मंथन

 


इतने कठिन समय मे मुझसे

प्रेम गढ़ा ना जायेगा,

ना ही प्रेम की बातें होंगी

ना ही प्रेम बुना यूं  जायेगा।


कोई प्रेम की बातें जो करे

अच्छी नहीं लगती इस पल,

प्रेम भी जब लगता अच्छा

जब अपने सभी खुशी से हो।


ये ना हो कोई जिये दर्द में

कोई अपनी मस्ती में पागल हो,

दर्द सभी के मिट जाये जो

धरा पर सुकून बयार हो।


जब हर कोई  यहां सुखमय हो 

तभी प्रेम की बातें करे,

हम सभी बन्धे रिश्तो में यहां

रिश्तों को तो जरा निभाये हम।


आओ चलो करें मंथन

प्रभु से ये अरदास लगाएं हम,

विश्व कुटुंब अपना कष्ट मुक्त हो

समस्त विश्व फिर सुखमय हो


संकट मिटे हर किसी के जल्दी

समस्त जगत फिर सुखमय हो,

उसकी रहमत की फिर बारिश हो 

सब भाई बन्धु उसमे शामिल हो।


अपनी कलम से

ऋतु गुप्ता

खुर्जा बुलंदशहर, उत्तर प्रदेश। 







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