बिहार विधानसभा चुनाव 2025 — समीक्षा और विश्लेषण


बिहार के चुनावी परिदृश्य में NDA की ज़बरदस्त जीत
बिहार विधानसभा चुनाव 2025 ने स्पष्ट रूप से एक छाप छोड़ी है: राष्ट्रीय जनतांत्रिक गठबंधन (NDA) ने लगभग 202 सीटें जीतीं, जबकि विपक्षी महागठबंधन (RJD-केंद्रित) केवल लगभग 33 सीटों तक सीमित रह गया। 

यह नतीजा सिर्फ सीटों की जीत नहीं है — यह बिहार की राजनीति में एक बड़े पोलिंग ट्रेंड का संकेत है, जिससे यह साफ है कि राज्य की जनता ने इस बार NDA को एक मजबूत जनादेश दिया है।

कौन किसे फायदा/नुकसान हुआ

  • NDA (BJP + JDU + अन्य साथी) — सबसे बड़ा फायदा हुआ। विशेष रूप से बीजेपी ने 89 सीटें जीतीं और JDU ने 85।
  • RJD — अपेक्षाकृत बहुत कमजोर प्रदर्शन: महागठबंधन की पहचान वाली RJD को सिर्फ ~25 सीट मिलीं।
  • कांग्रेस और बाएँ दल — और भी पीछे चले गए। इंडियन एक्सप्रेस की रिपोर्ट के मुताबिक़ महागठबंधन समूचे गठबंधन में बहुत पिछड़ा रहा।
  • VIP (विकासशील इंसान पार्टी) — विशेष रूप से मुश्किल दौर रहा; उन्होंने अपनी जातीय अपील (जैसे निशाद वोट) को सीटों में तब्दील करने में सफलता नहीं पाई।

किसकी सरकार बनेगी, और मुख्यमंत्री कौन हो सकते हैं

  • चूंकि NDA को करीब 202 सीटें मिली हैं (बहुमत बहुत आराम से), इसलिए NDA सरकार ही बनेगी
  • मुख्यमंत्री की संभावनाओं में सबसे मजबूत नाम है नितीश कुमार। वे JDU के आधार नेता हैं और उनकी पार्टी NDA का हिस्सा है। मीडिया रिपोर्ट्स में यह कहा गया है कि उनकी वापसी मुख्यमंत्री के रूप में लगभग पक्की है।
  • इसके साथ-साथ, BJP भी महत्वपूर्ण हिस्सेदारी रखता है, लेकिन मुख्यमंत्री पद पर नितीश को ही अधिक संभावनाएं दिख रही हैं।

जातीय समीकरण : इस बार का बड़ा गेम चेंजर

जातिगत गणित (caste arithmetic) इस चुनाव का केन्द्र बिंदु रहा। कुछ प्रमुख बिंदु इस प्रकार हैं:

  1. EBC + OBC (बहुत पिछड़े और पिछड़े क्लास)

    • बिहार की हाल की जाति-सर्वेक्षण रिपोर्ट के अनुसार, EBC आबादी करीब ~36% है, जबकि अन्य OBC लगभग ~27%.
    • NDA ने इस समूह में शानदार पकड़ बनाई। खासकर JDU, जो नितीश कुमार के नेतृत्व में EBC वर्गों में मजबूत है, ने इस वोट बैंक को बहुत अच्छी तरह से mobilize किया।
    • इसका असर यह हुआ कि पारंपरिक MY (Muslim + Yadav) गठबंधन (जो RJD-महागठबंधन की नींव रहा करता था) इस बार उतना प्रभावी नहीं रहा जितना पूर्व में था।
  2. मुस्लिम मतदाता

    • पारंपरिक रूप से महागठबंधन (RJD-केंद्रित) का एक बड़ा सहारा मुस्लिम वोट रहा है। कुछ सर्वेक्षणों में अभी भी यह दिखा कि मुस्लिम वोटों का एक हिस्सा महागठबंधन की ओर रहा, लेकिन NDA ने भी रणनीतिक तरीके से जुड़ने की कोशिश की।
    • लेकिन जातिगत समीकरणों में बदलाव और NDA की व्यापक रणनीति ने इस पल को थोड़ा कमजोर कर दिया।
  3. अन्य जातियाँ

    • Paswan (दलित) समुदाय में भी NDA को फायदा हुआ: Lok Janshakti Party (LJP) की हिस्सेदारी NDA के अंदर काम आई।
    • Kushwaha समुदाय की भी NDA की पकड़ मजबूत हुई।
    • ऊँची जातियों (ब्राह्मण, राजपूत आदि) में भी NDA को समर्थन मिला — एक रणनीतिक जातिगत गठजोड़ बना। चैनक्य (Chanakya) एक्सिट पोल भी यही दर्शाता है कि upper castes में NDA की पकड़ बहुत मजबूत रही।

मतदाताओं ने किस फैक्टर पर वोट किया?

यह चुनाव सिर्फ जाति-मत का नहीं रहा — इसके पीछे कई मौलिक राजनीतिक और सामाजिक फैक्टर काम कर गए:

  1. विकास और कल्याण (Development + Welfare)

    • NDA ने विकास-पाठ पर चुनाव लड़ा और कई कल्याणकारी योजनाएं (जैसे महिलाओं के लिए आर्थिक योजनाएं) उनकी रणनीति का हिस्सा रहीं।
    • विशेष रूप से महिला वोटर NDA की जीत में एक अहम कारक रहे। महिलाएं सिर्फ पहचान-आधारित वोट नहीं दे रहीं थीं, बल्कि कल्याण योजनाओं, रोज़गार,CSR-जुड गवर्नेंस के भरोसे मतदान कर रही थीं।
    • नितीश कुमार की पॉलिसी वेव (जैसे महिलाओं को आर्थिक सहायता, स्कीम) ने NDA के लिए एक नई वोटर बेस तैयार की।
  2. मतदाता सूची अशुद्धता (SIR / Voter Roll Issue)

    • चुनाव से पहले बिहार में मतदाता सूची में अधिकतम नामों को हटा देने (Special Intensive Revision - SIR) को लेकर विवाद हुआ।
    • महागठबंधन ने आरोप लगाया कि यह कदम कुछ समुदायों (जैसे मुसलमान, पिछड़े वर्ग) को कमजोर करने की नीति है।
    • हालांकि, यह मुद्दा मतदाताओं के बीच ही एक बड़ा फैक्टर बना — लेकिन ऐसा दिखता है कि यह अकेले महागठबंधन के अभियान को बहुत आगे नहीं ले गया, क्योंकि अन्य फैक्टर्स (जातिगत गठबंधन, विकास) NDA के पक्ष में रहे।
  3. संयोजन और गठबंधन रणनीति

    • NDA ने अपने गठबंधन को बहुत रणनीतिक रूप से मजबूत किया: न सिर्फ BJP और JDU, बल्कि अन्य साथी दलों (LJP, RL Morcha, आदि) के माध्यम से विभिन्न जातिगत समूहों तक पहुंच बनाई।
    • इसके विपरीत, महागठबंधन का संयोजन (seat sharing, संदेश) पूरी तरह एकजुट नहीं दिखा और उसकी रणनीति कुछ सीटों पर कमजोर पड़ी।
    • दलों की राजनीतिक समन्वय (coordination) NDA के पक्ष में बेहतर रहा — 4C (Caste, Candidate, Cash, Coordination) विश्लेषण भी इसी ओर इशारा करता है।

कौन किसका लॉज़र रहा

  • RJD — सबसे बड़ा हारने वाला दल। उनकी पारंपरिक रणनीतियाँ (विशेष रूप से यदुवासी + मुस्लिम) इस बार इतने मजबूत नज़र नहीं आए।
  • कांग्रेस — महागठबंधन के साथी होने के बावजूद, पार्टी का प्रदर्शन बहुत कमजोर रहा, और उसने महागठबंधन के बड़े दावों को भी पूरा नहीं किया।
  • VIP (Mukesh Sahani) — जातिगत (निशाद) अपील के बावजूद सीटों में उसका तबादला नहीं हो पाया, खासकर जब निशाद वोट NDA की ओर खिसक गए।
  • Left / अन्य छोटे दल — बहुत सीमित प्रभाव दिखा।

मतदाता मनोविज्ञान और रणनीति का नया परिदृश्य

  • यह चुनाव यह दर्शाता है कि बिहार की राजनीति अब सिर्फ पुराने MY मॉडल (Muslim + Yadav) तक सीमित नहीं है। EBC, OBC और अन्य पिछड़े वर्गों का महत्व और उनकी राजनीतिक भागीदारी नज़र आने लगी है।
  • साथ ही, महिला मतदाताओं की बढ़ती भागीदारी और उनकी कल्याण-प्राथमिकताएं (न सिर्फ पहचान आधारित वोट) यह संकेत देती हैं कि भविष्य में विकास-वोट की शक्ति और अधिक बढ़ेगी।
  • वोटर रोल की शुद्धता या असमानता (SIR जैसे मुद्दे) अब भी चुनाव की गहराई में प्रभाव डालते हैं, और यह संकेत है कि मतदाता सूची प्रबंधन राजनीतिक संघर्ष का एक महत्वपूर्ण मोर्चा बन गया है।

निष्कर्ष

  • NDA की जीत स्पष्ट और व्यापक है — यह सिर्फ जीत की संख्या नहीं, बल्कि जनादेश की मजबूती का संकेत है।
  • नितीश कुमार लगभग निश्चित रूप से फिर से मुख्यमंत्री बनेंगे, और NDA की सरकार मजबूत हाथों में होगी।
  • जातिगत समीकरण में इस बार बड़ा फेरबदल हुआ है: EBC + OBC + अन्य पिछड़े वर्गों ने NDA को निर्णायक बढ़त दी।
  • वोटर फैक्टर में कल्याण, महिलाओं की भागीदारी और वोटर-सूची नियंत्रण जैसे मुद्दे अहम रहे।

यह चुनाव न सिर्फ बिहार की राजनीति में, बल्कि पूरे हिंदी-हृदय क्षेत्र की सत्ता संरचना में एक महत्वपूर्ण मोड़ हो सकता है।


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