बलिया। श्रावण मास में गूंजता "बोल बम" का उद्घोष न केवल शिवभक्तों की आस्था का प्रतीक है, बल्कि भारतीय सांस्कृतिक चेतना का भी एक जीवंत प्रमाण है। उत्तर प्रदेश का सीमावर्ती जिला बलिया, जो अपनी क्रांतिकारी परंपराओं के लिए प्रसिद्ध है, आज कांवड़ यात्रा के माध्यम से एक नए सामाजिक और आध्यात्मिक आंदोलन का ध्वजवाहक बन चुका है।
बलिया की पवित्र भूमि—जहाँ गंगा, सरयू और तमसा जैसी नदियाँ प्रवाहित होती हैं—हर श्रावण मास में शिवभक्तों के संकल्प और समर्पण से ओत-प्रोत हो उठती है। यहाँ की कांवड़ यात्रा केवल जल लाने की प्रक्रिया नहीं, बल्कि एक सामाजिक अनुशासन, मानवीय सेवा और समरसता का उत्सव बन चुकी है।
बलिया के शिवधाम : जहाँ जल अर्पण से आत्मा तृप्त होती है
बलिया जनपद के विभिन्न हिस्सों में स्थित शिवालय इस यात्रा की अंतिम मंज़िल होते हैं। इन मंदिरों में विशेष महत्व प्राप्त हैं:
- बाबा बालेश्वरनाथ मंदिर (बलिया नगर)
- बाबा विश्वनाथ मंदिर (भरौली, बैरिया)
- बाबा मुनीश्वरनाथ (गड़वार)
- बाबा बटेश्वरनाथ (दुबहड़)
- बाबा पिंडी नाथ (सहतवार)
- बाबा गंगेश्वरनाथ (नगरा)
- बाबा अघोरेनाथ (रतसर)
- बाबा शिवशंकरनाथ (सिकन्दरपुर)
श्रद्धालु हरिद्वार, वाराणसी, सुल्तानगंज आदि से जल लाकर इन पावन शिवालयों में शिवलिंग का जलाभिषेक करते हैं। यह केवल एक धार्मिक कृत्य नहीं, बल्कि अपने आत्मिक शुद्धिकरण और समाजिक पुनर्निर्माण की प्रक्रिया होती है।
एक चलता-फिरता संत समागम
बलिया की कांवड़ यात्रा आज केवल पुरानी परंपरा का निर्वहन नहीं रही। यह एक जनांदोलन बन चुकी है, जिसमें हर वर्ग—युवा, वृद्ध, महिलाएँ, छात्र, व्यापारी, किसान—अपनी भूमिका निभाते हैं। सेवा शिविरों में भोजन, विश्राम, दवा, चप्पल उतारने की व्यवस्था, यहां तक कि मोबाइल चार्जिंग जैसे आधुनिक इंतजाम भी मिलते हैं। यह दिखाता है कि आस्था जब सेवा से जुड़ती है, तो समाज जाग्रत होता है।
प्रशासन और समाज की साझी भागीदारी
बलिया प्रशासन, पुलिस, नगर निकाय, स्वास्थ्य विभाग, तथा सामाजिक संगठनों की सक्रिय भूमिका से यह यात्रा अनुशासित, सुरक्षित और स्वच्छ बनती है। ट्रैफिक नियंत्रण, साफ-सफाई, चिकित्सा सुविधा, और बिजली-पानी जैसी मूलभूत जरूरतों की व्यापक व्यवस्था यह साबित करती है कि जब प्रशासन और जनता साथ खड़े हों, तो हर आयोजन सफल होता है।
वर्तमान में सावधानी, भविष्य में धरोहर
कांवड़ यात्रा की व्यापकता और उत्साह के बीच कुछ सावधानियाँ भी अनिवार्य हैं। ध्वनि प्रदूषण, ट्रैफिक जाम, अनावश्यक प्रदर्शन और धार्मिक भावनाओं के नाम पर अशालीनता से बचना आवश्यक है। आस्था की गरिमा तभी बनी रह सकती है जब हम उसकी मर्यादाओं का पालन करें। यात्रा का मूल उद्देश्य—शिव से जुड़ाव, आत्म-नियंत्रण और समाज सेवा—हमेशा केंद्र में रहना चाहिए।
उपसंहार : बलिया की कांवड़ यात्रा—धार्मिकता से राष्ट्रनिर्माण तक का पुल
बलिया में कांवड़ यात्रा आज एक संस्कृति बन चुकी है—ऐसी संस्कृति जो भक्ति के साथ-साथ सेवा, समर्पण, और सहयोग का पाठ पढ़ाती है। यह केवल गंगाजल लाने की नहीं, अपने भीतर के विकारों को त्यागने की यात्रा है। यह बलिया की आत्मा है—जहाँ गंगा बहती है, वहीं भक्तों की भावना भी निर्बाध बहती है।
हर हर महादेव!
अजय कुमार सिंह ✍️
संपादक
परिवर्तन चक्र, बलिया।
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