हर वर्ष 11 दिसंबर को विश्वभर में संयुक्त राष्ट्र बाल कोष दिवस मनाया जाता है। यह दिवस बच्चों के अधिकारों, उनके संरक्षण, स्वास्थ्य, शिक्षा और समग्र विकास के प्रति वैश्विक प्रतिबद्धता को मजबूत करने के उद्देश्य से समर्पित है। संयुक्त राष्ट्र ने इस दिवस की शुरुआत इसलिए की ताकि दुनिया उन बच्चों की पीड़ा को समझ सके जो भूख, हिंसा, भेदभाव, कुपोषण, शिक्षा के अभाव और विभिन्न सामाजिक चुनौतियों से जूझ रहे हैं। यह दिवस यह भी याद दिलाता है कि बच्चे केवल राष्ट्र का भविष्य नहीं बल्कि उसका वर्तमान भी हैं, और उनके अधिकारों की रक्षा करना मानवता की सबसे बड़ी जिम्मेदारी है।
संयुक्त राष्ट्र बाल कोष (UNICEF) की स्थापना 11 दिसंबर 1946 को द्वितीय विश्व युद्ध के बाद उन बच्चों की सहायता के लिए की गई थी जो युद्ध के कारण अनाथ, भूख और बीमारी से पीड़ित हो गए थे। समय के साथ यह संस्था वैश्विक स्तर पर सबसे बड़ी बाल संरक्षण संगठन के रूप में विकसित हुई, जो आज 190 से अधिक देशों में शिक्षा, स्वास्थ्य, पोषण, टीकाकरण, मानसिक विकास, सुरक्षा और आपदा सहायता जैसी सेवाएँ प्रदान कर रही है। UNICEF का मूल मंत्र है— “हर बच्चे के लिए समान अवसर।”
आज विश्व में लाखों बच्चे कुपोषण, गरीबी, हिंसा, बाल श्रम, बाल तस्करी और संघर्ष क्षेत्रों की भयावह परिस्थितियों में जीवन व्यतीत कर रहे हैं। आँकड़ों के अनुसार विश्व में हर दिन लगभग 15,000 बच्चे ऐसी बीमारियों से मर जाते हैं, जिनका इलाज और रोकथाम संभव है। वहीं लाखों बच्चे अब भी स्कूल नहीं जा पाते और बचपन का समय शिक्षा की बजाय मजदूरी और संघर्ष में बीताने को मजबूर हैं। यह स्थिति केवल आंकड़े नहीं, बल्कि मानवता के लिए चेतावनी हैं कि यदि बच्चों को सुरक्षा, शिक्षा, अवसर और सम्मान नहीं मिला, तो समाज का भविष्य भी असुरक्षित और अंधकारमय होगा।
संयुक्त राष्ट्र बाल कोष दिवस हमें यह भी सिखाता है कि केवल संवेदनशीलता पर्याप्त नहीं, बल्कि कार्यवाही आवश्यक है। बच्चों को केवल भोजन और शिक्षा ही नहीं, बल्कि प्यार, सुरक्षा, सम्मान और आत्मसम्मान की भी आवश्यकता है। हमें ऐसा वातावरण बनाना है जहाँ हर बच्चा भयमुक्त होकर सीख सके, खेल सके, सपने देख सके और अपने व्यक्तित्व को निखार सके। समाज, सरकार, माता-पिता और संस्थानों का सामूहिक प्रयास बच्चों के जीवन को उज्ज्वल और सुरक्षित बना सकता है।
यह दिवस इस बात का भी प्रतीक है कि बच्चों के अधिकारों की गारंटी केवल कानूनों से नहीं बल्कि व्यवहार, संस्कार और जागरूकता से होगी। हमें बाल श्रम, बाल विवाह, बच्चों पर हिंसा, भेदभाव और उपेक्षा जैसी समस्याओं को समाप्त करने के लिए निरंतर प्रयास करना होगा।
निःसंदेह, बच्चे राष्ट्र का आधार हैं। यदि वे स्वस्थ, शिक्षित, सुरक्षित और आत्मविश्वासी होंगे, तभी समाज मजबूत और सभ्य बन सकेगा। इसलिए आज के दिन हमें यह संकल्प लेना चाहिए कि हर बच्चे को समान अधिकार मिले, हर बच्चे को अवसर मिले और हर बच्चा मुस्कुराते हुए जीवन की ओर बढ़े।



0 Comments