स्व. ठाकुर महेश्वर सिंह जी : स्वतंत्रता संग्राम के अमर सेनानी


जन्मदिन, 22 मई पर विशेष श्रद्धांजलि

स्वतंत्रता संग्राम के पावन इतिहास में बलिया की धरती सदैव स्वर्णाक्षरों में अंकित रही है। इसी गौरवगाथा के चमकते सितारों में से एक नाम है—अमर क्रांतिकारी ठाकुर महेश्वर सिंह जी। सहतवार के सम्मानित जमींदार ठाकुर महादेव सिंह जी के इकलौते पुत्र होते हुए भी उन्होंने ऐश्वर्य और वैभव को त्यागकर मातृभूमि की सेवा को ही जीवन का उद्देश्य बनाया।

जमींदारी की बेड़ियों से परे स्वतंत्र सोच

यद्यपि परिवार संपन्न और समृद्ध था, परंतु ठाकुर साहब का हृदय धन-धान्य के मोहजाल से उन्मुक्त था। विद्यार्थी जीवन से ही उनके मन में मादरेवतन को आज़ाद कराने की तीव्र लालसा जाग उठी थी। उनका मानना था कि “जमींदार” की उपाधि अंग्रेजों द्वारा अपने हित साधने के लिए दी गई एक बेड़ी मात्र है, जिसे अस्वीकार कर सच्चे राष्ट्रधर्मी की भूमिका निभाना ही उनका धर्म था।

क्रांतिकारी साथियों के बीच

स्व. ठाकुर महेश्वर सिंह निरंतर अपने परम मित्रों—राधामोहन सिंह, राम अनन्त पाण्डेय, भोला ठाकुर, चित्तू पाण्डेय और अन्य क्रांतिकारियों के साथ रहते थे। सहतवार की पुरानी हवेली उस दौर में क्रांतिकारी बैठकों का गढ़ थी, जहाँ कई ऐतिहासिक योजनाएँ बनीं। सन् 1942 के आंदोलन के समय तो महानायक जयप्रकाश नारायण स्वयं कई बार इन बैठकों में शामिल हुए।

‘भारत छोड़ो’ आंदोलन में अद्वितीय योगदान

8 अगस्त 1942 को जब महात्मा गांधी ने “अंग्रेजों भारत छोड़ो” का आह्वान किया, तब ठाकुर साहब ने उसे अपने जीवन का मंत्र बना लिया। कफ़न सिर पर बाँधकर वे घर-परिवार की सुख-सुविधाओं को त्याग आंदोलन की अग्रिम पंक्ति में उतर पड़े। उनके साथ पं. दीन दयाल पाण्डेय, जमुना राय सहित अनेक वीर सपूत भी कंधे से कंधा मिलाकर इस महायज्ञ में कूद पड़े।

अंग्रेजी सत्ता की आँख की किरकिरी

ठाकुर महेश्वर सिंह जी का संघर्ष केवल बलिया तक सीमित न रहा। वे पूरे पूर्वांचल में क्रांतिकारियों को संगठित कर स्वतंत्रता की अलख जगाते रहे। ब्रिटिश शासन ने उनके सिर पर इनाम तक घोषित कर दिया था, किंतु यह विलक्षण क्रांतिकारी उनके हाथ कभी न आया। उनका अदम्य साहस अंग्रेजों की नींद हराम कर देता था।

भूदान में अद्वितीय त्याग

भारत सरकार ने उनके योगदान को देखते हुए नैनीताल में उन्हें छह बीघा भूमि आवंटित की थी, परंतु यह भी उन्हें स्वीकार्य न हुआ। राष्ट्रसेवा और लोककल्याण के पथ पर अग्रसर रहते हुए उन्होंने इसे आचार्य विनोबा भावे के भूदान आंदोलन में सहर्ष दान कर दिया। परिवार में किसी ने इसका विरोध नहीं किया, न ही इस महान त्याग का दिखावा किया गया—यह उनके सच्चे आदर्शवादी व्यक्तित्व की मिसाल है।

स्मृति और प्रेरणा

स्व. ठाकुर महेश्वर सिंह जी जैसे अमर बलिदानियों की गाथा पर हमें स्वाभाविक ही गौरव होता है। किंतु यह विडंबना है कि उनके नाम पर आज तक उनके गृहनगर में कोई स्मारक अथवा स्मृति-चिह्न तक नहीं है। यह जिम्मेदारी नगर के प्रबुद्ध समाज की है कि वे इस दिशा में पहल करें, ताकि आने वाली पीढ़ियाँ इस असाधारण व्यक्तित्व से प्रेरणा लेकर अपने ऐतिहासिक धरोहर पर गर्व कर सकें।

श्रद्धांजलि

अपना सब कुछ देकर भी जो हर्षित रहते हैं,
जिनके त्याग और बलिदान से हम गर्वित होते हैं,
ऐसे दिव्य आत्माओं की ज्योति आज भी हमें राह दिखाती है।
वो महान ही होते हैं, जो वतन के लिए समर्पित होते हैं।

🙏 अमर क्रांतिकारी स्व. ठाकुर महेश्वर सिंह जी को शत्-शत् नमन।



 




धीरेन्द्र प्रताप सिंह ✍️

  सहतवार, बलिया (उ.प्र.)




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