भारत के आधुनिक इतिहास में यदि किसी व्यक्तित्व ने दृढ़ इच्छाशक्ति, अदम्य साहस और राष्ट्र के प्रति अटूट निष्ठा का सर्वोत्तम उदाहरण प्रस्तुत किया, तो वे थे लौह पुरुष सरदार वल्लभ भाई पटेल। उनकी पुण्यतिथि पर पूरा देश उस महान नेता को श्रद्धापूर्वक नमन करता है, जिनके प्रयासों से स्वतंत्र भारत एक सशक्त, संगठित और अखंड राष्ट्र के रूप में खड़ा हो सका।
सरदार वल्लभ भाई पटेल का जन्म 31 अक्टूबर 1875 को गुजरात के नडियाद में हुआ था। साधारण किसान परिवार में जन्मे पटेल जी ने कठिन परिश्रम, अनुशासन और आत्मविश्वास के बल पर देश की राजनीति में असाधारण स्थान प्राप्त किया। वे न केवल स्वतंत्रता संग्राम के अग्रणी सेनानी थे, बल्कि आज़ाद भारत के पहले उप प्रधानमंत्री और गृह मंत्री के रूप में उन्होंने राष्ट्र निर्माण की मजबूत नींव रखी।
स्वतंत्रता संग्राम के दौरान खेड़ा सत्याग्रह और बारडोली आंदोलन में उनके नेतृत्व ने उन्हें जन-जन का नेता बना दिया। बारडोली आंदोलन की ऐतिहासिक सफलता के बाद जनता ने उन्हें “सरदार” की उपाधि दी, जो आगे चलकर उनके व्यक्तित्व का पर्याय बन गई। उनका नेतृत्व दृढ़, स्पष्ट और परिणामोन्मुख था, जिसने किसानों और आम जनता में नया आत्मविश्वास जगाया।
स्वतंत्रता के बाद देश के सामने सबसे बड़ी चुनौती थी—562 से अधिक रियासतों का भारत में विलय। यह कार्य जितना जटिल था, उतना ही संवेदनशील भी। सरदार पटेल ने अपनी कूटनीति, दृढ़ता और राष्ट्रहित को सर्वोपरि रखकर लगभग सभी रियासतों का शांतिपूर्ण ढंग से भारत में विलय कराया। हैदराबाद, जूनागढ़ और कश्मीर जैसे जटिल मामलों में भी उनके निर्णयों ने भारत की अखंडता को सुरक्षित किया। इसी ऐतिहासिक योगदान के कारण उन्हें “भारत का बिस्मार्क” कहा जाता है।
सरदार पटेल का जीवन सादगी, ईमानदारी और कर्तव्यनिष्ठा का प्रतीक था। वे प्रशासनिक अनुशासन के प्रबल समर्थक थे और उन्होंने अखिल भारतीय सेवाओं की नींव रखी, जिससे देश को एक मजबूत और निष्पक्ष प्रशासनिक ढांचा मिला। उनका मानना था कि बिना अनुशासन और एकता के कोई भी राष्ट्र प्रगति नहीं कर सकता।
15 दिसंबर 1950 को इस महान सपूत का निधन हो गया, लेकिन उनके विचार और आदर्श आज भी भारत की आत्मा में जीवित हैं। उनकी स्मृति में निर्मित “स्टैच्यू ऑफ यूनिटी” न केवल विश्व की सबसे ऊंची प्रतिमा है, बल्कि यह राष्ट्रीय एकता और दृढ़ संकल्प का प्रतीक भी है।
सरदार वल्लभ भाई पटेल की पुण्यतिथि हमें यह संदेश देती है कि राष्ट्र की एकता, अखंडता और संप्रभुता से बड़ा कोई उद्देश्य नहीं होता। उनके जीवन से प्रेरणा लेकर हमें भी देशहित को सर्वोपरि रखते हुए ईमानदारी, साहस और कर्तव्यबोध के मार्ग पर चलने का संकल्प लेना चाहिए। यही उनके प्रति सच्ची श्रद्धांजलि होगी।
सहतवार, बलिया (उ.प्र.)
मो. नं. - 9454046303



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