दशहरा : असत्य पर सत्य और अधर्म पर धर्म की विजय का प्रतीक


भारत के महान पर्वों में से एक विजयादशमी (दशहरा) है, जिसे हर वर्ष आश्विन मास की शुक्ल पक्ष की दशमी तिथि को मनाया जाता है। यह त्योहार न केवल धार्मिक महत्व रखता है, बल्कि सांस्कृतिक और सामाजिक दृष्टि से भी अत्यंत महत्वपूर्ण है। इसे बुराई पर अच्छाई की जीत और अन्याय पर न्याय की विजय के प्रतीक के रूप में माना जाता है।

धार्मिक महत्व

दशहरे से जुड़ी दो प्रमुख कथाएं प्रचलित हैं :-

1. राम-रावण युद्ध की कथा : त्रेतायुग में भगवान श्रीराम ने रावण का वध कर माता सीता को उसके बंधन से मुक्त कराया था। यह घटना असत्य, अहंकार और अधर्म पर धर्म, सत्य और मर्यादा की जीत का प्रतीक है।

2. मां दुर्गा और महिषासुर का युद्ध : शारदीय नवरात्र के नौ दिनों तक मां दुर्गा ने महिषासुर से युद्ध किया और दशमी के दिन उसका वध किया। इसीलिए विजयादशमी को "महिषासुर मर्दिनी दिवस" भी कहा जाता है।

सामाजिक और सांस्कृतिक महत्व

🔹दशहरा भारतीय समाज में सत्य, साहस और न्याय की प्रेरणा देता है।

🔹इस दिन जगह-जगह रामलीला का आयोजन होता है, जिसमें भगवान श्रीराम के जीवन और आदर्शों का मंचन होता है।

🔹रावण, मेघनाद और कुंभकर्ण के विशालकाय पुतले जलाए जाते हैं, जो बुराई को नष्ट करने और नए संकल्प के साथ जीवन जीने का प्रतीक हैं।

🔹भारत के विभिन्न हिस्सों में इस पर्व को अलग-अलग रूपों में मनाया जाता है। बंगाल में यह दुर्गा प्रतिमाओं के विसर्जन के साथ जुड़ा होता है, तो मैसूर में इसे बड़े राजसी वैभव और शोभायात्रा के साथ मनाया जाता है।

जीवन में संदेश

दशहरा हमें यह सिखाता है कि चाहे असत्य कितना ही शक्तिशाली क्यों न हो, अंततः सत्य और धर्म की विजय निश्चित होती है। यह पर्व हमें अहंकार त्यागने, सत्य का साथ देने और अपने जीवन में सदाचार अपनाने की प्रेरणा देता है।

उपसंहार

विजयादशमी केवल एक धार्मिक अनुष्ठान नहीं है, बल्कि यह भारतीय संस्कृति का वह संदेश है, जो हर व्यक्ति को अपने भीतर की बुराइयों पर विजय पाने और जीवन को सकारात्मकता, धर्म और सत्य की ओर अग्रसर करने के लिए प्रेरित करता है।

✨ इसीलिए दशहरा का पर्व हर वर्ष हमें याद दिलाता है कि “सत्य की राह कठिन हो सकती है, परंतु विजय उसी की होती है।”

परिवर्तन चक्र समाचार सेवा ✍️ 








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