गणेश चतुर्थी : आस्था, उल्लास और संस्कारों का पर्व


भारत भूमि उत्सवों की धरती है, जहाँ प्रत्येक पर्व केवल धार्मिक महत्व ही नहीं रखता, बल्कि सामाजिक एकता और सांस्कृतिक विरासत को भी संजोता है। इन्हीं पर्वों में से एक है गणेश चतुर्थी, जिसे गणेशोत्सव भी कहा जाता है। यह पर्व विशेष रूप से महाराष्ट्र, गोवा, कर्नाटक, गुजरात और उत्तर भारत के अनेक हिस्सों में बड़े हर्षोल्लास से मनाया जाता है।

पर्व का महत्व : गणेश चतुर्थी को बुद्धि, विद्या, समृद्धि और सौभाग्य के देवता भगवान गणेश के जन्म दिवस के रूप में मनाया जाता है। सनातन परंपरा में किसी भी शुभ कार्य की शुरुआत श्रीगणेश के नाम और पूजन से ही होती है। ‘विघ्नहर्ता’ और ‘संकटनाशक’ कहलाने वाले श्री गणेश भक्तों के जीवन से दुख-दर्द दूर करते हैं और सुख-समृद्धि का मार्ग प्रशस्त करते हैं।

पूजन-विधि और परंपराएँ : गणेश चतुर्थी के दिन घर-घर और पंडालों में भगवान गणेश की प्रतिमाएँ स्थापित की जाती हैं। मिट्टी से बनी प्रतिमाओं को रंग-बिरंगे श्रृंगार से सजाया जाता है। भक्तगण वेद-मंत्रों के साथ गणपति का आवाहन कर पूजा-अर्चना करते हैं। मोदक इस दिन का विशेष प्रसाद माना जाता है, जिसे भगवान गणेश अत्यंत प्रिय मानते हैं।

पूजा के दौरान गणेश अथर्वशीर्ष, गणपति स्तोत्र और आरती का आयोजन होता है। बच्चे, महिलाएँ और बुजुर्ग सभी मिलकर भक्ति-भाव से इस पर्व को मनाते हैं।

सामाजिक और सांस्कृतिक स्वरूप : गणेश चतुर्थी का सार्वजनिक उत्सव स्वरूप सबसे पहले लोकमान्य बाल गंगाधर तिलक ने स्वतंत्रता आंदोलन के समय 1893 में शुरू किया था। उनका उद्देश्य था कि इस पर्व के माध्यम से जनता एकजुट होकर अंग्रेज़ी शासन के विरुद्ध एक मजबूत संगठन का निर्माण कर सके। तभी से यह पर्व केवल धार्मिक अनुष्ठान नहीं रहा, बल्कि समाज को जोड़ने वाला सांस्कृतिक और राष्ट्रभक्ति से ओत-प्रोत उत्सव बन गया।

पर्यावरण का ध्यान : आज के समय में गणेशोत्सव के साथ एक नई सोच जुड़ी है—पर्यावरण संरक्षण। लोग धीरे-धीरे पर्यावरण अनुकूल गणेश प्रतिमाओं का उपयोग करने लगे हैं, ताकि विसर्जन से नदियों और तालाबों का जल प्रदूषित न हो। मिट्टी और शुद्ध प्राकृतिक रंगों से बनी प्रतिमाएँ इस दिशा में सराहनीय कदम हैं।

उत्सव का समापन : गणेश चतुर्थी का यह पर्व दस दिनों तक चलता है। इसके बाद अनंत चतुर्दशी के दिन बड़े धूमधाम से गणपति बप्पा की प्रतिमाओं का जल में विसर्जन किया जाता है। "गणपति बप्पा मोरया, अगले बरस तू जल्दी आ" के जयकारों के साथ भक्त विदा करते हैं, और अगले वर्ष पुनः उनके आगमन की प्रतीक्षा करने लगते हैं।

निष्कर्ष : गणेश चतुर्थी केवल धार्मिक पर्व नहीं, बल्कि आस्था, उत्साह, एकता और संस्कृति का प्रतीक है। यह पर्व हमें सिखाता है कि बाधाओं को दूर कर हम एक नई ऊर्जा और सकारात्मकता के साथ जीवन में आगे बढ़ सकते हैं। सच ही कहा गया है—

“विघ्नहर्ता गणपति, मंगलमूर्ति गणेश, जीवन में सुख-समृद्धि और सद्बुद्धि का संचार करें।”

✍️ परिवर्तन चक्र समाचार सेवा




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