ गए हैं, जबकि जौनपुर, वाराणसी एवं संतरविदासनगर जिले संभावना विहीन क्षेत्र के अन्तर्गत आ गए हैं। यानि कि इन जिलों में भू-जल दोहन को पूरी तरह प्रतिबंधित कर दिया जाना चाहिए। धूमिल संभावना क्षेत्र वाले जनपदों में भी जल उपयोग को संतुलित किया जाना चाहिए। इन सभी जनपदों में जलविदोहन करना प्रकृति के साथ खिलवाड़ है।

भू-गर्भ जल में गिरावट के प्रमुख कारण :-

*वर्षा वितरण में असमानता एवं वर्षा में कमी का होना।

*अधिकांश क्षेत्रों में सतही जह का अभाव।

*पेयजल आपूर्ति हेतु भू-जल का अधिक दोहन।

*सिंचाई हेतु भू- जल का अत्यधिक दोहन।

*उद्योगों हेतु भू-जल का अत्यधिक दोहन।

भू-जल की कमी से उत्पन्न समस्याएं :-

*भू-जल स्तर का निरन्तर नीचे की तरफ खिसकना।

*भू-जल में प्रदूषण की समस्या में वृद्धि।

*पेयजल आपूर्ति की समस्या में वृद्धि।

*सिंचाई जल कीकमी से कृषि पर प्रभाव।

*भू-जल की गुणवत्ता में कमी।

*भू-जल का अत्यधिक लवणतायुक्त होना।

*पेयजल आपूर्ति का घोर संकट उत्पन्न होना।

*भू-जल की कमी एवं जल का प्रदूषित होना। 

*आबादी वाले क्षेत्रों में जल आपूर्ति की कमी होना।

भू-गर्भ जल दोहन रोकने हेतु उपाय :-

*भू-जल समस्या का एकमात्र उपाय भू-जल में हो रही कमी को रोकना है। 

*प्रत्येक स्तर पर भू-जल के अनियंत्रित एवं अतिशय दोहन और शोषण एवं उपयोग पर रोक लगाना आवश्यक है। 

*पुराने जल स्रोतों को पुनर्जीवित करना होगा। 

*जल ग्रहण क्षेत्रों में अधिक से अधिक वृक्षारोपण करना होगा ताकि प्राकृतिक रूप से जल का पुनर्भरण होता रहे।

*बचत प्रक्रिया को अपनाना होगा। 

*जल बर्बादी को रोकना होगा।

*विकल्प कीक्षखोज करनी होगी।

*सुरक्षित एवं संरक्षित उपयोग करना होगा।

*जल को प्रदूषण से बचाना होगा।

*वर्षा जल का अधिक से अधिक संचयन करना होगा।

*जल संपूर्ति की सुरक्षित एवं संचयित प्रक्रिया अपनानी होगी।

*भूमिगत जल को चिरकाल तक स्थायी रखना होगा। 

*कुल वर्षा जल का कमसे कम 31 प्रतिशत जल धरती के अंदर प्रवेश कराने की व्यवस्था करनी होगी। इसके लिए वर्षा जल संचयन (रेन वाटर हार्वेस्टिंग) को बढ़ावा देना होगा।



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