बलिया की मासूम बेटियों की मौत – लापरवाही से ज्यादा नेताओं और अफसरों की बेपरवाही जिम्मेदार


बलिया जिले का जीरा बस्ती गांव बुधवार को मातम में डूब गया। दो सगी बहनों की मौत ने न सिर्फ उनके परिवार को तोड़ दिया, बल्कि पूरे जिले को झकझोर कर रख दिया। कारण वही पुराना – जर्जर बिजली का तार, विभाग की घोर लापरवाही और नेताओं की मौन स्वीकृति। सवाल यह है कि आखिर बलिया की जनता कब तक अपनी जान देकर सरकार, प्रशासन और नेताओं की नींद तोड़ेगी?

बिजली विभाग – मौत बांटने वाली मशीन

गांवों-कस्बों में लटकते बिजली के तार खुलेआम मौत बांट रहे हैं। विभाग हर साल करोड़ों रुपये का बजट खा जाता है, लेकिन न तो तार बदले जाते हैं और न ही ढांचा सुधारा जाता है। हादसा होने पर यही विभाग पहले बिजली काटने और "जांच कराने" का नाटक करता है। हकीकत यह है कि विभाग को जनता की जिंदगी की नहीं, सिर्फ राजस्व वसूली की पड़ी रहती है।

प्रशासन – हादसे के बाद ही क्यों जागता है?

जिलाधिकारी ने जेई और एसडीओ पर एफआईआर व निलंबन की कार्रवाई की। लेकिन सच्चाई यह है कि यह सिर्फ "दोष ढकने का खेल" है। निलंबन की फाइलें महीनों बाद बहाल हो जाती हैं और अधिकारियों की नौकरी जस की तस रहती है। अगर प्रशासन वाकई गंभीर होता तो बलिया की गलियों और गांवों में बिजली के तारों का निरीक्षण पहले से करवा कर ऐसी नौबत ही नहीं आने देता। मौत के बाद "कार्रवाई" सिर्फ जनता को शांत करने का झुनझुना है।

सांसद, विधायक और मंत्री – चुप्पी क्यों?

सबसे बड़ा सवाल है बलिया के जनप्रतिनिधियों से – सांसद कहां हैं? विधायक कहां हैं? मंत्री कहां हैं?

चुनाव के वक्त ये सब सड़क-सड़क घूमकर वोट मांगते हैं, विकास के वादे करते हैं, लेकिन जब गांव की बच्चियां जिंदा जल जाती हैं तो इनकी जुबान क्यों बंद हो जाती है? दो मासूम बहनों की मौत पर अगर नेताओं का खून नहीं खौलता तो समझ लीजिए कि इन्हें जनता की नहीं, सिर्फ अपनी कुर्सी की चिंता है।

मुआवजा – इंसानी जान का सौदा

पांच-पांच लाख रुपये का मुआवजा घोषित कर दिया गया है। सवाल यह है कि क्या मासूम बेटियों की जान की कीमत इतनी सस्ती है? मुआवजा बांटना आसान है, लेकिन असली जिम्मेदारी तय करना मुश्किल है। अगर हर हादसे के बाद नेताओं और अफसरों की जेब से मुआवजा कटे तो शायद ये लोग सुधरें।

जनता कब तक सहती रहेगी?

बलिया में यह पहली घटना नहीं है। हर साल बिजली विभाग की लापरवाही से हादसे होते हैं और हर बार प्रशासन, विभाग और नेता मिलकर मामला रफा-दफा कर देते हैं। जनता का खून सस्ता समझा गया है, तभी बार-बार ऐसी त्रासदियां घटती हैं।

👉 बलिया की जनता को अब जागना होगा। सवाल पूछना होगा :–

🔹सांसद और विधायक आखिर किस काम के हैं?

🔹बिजली विभाग का बजट कहां खर्च होता है?

🔹हर हादसे के बाद सिर्फ "निलंबन-मुआवजा" की रटी-रटाई स्क्रिप्ट क्यों चलती है?

अगर अब भी जनता खामोश रही तो आने वाले दिनों में न जाने कितनी और मासूम जिंदगियां इन लापरवाहियों की बलि चढ़ेंगी।

*पंडित विजेंद्र कुमार शर्मा द्वारा :-*



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