बिहार विधानसभा चुनाव 2025 राज्य की राजनीति का सबसे बड़ा लोकतांत्रिक उत्सव बन चुका है। दो चरणों में 6 और 11 नवंबर को मतदान होना है, और परिणाम से यह तय होगा कि बिहार की सत्ता की बागडोर किसके हाथ में जाएगी। इस बार का चुनाव केवल सरकार बदलने का नहीं बल्कि राज्य की दिशा तय करने का चुनाव कहा जा रहा है।
राजनीतिक समीकरणों की बात करें तो एनडीए और महागठबंधन के बीच मुख्य मुकाबला है। मुख्यमंत्री नीतीश कुमार की अगुवाई में जदयू और भाजपा गठबंधन “विकास” और “सुशासन” के मुद्दे को आधार बना रही है। वहीं दूसरी ओर, तेजस्वी यादव के नेतृत्व में राजद और कांग्रेस बेरोज़गारी, शिक्षा, स्वास्थ्य और पलायन को बड़ा चुनावी मुद्दा बना रहे हैं। लेफ्ट पार्टियाँ भी सामाजिक न्याय और समान अवसर की बात को लेकर मैदान में हैं।
चुनाव आयोग की तैयारियाँ पूरी हैं और विशेष मतदाता सूची संशोधन (SIR) के बाद मतदाताओं की संख्या में भी वृद्धि दर्ज हुई है। सुरक्षा और पारदर्शिता को लेकर इस बार आयोग विशेष सतर्क है। पिछले चुनावों में कई सीटें बेहद कम अंतर से जीती गई थीं, इसलिए इस बार हर दल की नज़र ‘छोटे अंतर वाली सीटों’ पर है।
राजनीतिक रणनीति के स्तर पर एनडीए ने अपने संगठन और प्रचार अभियान को बूथ स्तर तक मजबूत किया है, जबकि महागठबंधन अपने सामाजिक समीकरणों पर भरोसा जता रहा है। सोशल मीडिया और जनसभाएँ दोनों ही पक्षों के प्रचार के अहम माध्यम बन गए हैं। तेजस्वी यादव ने खुद को पुनः मुख्यमंत्री पद का चेहरा घोषित किया है, जबकि नीतीश कुमार “डबल इंजन सरकार” का नारा दोहरा रहे हैं।
चुनाव का सबसे बड़ा सवाल यही है कि क्या बिहार की जनता स्थायित्व और विकास को प्राथमिकता देगी या बदलाव की लहर को मौका देगी। कई सर्वेक्षणों में एनडीए को मामूली बढ़त दिखाई गई है, लेकिन मुकाबला कांटे का बताया जा रहा है।
कुल मिलाकर, बिहार विधानसभा चुनाव 2025 जातीय समीकरणों, विकास एजेंडे और नेतृत्व क्षमता के त्रिकोण पर टिका हुआ है। युवा मतदाताओं की भूमिका निर्णायक साबित हो सकती है। परिणाम चाहे जो भी हो, यह चुनाव आने वाले वर्षों के लिए बिहार की राजनीतिक दिशा तय करेगा।
✍️ अजय कुमार सिंह



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